Wednesday, September 15, 2021

इच्छा शक्ति l दृढ़ इच्छाशक्ति l दृढ़ संकल्प l इच्छाशक्ति कैसे विकसित करें


इच्छा शक्ति


STRONG WILL POWER

    इच्छा शक्ति , दृढ़ संकल्प , संकल्प , आत्म-अनुशासन , आत्म-नियंत्रण आदि-आदि का संयुक्त अर्थ ही इच्छा शक्ति होती है।

    इच्छा का जन्म हमारी आवश्यकताओं और हमारी भावनाओ के आधार पर होता है। जैसी हमारी आवश्यकताएं होती हैं वैसा ही हम सोचने लग जाते हैं और हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए हमारी इच्छाएं जाग्रत्त होती हैं , जो हमारी सामर्थ्य और वातावरण के प्रभाव से हम उन्हें उसी अनुसार करने की कोशिश करते हैं।

    हमारा विचार रुपी मन हमारी भावनाओं और इच्छाओं के प्रति कई प्रकार से अलग-अलग सुझाव देता है ,जिसके कारण हम किसी एक इच्छा और किसी एक विचार पर अटल रहने में स्वयं को असमर्थ पाते हैं। इसी असमर्थता को स्वयं के प्रयासों से किसी एक इच्छा पर अडिग रहने के लिए किये गए प्रयास ही जिस आत्मिक,आंतरिक शक्ति के कारण संभव हो पता है ; उसे ही हम इच्छा-शक्ति कहते हैं।

    किसी एक इच्छा पर अटल रहना बिना दृढ-संकल्प के संभव ही नहीं है ; हमारे चलायमान विचार हमें एक निश्चय पर अडिग रहने से रोकते है , जिन पर विजय हम दृढ-निश्चयी होकर और आत्म-प्रेरणा से ही पा सकते हैं।



    आत्म-अनुशासन , आत्म-नियंत्रण ही वह शक्ति है ,जिसके बल पर हम स्वयं पर और बाहरी दबाबों और डर का सामना करने में सक्षम हो पाते हैं। आत्म-अनुशासन , आत्म-नियंत्रण हमें कार्य के प्रति संयमित और अनुशाषित होने की प्रेरणा देता है और हम क्रोध ,आवेगों के दुश-प्रभावों से बच पाते हैं ; इसी के कारण हम धैर्य के साथ किसी लक्ष्य पर एकाग्र हो पाते हैं।

    आत्म-नियंत्रण आदतों , व्यव्हार , क्रोध , घृणा आदि को नियंत्रित करता है तथा आदतों का पालन करने के लिए लक्ष्य-निर्धारित करता है। 

    इच्छा-शक्ति की कमी होने पर आदतों , बदलावों पर नियंत्रण रखना (आत्म-नियंत्रण ) मुश्किल होता है। अतः आत्म-नियंत्रण के लिए इच्छा-शक्ति का होना परम आवश्यक है।

    स्वयं में कोई भी परिवर्तन दृढ-इच्छा शक्ति के बल पर ही किया जा सकता है।

    प्रेरणा , लक्ष्य निर्धारण , स्वयं को समय देना , लक्ष्य का आत्म-विश्लेषण के साथ-साथ दृढ-इच्छा शक्ति का सामूहिक प्रभाव ही हमें लक्ष्य की ओर परिवर्तन करने की स्थाई शक्ति प्रदान करता है। कोई एक ना होने पर हमारा वास्तविक ओर स्थाई परिवर्तन अनिश्चित होता होगा। 

साथ ही साथ प्रलोभनों से दूरी बनाने से ही परिवर्तन को बल मिलेगा। "


1. इच्छा शक्ति :

    इच्छा-शक्ति दीर्धकालिक लक्ष्यों की खोज में अल्पकालिक संतुष्टि का विरोध करने की क्षमता है।

     " इच्छा-शक्ति हमारे विचारों , भावनाओं की वह सामूहिक अवस्था है जिसमें हम दृढ-संकल्प के साथ किसी कार्य को करने की दृढ शक्ति पाते हैं , जिसका लक्ष्य मात्र कार्य को पूर्ण करने तक अथक प्रयास होता है।

    इस अवस्था में हम कार्य विशेष को पूर्ण करने का निश्चय कर लेते हैं और जब तक वह कार्य सफल नहीं होता निरंतर स्व-प्रेरणा से प्रयासरत रहते हैं। "

    इच्छा-शक्ति से विचारों , व्यव्हार को नियंत्रित करने की क्षमता बढ़ती है। 

    इच्छा-शक्ति के बल पर कोई भी असंभव कार्य संभव किया जा सकता है ; वशर्तें हमारा स्वयं पर तथा हमारे निश्चय पर पूर्ण विश्वास हो। इसके कारण हम कोई भी बुरी लत , बुरी भावना , बुरे विचार को त्याग कर एक सफल जीवन तथा बड़ी से बड़ी सफलता पा सकते हैं। 

    हमारे सामने कई उदाहरण हैं , जो साधन-विहीन थे लेकिन उन्होंने दृढ इच्छा-शक्ति , दृढ-संकल्प के बल पर बड़ी से बड़ी असंभव दीखने वाली सफलताएं अर्जित की हैं। 

    कम इच्छा-शक्ति वाला व्यक्ति आसानी से हार मन लेता है।  

    बिना प्रेरणा ओर आत्म-नियंत्रण के प्रलोभनों का विरोध करने से भविष्य के प्रलोभनों और आवेग के साथ कार्य करने की प्रवृत्तियों को सहन करने ओर इन पर विजय प्राप्त करने की क्षमता , इच्छा-शक्ति कम हो जाती है। 

