Sunday, March 19, 2023

अतीत पर सकारात्मक सोच के साथ विचार करना कभी बुरा नहीं होता है l अतीत l Past l Success Tips In Hindi

 

" वर्तमान में रहकर कार्य करें; लेकिन लक्ष्य और योजना निर्धारित करते समय अतीत पर भी विचार जरूर करें !"
(अतीत पर सकारात्मक सोच के साथ विचार करना कभी बुरा नहीं होता है; इससे ही हमें वर्तमान में सर्वश्रेष्ठ कार्य करने की सीख मिलती है।
)
अतीत की अच्छी यादें 

"वर्तमान में रहकर कार्य करें; लेकिन लक्ष्य और योजना निर्धारित करते समय अतीत पर भी विचार जरूर करें !"

मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप मेरा आशय समझ रहे हैं कि मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ; जबकि हम सब एक ही बात कहते हैं कि अतीत और भविष्य की चिंताएं और उन पर दुःख मानाने मैं समय बर्बाद ना करते हुए हमें वर्तमान कार्यों पर ध्यान एकाग्रः करना चाहिए।

हाँआप  सही बोल और समझ रहे हैं, मैं भी यही मानता हूँ कि अतीत और भविष्य की बुरी बातों से ध्यान हटाकर; हमें वर्तमान पर ध्यान एकाग्रः करके वर्तमान को सर्वश्रेष्ठ बनाना होगा; तभी हमारा भविष्य सर्वश्रेष्ठ और खुशहाल होगा।

यहाँ मैं इसी बात मैं एक सुझाव यही देना चाहता हूँ जो कि सफलता के लिए आवश्यक है बह है; कि हमें लक्ष्य और योजना बनाते समय हमारे हर उद्देश्यों के साथ-साथ हमारे अतीत के सभी अच्छे-बुरे क्षणों, सफलता-असफलता के कारणों की एक बार पुनरावृत्ति अवश्य करनी चाहिए।


Sunday, March 12, 2023

हम कार्य की शुरूआत करने से क्यों डरते हैं? l डर को कैसे दूर करें ? l How to deal with fear ?

 

हम कार्य की शुरूआत करने से क्यों डरते हैं?

    

डर के आगे जीत है !

    जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हमारे जीवन की सफलताएँ हमारे मन के नियंत्रण और स्वयँ पर पूर्ण-विश्वास और स्व-नियंत्रण पर ही निर्भर करती हैं।

स्व-नियंत्रण के साथ, समझदारीपूर्ण सोच और विचार के साथ लिए गए निर्णयों पर सही दिशा में किये गए प्रयास ही किसी व्यक्ति को कामयाबी के शिखर तक ले जा सकते हैं।

हम हरदम सोचते तो काफी कुछ हैं; सोच-सोच में ही कई बड़ी-बड़ी कल्पनाएँ हमें साकार होती हुई भी दीखती हैं और हमें विश्वास भी होता है कि इस विशेष कार्य को हम आसानी से कर भी सकते हैं; लेकिन क्या कभी सोचा है कि; क्यों हम बस सोच-सोच कर ही समय बर्बाद करते हैं ?, क्यों जब भी हम कार्य को क्रियान्वित करने के लिए पहला कदम उठाने की सोचते हैं; तो पुनः कई बातों विचार करने का मन करता है ?, क्यों हम अपने लिए गए निर्णयों पर तुरन्त कार्य शुरू करने से डरते हैं ?


आइए जानते हैं; ऐसा क्यूँ होता है ?

1. अगर गहराई में जाकर आत्म-निरिक्षण करें; तो हमें इन सबका एक ही कारण समझ आएगा कि; यह सब हमारे मन में उपजे डर, भविष्य की परेशानियों का सामना करने के डर और आलस्य, लोगों का डर आदि-आदि ही हमें आगे कदम बढ़ाने से रोकते हैं।

इस अवस्था में जितना डरे मन से अपनी क्षमताओं, कौशल, अनुभव की तुलना करते हैं; तो हमें लगता है कि हमें कोई बाहरी सहारा नहीं है, क्यों नहीं आज ही सारी सुविधाएँ हमारे पास हैं ?, आदि-आदि नकारात्मक विचार और काम शुरू करने के बहाने आने शरू हो जाते हैं। हमें कई तरह-तरह की कमियों, असफलताओं की कल्पनाएँ आनी शरू हो जाती हैं तथा ऐसा दिमाग में वातावरण बन जाता है कि हम पुनः अपनी योजना पर विचार करने को विवश हो जाते हैं।

2. हमारी सबसे बड़ी कमी हमारे ऊपर स्व-नियंत्रण का ना होना है।
आत्म-नियन्त्रण में शक्ति होती है !