इच्छा-शक्ति की कमी के प्रभावों को सकारात्मक सोच व सकारात्मक मनो-दशाओं , विश्वासों , दृष्टिकोणों से ही कम किया जा सकता है। 

इच्छा-शक्ति आत्म-नियंत्रण द्वारा और दृढ-संकल्प द्वारा बढ़ाई जा सकती है। आत्म-अनुशासन द्वारा आत्म-नियंत्रण संभव है। 

प्रबल इच्छा-शक्ति द्वारा संतुष्टि में देरी करने की क्षमता ,दीर्धकालिक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अल्पकालिक प्रलोभनों का विरोध करना , एक अवांछित विचार ,भावनाओं या आवेग को समाप्त करने की क्षमता तथा जल्दबाजी में भावनाओं में बह जाने पर नियंत्रण किया जा सकता है। 

स्वयं द्वारा स्वयं का प्रयासपूर्ण नियंत्रण किया जा सकता है,जिसके परिणामस्वरूप हम कोई भी पूर्व निर्धारित लक्ष्य आसानी से सजगता के साथ प्राप्त कर सकते हैं। 

    " दृढ-संकल्प एक मानसिक प्रक्रिया है ,जिसके द्वारा व्यक्ति किसी कार्य को किसी विधि का अनुसरण करते हुए पूरा करने का प्रण करता है। "
     
       किसी लक्ष्य ( जैसे कोई आदत बदलने का लक्ष्य ) को लेकर संकल्प करना ,उसे पूर्ण करने के लिए जी-जान से लगने की प्रेरणा / प्रयास ही इच्छा-शक्ति बढ़ते हैं। 

      किसी लक्ष्य को पाने के लिए मेहनत से ज्यादा इच्छा-शक्ति की जरूरत होती है ; यही हमें लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ने की प्रेरणा देगी चाहे कितनी भी कठिन स्थिति और परेशानियाँ क्यों ना हो। 

    दृढ-इच्छा शक्ति होने पर हम रुकावटों ,थकन आदि पर आसानी से नियंत्रण करने में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
इसी के कारण हौसला , आत्मविश्वास बढ़कर हम लक्ष्य पर टिके रह सकते हैं।  

     प्रबल इच्छा-शक्ति ही मनुष्य की सफलता का मुख्य आधार है। यह हम सबमें विधमान है , लेकिन इसे हमें जाग्रत व विकसित करने की आवश्यकता है। 

    असफल होने के बाद भी पुनः प्रयास करने की क्षमता दृढ इच्छा-शक्ति द्वारा ही संभव है। दुर्बल इच्छा-शक्ति के कारण ही हम एक लक्ष्य पर अडिग नहीं रह पाते हैं और एक से दूसरे लक्ष्य पर भटकते रहते हैं जिसके कारण हम बड़ी निराशा व बड़ी हार का सामना करते हैं, अंततः दुःख का अहसास करते हैं।

    वर्तमान में रहने ,सोचने से इच्छा-शक्ति बढ़ती है ; जबकि पूर्व की परेशानियों , असफलताओं ,के बारे में सोचने और चिंता करने से समय बर्बाद  होने के साथ-साथ इच्छा-शक्ति में कमी आती है।

भविष्य की निरर्थक चिंता भी हमें निराशा , भय के भाव देती है ; जिसका इच्छा-शक्ति पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

    दृढ-निश्चय , आत्म-विश्वास , उत्साह , सकारात्मक विचार और भावनाओं तथा अनुशासन के साथ कार्य करने पर इच्छा-शक्ति का विकास संभव है। 

    हमें अपनी असीम प्रतिभा , विशेषताओं , क्षमताओं को पहचान कर इन्हें विकसित करने के लिए प्रबल इच्छा-शक्ति के साथ कठिन परिश्रम करके उन्हें लक्ष्य के प्रति आत्म-केंद्रित करना होगा। 

निम्न के सम्मिलित प्रभाव से इच्छा-शक्ति प्रबल तथा सही दिशा में कार्य करती है ; तथा हम निरंतर बिना थके , विचलित हुए लक्ष्य पर ध्यान एकाग्र कर सकते हैं :-

1. आत्म-संयम ,

2. सकारात्मक दिशा में प्रेरित होना ,

3. संकल्प शक्ति ,

4. स्व-अनुशासन ,

5. विचारों तथा भावनाओं पर नियंत्रण ,

6. दृढ-निश्चय ,

7. एक बार में एक ही लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना ,

8. प्रलोभनों से बचना ,

9. खुद से वायदा (PROMISE ) करें , इसका दृढ़ता से पालन कार्य योजना के साथ करें , 

10. रोज के कार्यों को अलग तरीके से करें ,


12. कार्य को करने के पीछे उसके लाभ , कारण जोड़ दें ,

13. लक्ष्य को पाने की समय सीमा निश्चित करें ,

14. जिस कार्य से डर लगे उसे करके जरूर देखें ; इससे आत्म-विश्वास बढ़ेगा और सफलता के प्रति भावना बढ़ेगी। 

   

2.  इच्छा-शक्ति के विकास के लिए 

दृढ-संकल्प (DETERMINATION)का महत्व  :


SELF CONFIDENCE / DEDICATION

    किसी विशेष कार्य को करने का निश्चय ही संकल्प होता है।

    संकल्प पक्का हो तो कार्य का विरोध करने का कोई विकल्प ही नहीं बचता है। 
संकल्प पूरा तभी होगा जब भावनाएं हमारे वश में होंगी ।  

    दृढ इच्छा-शक्ति के साथ कार्य करने पर ही संकल्प पक्का होता है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं ; एक के बिना दूसरा अर्थहीन हो जाता है। 

    संकल्प को पूरा करने के लिए जोखिम तो उठानी ही होगी और जोखिम के साथ-साथ कठिन परिश्रम भी करना होगा। 

    किसी लक्ष्य को पाने में मेहनत से ज्यादा इच्छा-शक्ति की आवश्यकता होती है ; यही हमें लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ने की औऱ साहस के साथ मार्ग में आई बाधाओं को दूर करने में हमें आत्म-बल प्रदान करती है।

    दृढ-संकल्प द्वारा हम कठिनाइयों , बाधाओं , प्रलोभनों का सामना कर सकते हैं।

    बिना दृढ-संकल्प के दृढ इच्छा-शक्ति पर अडिग रहना संभव नहीं है। अगर हम जबरन कोशिस करेंगे तो आगे चलकर हम हताश व निराश होकर इच्छा-शक्ति ही खो देंगे।

    अगर हम जीवन में कुछ विशेष परिवर्तन चाहते हैं औऱ आत्म-निर्भर होना चाहते हैं तो दृढ-संकल्प के साथ पुराने तरीके से कुछ अलग हटकर कुछ नया करना ही होगा।

    " दृढ-संकल्प की सहायता से हम योजना पर कठोरतापूर्वक चलने का स्वयं से वायदा करते हैं औऱ उसे निभाने को वचनबद्ध होते हैं।

    कोई कार्य तभी सफल होगा जब हम पूर्ण मनोयोग से उसे करने की ठान लेते हैं। किसी कार्य में उत्साह , उमंग के होने के लिए दृढ-संकल्प बहुत जरूरी है। "

    जब हम पूरे मनोयोग से किसी कार्य को करने की ठान लेते हैं तो इससे हम पर कार्य का जुनून सवार हो जाता है ; हममें एक नई ऊर्जा का संचार होता है और हमारा स्वयं पर आत्म-विश्वास बढ़ता है। 

    हम जैसे-जैसे योजना पर अनुशाषित होकर आगे बढ़ेंगे ; दृढ-संकल्प के कारण हमारी सफलता हमें डर पर काबू करना सिखाती जाएगी।

    एक कार्य में सफलता मिलने पर हम एक नई ऊर्जा ,आत्म-विश्वास के बल पर दूसरे कार्यों को करने की प्रेरणा प्राप्त करेंगे।

    हमें एक समय में किसी एक संकल्प पर कार्य करना चाहिए। जब तक एक लक्ष्य पूर्ण ना हो जाये ,दूसरे लक्ष्य को ना चुनें अन्यथा आपकी सफलता का मार्ग बीच में ही रूक सकता है।

    नए नए विकल्प चुनने से अच्छा है कि एक ही लक्ष्य पर दृढ-संकल्प के साथ लगे रहें ; जब तक कि कार्य सफल ना हो जाये।

    विकल्प सफलता तोड़ता है ; विकल्प से बचने पर कार्य सिद्ध होता है।

    संकल्प की शक्ति से हम कठिन से कठिन लक्ष्य , चुनौतियों का भी सामना निडरता के साथ कर सकते हैं। 

    अगर दृढ-संकल्प के साथ दृढ इच्छा-शक्ति भी प्रभावकारी होगी तो हम असफलता में भी अधिक मजबूती और लचीलेपन के साथ कार्य करने के लिए प्रेरित हो सकते हैं और असफलता को भी सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ निरंतर प्रयास द्वारा सफलता में परिवर्तित करने में सफल भी रहेंगे।

    असफलता से कभी भी घबराना नहीं चाहिए , लेकिन सकारात्मक सोच के साथ असफलता के कारणों पर विचार करके उन्हें दूर करने के प्रयास करने चाहिए। 

    नई जानकारी के साथ स्वयं की कमियों को दूर करें और पुनः कार्य पर लग जाएँ। 

    अति आत्म-विश्वास में ना आएं और दृढ-संकल्प के साथ उस कार्य में स्वयं को पूर्णतः धैर्य के साथ लगा दें , सफलता निश्चित समय पर मिलेगी ही मिलेगी।
 
    अतः दृढ-संकल्प के साथ सही दिशा में आगे बढ़ें , और आत्मविश्वास के साथ धैर्य पूर्वक कार्य में लगे रहें ; निश्चित समय पर बड़ी सफलता अवश्य मिलेगी।


3. इच्छा-शक्ति बढ़ाने के उपाय :

    इच्छा-शक्ति प्रयास करने से ही बढ़ सकती है। ये अस्थाई होती है ; अतः हमें निरंतर सजग होकर प्रयास करने होंगे।

    आत्म-नियंत्रण द्वारा इच्छा-शक्ति बढ़ाई जा सकती है।

    कार्यान्वयन ( implementation ) द्वारा आत्म-नियंत्रण में सुधार आता है , इससे कम हुई इच्छा-शक्ति वाले भी आत्म-नियंत्रण द्वारा लक्ष्य पूरा कर सकते हैं।

    समय से पहले एक योजना होने पर हम अपनी इच्छा-शक्ति को आकर्षित किये बिना निर्णय लेने में सक्षम हो सकते हैं।

    सही प्रेरणा होने पर सही समय पर आत्म-नियंत्रण द्वारा इच्छा-शक्ति बढ़ाई जा सकती है। 

    बुरी लत या आदतों को छोड़ना ,बचत करने की आदत डालना ,खर्चों में मित्यव्ययिता लाना ,स्वाद पर नियंत्रण रखना ,स्वस्थ्य प्राप्ति के लिए नियमित व्यायाम आदि करने की आदत डालना ,प्रलोभनों से बचना आदि-आदि बिना दृढ इच्छा-शक्ति और आत्म-नियंत्रण के संभव ही नहीं है।

    अतः निम्न तरीकों पर नियमित अभ्यास करें और दृढ निश्चय पर अडिग रहें तो इच्छा-शक्ति स्थाई और विकसित होकर हमें सकारात्मक परिणाम अवश्य देगी :- 


1. अगर हमें प्रयासों से होने वाले लाभों की पहले से ही जानकारी हो तो हम कम इच्छा-शक्ति होने पर भी आत्म-प्रेरणा द्वारा आत्म-नियंत्रित होकर लक्ष्य पर अडिग रह सकते हैं।

    स्पष्ट लक्ष्य , उसके लाभों की जानकारी , अभ्यास द्वारा हम इच्छा-शक्ति बढ़ा सकते हैं। 

2. एक समय में एक ही लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करें ; इससे आपके विचार भटकेंगे नहीं और      इच्छा-शक्ति मजबूत होगी।

    ज्यादा लक्ष्य होने पर हम स्वयं को एक दिशा में आत्म-नियंत्रित नहीं रख पाएंगे , बेचैनी बढ़ेगी , चिंताएं बढ़ेंगी , जिसके फलस्वरूप इच्छा-शक्ति पर बुरा असर पढ़ेगा।

    एक-एक करके लक्ष्य पर आगे बढ़ना बेहतर तरीका है। 

3.  एक बार अच्छी आदत बन जाने के बाद अपने व्यव्हार को बनाये रखने के लिए इच्छा-शक्ति को आकर्षित करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी।

    हमारी स्वस्थ आदतें नियमित हो जाएँगी ,उन्हें निर्णय लेने की कोई आवश्यकता ही नहीं होगी।

4. हमें इच्छा-शक्ति के बजाय इच्छा ( WILL ) पर ध्यान देना चाहिए। 

    अनिच्छा वाले उबाऊ कार्य इच्छा-शक्ति को कमजोर करने का कार्य करते हैं।

    जब हम हमारे पसंदीदा कार्यों को करते हैं तो हम स्वतः ही ऊर्जावान महसूस करते हैं। इस समय हम बिना दबाब के कार्य करतें हैं और ख़ुशी का भी अनुभव करते हैं। यही एक उदाहरण है कि पसंदीदा कार्य करने पर इच्छा-शक्ति बढ़ती है और कार्य के प्रति एक-विशेष जुड़ाब का अनुभव भी करते हैं और हम बिना थके उस कार्य को कर सकते हैं।

5. विश्वास से इच्छा-शक्ति को बल मिलता है। 

    विश्वास और व्यव्हार द्वारा हम इच्छा-शक्ति को बढाकर आत्म-नियंत्रित रह सकते हैं।

    स्वयं पर , क्षमताओं पर विश्वास करने से इच्छा-शक्ति में वृध्दि होती है। ख़ुश रहो , ख़ुशी के वातावरण में रहो ; इससे आपका आत्म-बल और इच्छा शक्ति प्रबल होगी।
 
    सकारात्मक दृष्टिकोण रखो ,लक्ष्य के प्रति सकारात्मक सोचो , सकारात्मक कार्य करो तथा साथ ही साथ आशावादी बनो ; इससे इच्छा-शक्ति अविश्वशनीय रूप से बढ़ेगी और आप कठिन से कठिन परिस्थिति में भी स्वयं को ऊर्जावान रखने में सक्षम होंगे। 

6. इच्छा-शक्ति मानसिक सुढ़ृड़ता पर निर्भर करती है।

    अगर इच्छा-शक्ति कम होगी तो हम आत्म-नियंत्रण खो सकते हैं।

    अहंकार में कमी से इच्छा-शक्ति संतुलित होती है।

    भावनाओं को विकसित करना चाहिए , जितनी सकारात्मक भावनाएं कार्य के प्रति होंगी ; उतनी ही इच्छा-शक्ति मजबूत होगी। 

    इच्छा-शक्ति पर हमारी भावनाओं का गहरा प्रभाव पड़ता है ; अगर भावनाएं सकारात्मक हैं तो इच्छा-शक्ति पर अडिग रहा जा सकता है।

    विश्वास और दृष्टिकोण हमें कमी के प्रभावों से बचा सकती है।
 
    प्रेरणा भी हमें कमी के प्रभावों में भी इच्छा-शक्ति को बढ़ाने में सहायक होती है। 

7. इच्छा-शक्ति एक सीमित संसाधन नहीं है ,बल्कि एक भावना की तरह कम करती है। 

जिस तरह हम ख़ुशी या क्रोध से बाहर नहीं होते , वैसे ही हमारे साथ क्या हो रहा है और हम कैसा अनुभव करते हैं ; इसके आधार पर इच्छा-शक्ति घटती और बढ़ती है। 

8. जब भी कोई कठिन कार्य करना हो तो ; संवेदनाओं , भावनाओं और कार्यों का लक्ष्य एक ही होना चाहिए ; यह है " कार्य के प्रति समर्पित भाव से लग जाना और सीखकर , प्रयोग में लाकर कार्य को सफल बनाना। "

    योजना बनाने , तनावों को कम करने , तर्कपूर्ण निर्णय शीघ्र लेने की आदत और क्षमता का विकास करें।

    निराशाजनक स्थिति में स्वयं पर नियंत्रण आत्मविश्वास के बल पर रखो , विचलित हुए बिना ध्यान को कार्य पर केंद्रित करें ; इससे आपकी इच्छा-शक्ति बढ़ेगी और आप साहसपूर्ण तरीके से कठिन कार्य में भी सफलता प्राप्त करोगे।


संदर्भ ( REFERENCES ) :--





Sunday, September 12, 2021

5 SIGN OF GENIUS

 5 SIGN OF GENIUS


SUCCESS TIPS

    Talented people have some specialties, due to which they are optimistic and confident about themselves and their goals, due to their personality, they can do some such big things, which seem extraordinary and impossible for ordinary and useless people to imagine.


By adopting those special qualities and knowing our shortcomings honestly, if we also transform ourselves with determination, then we too can reach the peak of wealth and success of a great personality.


Follow some of the following special qualities and convert yourself towards the goal, we will automatically move towards success :-


    1. Even they born in poor family but they grow them and start with small level and grow their success so high level independently by their will power / self-confidence / smart work.

    They are unik in their society.

    They believe in self depend and never fear to take risk and never hear other persons or society to take decisions. They hear their heart voice and take  decisions by know own knowledge or skills.

    2. They are quorious person. They try to find all answers / solutions of their all questions or problems.

They never stop until not get solutions. 


    3. They always use their knowledge / skills to find improvements and always try to find new improved methods to make work smart and solve work problems in effective way.

They never have ego and never stop after find initial small success ; that a reason they get big success of real life.

    4. They never waste their time on overthinking or have attention on their weakness ; they concentrate their mind on their strength / skills / knowledge and make them in useful way to use in success of work goal.

    5. They always use their brain power and think positive about situations.

    They accept challenges regularly and work sudden to get solutions.

    They never hopeless so , sudden by their starting difficulties and get solutions by use their knowledge.

    They learn regular and try to improve them regular.

SUCCESS :

* Success is a continuous process.

* Success needs patience and continuity until find goal.

* Real success never give us ego and overconfidence.

* Overthinking give us fear which stop our try best to work hard and demotivate self esteem.

* Self confidence and work with plane until final goal is a key of success.

* Success give us motivation to grow next level of victory.

* No any impossible if we have strong will power to work continuous.


WATCH THESE TO GET MUCH SUCCESS/CONFIDENCE :--



Monday, September 6, 2021

SELF CONTROL l SELF RESTRAINT l ANGER l CONTROL REACTIONS


 SELF CONTROL,SELF RESTRAINT


SELF-CONTROL

“Self-control is the ability to control (conquer) emotions, thoughts, behaviour, anger, pride by controlling one's mind in the face of temptations and impulses.


In this way we can mould and control our emotions, behaviour and reactions according to our goal, situation and environment.”

    Self-control is the ability to protect ourselves from temptations and impulses by controlling and controlling our feelings, thoughts and reactions, behaviour according to our goals.

    Focusing our desires towards the goal and being disciplined in doing things, actions is the main factor of self-control.

    Keeping the impulse of thoughts towards the same goal and not coming under the control of emotions is the first step to success.

    Through self-control, we acquire the ability to resist against unwanted behaviour, desires or urges.

Through self-control, we can overcome our own thoughts, reactions, and tendencies like anger, jealousy, etc. This will positively increase our spiritual power and self-confidence.

    By self-control we can avoid bad thoughts, bad habits, anger. Such as intoxication, misconduct, misconduct, eating harmful junk-food, crime etc. can be avoided by bad tendencies. In this way we can avoid turning to evil and from causing great destruction.
 
These good habits will prove helpful in increasing our health and our respect in the future. In this way we will also gain the ability to live a stress-free life happily.

    Self-regulation is also essential in self-control.

Self-regulation is the ability to follow what you are thinking, feeling, what gets you closer to your goals.

    Self-discipline can come only by setting goals. One has to make a habit of completing the plan with firm discipline, then only self-restraint can come.
If we adopt initial greedy pleasures and small goals and waste time only in fun, friendship, aimless tasks etc., then how can big goals be achieved?

    To gain self-control, by sacrificing momentary pleasures, unnecessary pleasures, etc., positive actions that give delayed results (such as increasing knowledge, working hard, giving up laziness, etc.) One has to make a habit of doing it and at the same time, bad habits, addiction also have to be given up.
Efforts will also have to be made to remove one's own weaknesses by abandoning the ego.

    To increase knowledge and skills with true dedication by identifying oneself, one has to learn from constant situations with a positive attitude, move forward with progressive thinking.

Behaviour, perceptions have to be re-evaluated and moulded according to the circumstances and environment.

Self control (self restraint) :   

SELF-CONTROL

    
      Unless we understand and control the fickle and evil thoughts of our mind, it will be difficult to have self-control. 
So self-control can come only by understanding the mind. It is necessary to control the mind.

    The human brain is special from other creatures because the human brain has an infinite capacity to think, understand and change itself. Human beings have limitless mental characteristics. Man can use his intelligence according to his work and thinking and can bring the quality of stability.

Human beings can self-centre their intelligence and working abilities towards the goal. They have amazing ability of self-control.

    We can progress only by self-control.

    As mentioned above - Self-control means to control oneself and mould oneself according to action and to bring and control one's thoughts in a positive direction.

    Only by controlling the mind can we concentrate towards our goal.

    Moving thoughts, changes in thoughts or conflict is the mind. Unless the thoughts are stable, we cannot move forward in a positive direction on a goal. 
Therefore, controlling the mind is also self-control.

    Mind control is not easy. 
It requires patience as well as practice. 
This requires self-restraint. The restlessness of the mind is the biggest obstacle in the progress of man. 
Only by stabilizing the mind can we achieve our goal.

Self-control is the first step to success. No matter what the situation may come, we should move towards the goal patiently with patience.

Never go from one thought to another and pursue the same goal with restraint, only then progress can be achieved.

You will never be able to pursue a goal if you lose self-control after being frightened by the initial difficulties.

    We should come to control anger, worry, hatred, fear; At the same time, over-confidence, excessive thinking should also be controlled - only then we can move forward towards progress by being self-controlled.

Anger, excessive negative thinking have a bad effect on our personality and body. Anger is the main factor of mental weakness. In anger, we lose control of ourselves many times and become irrational and do such evil deeds, for which we have to repent for the rest of our life. Therefore, we should think positively on them and solve every problem patiently.

    Worrying, self-pity or anger can never solve the problem; On the contrary, we only do physical and mental loss of our time.

     Be calm in debate. Do not take any decision in haste out of anger or anger.

Keeping silence during anger or turning away from the cause of anger can save us from passion. Arguments should be avoided at such times.


Work requires consistency and patience :   

  • patience

    It is never right to do any work in a hurry, it can lead us to get confused. Raw knowledge can never give us permanent success.

    Whenever you start any work; First gather all the information about it, think about it. After that make an action plan, then go ahead.

Thus we can achieve the desired result in the work with fearlessness with confidence. We can move forward on our goal with self-confidence, non-stop.

Due to prior planning, we will be aware of the problems that may arise in advance and can also take timely measures.

We can do all these things only by controlling ourselves.

    We have to learn to control ourselves.
    The time spent in the beginning will pave the way for progress later on.
    
    Sometimes we lose our composure and end up doing something, the consequences of which give us self-aggrandizement throughout life; Therefore, never get discouraged, incontinent in any situation, find ways to get out of bad situation with positive thinking and plan on these measures with patience - success can be achieved only at the right time.

With patience, we can achieve a lot of success.
    

Special :

    We can conquer the mind only by having self-restraint. Only by conquering the mind can we attain real progress with patience, self-confidence.

    We must come to have complete control over ourselves. Concentrate thoughts and feelings on the goal and do not deviate from the goal; This is the secret of progress.

    Through self-control, self-restraint, we can move forward towards our goal in every difficulties and adversity; This will help in mental balance.

    All our abilities, skills can work only when we use them with self-restraint, fearlessness and firmness towards our goal.
If we cannot stick to the goal, then all our strength and abilities may be in vain.

    Unless you can concentrate your thoughts (mind) you cannot be successful either. Therefore, success can be ensured only by working diligently.

    Laziness, fear can be conquered by controlling your mind. Come under the control of the mind, do not postpone today's work for tomorrow, start the work with an action plan; Only then will success be assured.

    We can achieve victory only by controlling our feelings and desires.

    Control the mind, focus the mind on the goal, do not let the mind wander.
Do not get distracted even in adverse circumstances; Keep trying continuously by coming out with positive solutions with positive thinking. In this way, success will definitely be achieved within a certain time frame.

    These positive qualities of yours will bring you real success.

    "The basic mantra of success is self-control, controlling the thoughts of the mind. By adopting them, every work can be possible."

Have confidence in yourself and keep moving on the path of progress.


Sunday, September 5, 2021

आत्म नियंत्रण l आत्म संयम l आत्म अनुशासन l SELF CONTROL l SELF RESTRAINT

 आत्म नियंत्रण ( आत्म संयम ) 

SELF-CONTROL

     "आत्म-नियंत्रण प्रलोभनों और आवेगों के सामने अपने मन को नियंत्रित करके भावनाओं , विचारों , व्यव्हार , क्रोध , अभिमान पर नियंत्रण ( विजय प्राप्त करना ) बनाये रखने की क्षमता है। 

इस प्रकार हम अपनी भावनाओं , व्यव्हार और प्रतिक्रियाओं को हमारे लक्ष्य, परिस्थिति और वातावरण  के अनुसार ढ़ाल और नियंत्रित कर सकते हैं।"

    हमारी भावनाओं , विचारों और प्रतिक्रिआओं , व्यव्हार को हमारे लक्ष्य के अनुरूप ढ़ालना व उन्हें नियंत्रित करके प्रलोभनों और आवेगों से स्वयं को बचाने की क्षमता को ही आत्म-नियंत्रण कहते हैं।

    हमारी चाहतों को लक्ष्य की दिशा में केंद्रित करना और बातों , कार्यों को करने में अनुशासित होना ही आत्म-नियंत्रण का मुख्य कारक है। 

    विचारों के आवेग को एक ही लक्ष्य की ओर लगाए रखना और भावनाओं के वश में ना आना ही सफलता की पहली सीढ़ी है। 

    आत्म-नियंत्रण द्वारा हम अवांछित व्यव्हार ,इच्छाओं या आग्रह के ख़िलाफ़ प्रतिरोध करने की क्षमता प्राप्त करते हैं। 

आत्म-नियंत्रण द्वारा हम स्वयं के विचारों पर, प्रतिक्रियाओं पर और क्रोध, जलन आदि प्रवृत्तियों पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। इससे हमारी आत्मिक-शक्ति और आत्म-विश्वास में सकारात्मक वृध्दि होगी। 

आत्म-नियंत्रण द्वारा हम बुरे विचारों ,बुरी आदतों , क्रोध से बच सकते हैं। जैसे- नशा करना , दुराचार , दुराचरण ,हानिकारक जंक-फ़ूड खाना , अपराध आदि बुरी प्रवृत्तियों से बच सकते हैं। इस प्रकार हम बुराई की ओर जाने से और बड़े-बड़े विनाश होने से बच सकते हैं।
 
यही अच्छी आदतें आगे चलकर हमारे स्वस्थ्य ओर हमारे सम्मान में वृध्दि करवाने में सहायक सिद्ध होंगे। इस प्रकार हम तनाव-मुक्त जीवन ख़ुशी के साथ जीने की योग्यता हासिल भी करेंगे।  
    
    आत्म-नियंत्रण में स्व-नियमन भी आवश्यक है। 
आप जैसा सोच रहे हैं , महसूस कर रहे हैं , जो आपको आपके लक्ष्यों के नजदीक ले जाता है , उसे लक्ष्य के अनुसार दृढ़ता से पालन करने की क्षमता ही स्व-नियमन कहलाती है।

    लक्ष्य निर्धारित करने से ही आत्म-अनुशासन ( संयम ) आ सकता है। योजना को दृढ़ता के साथ अनुसाशित होकर पूर्ण करने की आदत डालनी होगी , तभी आत्म-संयम आ सकता है। 

अगर हम प्रारंभिक लोभवश सुखदाई और छोटे-छोटे लक्ष्य अपनाएंगे और समय को मौज मस्ती , यारी-दोस्ती , लक्ष्यहीन कार्यों आदि में ही बर्बाद कर देंगे तो बड़े -बड़े लक्ष्य कैसे प्राप्त हो सकते हैं ?

    आत्म-नियंत्रण प्राप्त करने के लिए क्षणिक सुख-सुबिधाओं , निरर्थक आमोद-प्रमोद आदि का त्याग करके विलंबित परिणाम देने वाले सकारात्मक कार्यों (जैसे - ज्ञान बढ़ाना ,मेहनत करना ,आलस्य त्याग कर कार्य में जुट जाना आदि-आदि ) को पूर्ण मनोयोग से करने की आदत डालनी ही होगी तथा साथ ही साथ बुरी आदतों , लत को भी छोड़ना होगा। 
अहंकार को त्याग कर स्वयं की कमजोरियों को दूर करने के प्रयास भी करने होंगे। 

    स्वयं को पहचान कर सच्चे मनोयोग से ज्ञान और कौशल में बृध्दि करने के लिए सकारात्मक दृश्टिकोण के साथ निरंतर परिस्थितियों से सीखना होगा , प्रगत्तिशील सोच के साथ आगे बढ़ना होगा। 
परिस्थितियों और वातावरण के अनुसार व्यव्हार , धारणाओं को पुनर्मूल्यांकन करके स्वयं को ढालना होगा। 

आत्म नियंत्रण ( आत्म संयम ) : 
CONFIDENCE

    जब तक हम हमारे मन रुपी चंचल और बुरे विचारों को नहीं समझेंगे और इन्हें वश में नहीं करेंगे तब तक आत्म-नियंत्रण करना मुश्किल होगा। अतः आत्म-नियंत्रण मन को समझने से ही आ सकता है। मन को वश में करना आवश्यक है। 

    मानव मस्तिष्क दूसरे प्राणियों से विशेष है क्यूंकि मानव मस्तिष्क में सोचने-समझने की और खुद को परिवर्तित करने की असीम क्षमता होती है। मानव में असीम मानसिक विशेषताएं हैं। मानव अपनी बुध्दि को अपने कार्य और सोच के अनुसार उपयोग में ला सकता है तथा स्थिरता का गुण ला सकता है। 
मानव अपनी बुध्दि और कार्य क्षमताओं को लक्ष्य की दिशा में आत्म-केंद्रित कर सकता है। इनमें आत्म-नियंत्रण की अद्भुत क्षमता होती है। 

आत्म-नियंत्रण करके ही हम उन्नत्ति कर सकते हैं। 

    जैसा ऊपर बताया गया है - आत्म-नियंत्रण का अर्थ है कि अपने आप पर नियंत्रण करना तथा कार्य अनुसार अपने को ढालना तथा अपने विचारों को सकारात्मक दिशा में लाना और नियंत्रित करना। 

    मन को वश में करके ही हम अपने लक्ष्य के प्रति एकाग्रचित्त हो सकते हैं। 

    चलायमान विचार , विचारों में बदलाव या द्वन्द ही मन होता है। जब तक विचार स्थिर नहीं होंगे , हम एक लक्ष्य पर सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ ही नहीं सकते हैं। अतः मन को वश में करना भी आत्म-नियंत्रण ही है। 

    मन पर नियंत्रण आसान नहीं है। इसके लिए धैर्य के साथ-साथ अभ्यास की जरुरत होती है। इसके लिए आत्म-संयम रखना होता है। मन की चंचलता मनुष्य की प्रगत्ति में सबसे बड़ी बाधा है। मन को स्थिर करने से ही हम अपना लक्ष्य , उद्देश्य प्राप्त कर सकते हैं। 

    आत्म-नियंत्रण ही सफलता की पहली सीढ़ी है। चाहे कैसी भी परिस्थिति आ जाये हमें संयम के साथ धैर्य -पूर्वक लक्ष्य पर बढ़ना चाहिए। 

कभी भी एक विचार से दूसरे विचार पर ना जाएँ और एक ही लक्ष्य का पीछा संयम के साथ करें , तभी उन्नत्ति प्राप्त हो सकती है। 

अगर प्रारंभिक मुश्किलों से घबराकर आत्म-नियंत्रण खो दोगे तो तुम एक लक्ष्य का पीछा कभी भी नहीं कर पाओगे। 

    हमें क्रोध , चिंता-फिक्र ,घृणा , डर को वश में करना आना चाहिए ; साथ ही साथ अति-आत्मविश्वास , अत्यधिक सोच पर भी नियंत्रण करना चाहिए - तभी हम आत्म-नियंत्रित होकर उन्नत्ति की ओर आगे बढ़ सकते हैं।

क्रोध , अत्यधिक नकारात्मक सोच हमारे व्यक्तित्व व शरीर पर बुरा प्रभाव डालती है। मानसिक दुर्बलता का मुख्य कारक क्रोध ही है। क्रोध में आकर हम कई बार स्वयं पर नियंत्रण खो बैठते हैं और आवेश में आकर विवेकहीन होकर ऐसे-ऐसे अनर्थपूर्ण कार्य कर बैठते हैं , जिनके लिए हमें जीवन भर पछताना पड़ता है। अतः हमें इन पर सकारात्मक विचार करने चाहिए और हर समस्या का धैर्य-पूर्वक समाधान निकलना चाहिए।

चिंता , आत्मग्लानि या क्रोध करने से कभी भी समस्या का हल नहीं निकल सकता ; उल्टा हम हमारे समय की , शारीरिक-मानसिक हानि ही करते हैं। 

    वाद-विवाद में शांति से काम लें। आवेश या क्रोध में आकर जल्दबाजी में कोई निर्णय ना लें।

क्रोध के समय मौन धारण करना या क्रोध के कारण से हट जाना हमें आवेश से बचा सकता है। ऐसे समय वाद-विवाद से बचना चाहिए। 


कार्य में स्थिरता और धैर्य आवश्यक है  :  
  • patience


    कभी भी कोई कार्य जल्दवाजी में करना ठीक नहीं होता, इससे हम पथ-भ्रमित हो सकते हैं। कच्चा ज्ञान हमें कभी भी स्थाई सफलता नहीं दिला सकता है। 

    जब भी कोई कार्य आरम्भ करो ; पहले उसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी इकट्ठी करो , उस पर विचार करो। इसके बाद कार्य योजना बनाओ ,तभी आगे बढ़ो। 
इस प्रकार हम निडरता के साथ आत्मविश्वास के साथ कार्य में वांछित परिणाम प्राप्त कर सकते हैं। हम अपने लक्ष्य पर आत्म-विश्वास के साथ , बिना रुके आगे बढ़ सकते हैं। 

पूर्व योजना के कारण हम आने वाली परेशानियों के बारे में पूर्व में ही अवगत होंगे और समय पर उपाय भी कर सकते हैं। 
ये सब कार्य हम स्वयं को आत्म-नियंत्रित करके ही कर सकते हैं। 

    हमें स्वयं पर संयम रखना सीखना होगा। 
    शुरुआत में व्यय किया गया समय बाद में उन्नत्ति का सकारात्मक मार्ग प्रशस्त करेगा। 
    
    कई बार हम संयम खोकर कुछ ऐसा कर बैठते हैं जिसका दुस्परिणाम हमें जिंदगी भर आत्मग्लानि देता है ; अतः कभी भी किसी भी परिस्थिति में निराश , असंयमित ना हो जाएँ , सकारात्मक सोच के साथ बुरी परिस्थिति से निकलने के उपाय खोजें और धर्य के साथ इन उपायों पर योजना बनाकर चलें - सही समय पर ही सफलता मिल सकती है। 

सब्र से काम लेकर हम बहुत कुछ सफलता प्राप्त कर सकते हैं। 


विशेष : 

    आत्म-संयम रखकर ही हम मन पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। मन पर विजय पाकर ही हम धैर्य , आत्मविश्वास के साथ वास्तविक उन्नत्ति पा सकते हैं। 

    हमें स्वयं पर पूर्ण-नियंत्रण करना आना चाहिए।  विचारों तथा भावनाओं को लक्ष्य पर एकाग्रचित्त करें एवं लक्ष्य से भटके नहीं ; यह ही उन्नत्ति का रहस्य है। 

    हम आत्म-नियंत्रण , आत्म-संयम द्वारा ही प्रत्येक कठिनाइओं और विपरीत परिस्थितियों में भी स्वयं के लक्ष्य की ओर आगे बढ़ सकते हैं ; यह ही मानसिक संतुलन में सहायक होगा। 

    हमारी सारी योग्यता , कौशल तभी कार्य कर सकते हैं जब हम आत्म-संयम , निडरता के साथ उन्हें अपने लक्ष्य पर दृढ़ता के साथ काम में लेंगे। 
अगर हम लक्ष्य पर टिके नहीं रह सकते हैं तो हमारी सारी सामर्थ्य ओर योग्यताएं व्यर्थ हो सकती हैं। 

    जब तक आप अपने विचारों ( मन ) को एकाग्रचित्त नहीं कर सकते आप सफल भी नहीं हो सकते हो। अतः मनोयोग से कार्य करने पर ही सफलता सुनिश्चित हो सकती है। 

    अपने मन को वश में करके आलश्य , डर पर विजय पाई जा सकती है। मन के वश में आकर आज का कार्य कल पर नहीं टालें , कार्य-योजना के साथ कार्य आरम्भ कर दें ; तभी सफलता सुनिश्चित होगी। 

    अपनी भावनाओं , इच्छाओं को वश में करके ही हम विजय पा सकते हैं। 

    मन पर नियंत्रण रखें , मन को लक्ष्य पर केंद्रित करें , मन को भटकने ना दें। 
विपरीत परिस्थितियों में भी विचारों को विचलित ना करें ; सकारात्मक सोच के साथ सकारात्मक हल निकलकर निरंतर प्रयास करते रहें। इस प्रकार एक निश्चित समय सीमा पर सफलता अवश्य प्राप्त होगी। 

    आपके यह ही सकारात्मक गुण आपको वास्तविक सफलता दिलाएंगे। 

    " सफलता का मूल मंत्र ही आत्म-नियंत्रण है , मन रुपी विचारों को नियंत्रित करना है। इन्हें अपनाकर हर कार्य संभव होगा।"

स्वयं पर आत्मविश्वास रखो ओर उन्नत्ति के मार्ग पर बढ़ते चलो। 
    




अतीत पर सकारात्मक सोच के साथ विचार करना कभी बुरा नहीं होता है l अतीत l Past l Success Tips In Hindi

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