हम सारी सुविधाएँ, कौशल, ज्ञान कार्य शुरू करने से पहले ही पा लेना चाहते हैं, साथ ही कामना होती है कि पहले ही दिन सब योग्यताएँ आ जाएँ; ताकि सब प्रतियोगियों को पीछे छोड़कर कामयाब जल्दी से जल्दी हो जाएँ। यही कामनाओं की अति जब जल्दी पूरी होती हुई नहीं दीखती हैं; तो हम हताशा और दुःख में डूबकर आत्म-विश्वास ही खो देते हैं और कार्य करना मुश्किल दिखाई देने लगता है।

3. हमें सबसे बड़ा डर लोगों का लगता है।

लोग मेरे काम के बारे में क्या कहेंगे ?, अगर काम असफल हो गया तो लोग हँसेंगे और तरह-तरह की बातें बनाएँगे ?, समाज में मेरी इज्जत तो नहीं बिगड़ जाएगी ?, अगर में छोटा सा काम या छोटी शुरूआत करूँगा; तो लोग क्या कहेंगे ?, आदि-आदि नकारात्मक विचार हमें घेर लेते हैं; जिनके कारण हमें बैचेनी, चिंताएँ और कुंठाएँ आती हैं और हम सभी योग्यताएँ, कौशल होते हुए भी कार्य शुरू करने से रुक जाते हैं।


आइये समझने की कोशिस करें; कि कैसे हम हर नकारात्मक विचारों को दूर करके, डर पर नियंत्रण बनाकर कार्य शुरू करने की हिम्मत, शक्ति प्राप्त कर सकते हैं :-

1. हम कार्य शुरू करने से पहले ही हर जानकारी, ज्ञान पा लेना चाहते हैं; क्यूंकि हम डरपोक हैं, हमें लालसा रहती है कि कार्य के शुरू होने के पहले ही दिन महान बनकर बिना किसी रुकाबट के समृद्ध हो जाएँ; जो कभी सही बात नहीं है।

हर कार्य की सफलता व्यक्ति के निरंतर सही दिशा में धैर्य के साथ कठोर परिश्रम और सूझ-बूझ के द्वारा ही प्राप्त होती है

यह भी सच्चाई है कि चाहें हम कितना भी ज्ञान, कौशल प्राप्त कर लें; लेकिन कार्य करते समय भी कई अड़चनें

आएँगी; जिनकी जानकारी और ज्ञान कार्य के साथ-साथ ही प्राप्त करना होगा।

अतः; स्वयं पर विश्वास के साथ शुरूआती आवश्यक जानकारी के साथ-साथ कार्य शुरू करें; जैसे-जैसे कार्य बढ़ेगा; आपकी जानकारी, ज्ञान, कौशल बढ़ता जायेगा; बस आवश्यकता होगी कि हम सजग रहें और कार्यों के साथ-साथ मुश्किलों को हल करने के सर्बश्रेष्ठ प्रयास करते रहें।

2. मन के डर, हीन-भावनाएँ, नकारात्मक-विचारों, बड़ी-बड़ी लालसाओं, कामनाओं पर नियंत्रण रखकर ही हम सही निर्णय सही समय पर ले सकते हैं।
आत्म-संतोष के साथ कार्यों को एकाग्रः होकर करें !

मन के डर हमें बैचेन करते हैं, डर से कभी समाधान प्राप्त नहीं होते हैं !

3. हाँ ! कई समस्याएँ आती हैं; जिनमें से ज्यादात्तर हम सूझ-बूझ के साथ प्रयास करके हल कर सकते हैं।

लेकिन ध्यान रखें- कोई भी समस्या तुरन्त दूर नहीं होती है; इनको हल करने में आवश्यक समय तो लगेगा, आपको भागदौड़ तो करनी ही होंगी। तो इन बातों को सकारात्मकता, निडर-भाव के साथ स्वीकार करें।

हर समस्या पर ख़ुशी के साथ आत्म-विश्वास रखते हुए विचार करें तथा कारणों को खोजकर समाधानों पर विचार करें; तभी आप इन समस्याओं से निकल कर आगे बढ़ पाएँगे।

इसमें भी एक बात ध्यान रखें; कि जो समस्याएँ कार्य के साथ-साथ दूर हो सकती हैं; उनके लिए कार्य शुरू ना करना आपकी मूर्खता ही होगी।

ऐसे समय सूझ-बूझ के साथ कार्य शुरू कर दें तथा समस्याओं को क्रमबार (क्रमबद्ध तरीके से) लिख कर उनके समाधानों की योजना (समय-सीमा के साथ) बनाकर कार्य करते हुए स्व-अनुशासन के साथ दूर करते जाएँ। लेकिन इनके लिए कार्यों के समय को बाधित ना करें और ना ही कार्य रोकें। तभी धीरे-धीरे कार्य बढ़ता जाएगा, दिक्कतें भी समय के साथ-साथ दूर होती चली जाएँगी।

हाँ ! कुछ समस्याएँ और परेशानियाँ ऐसी भी होंगी; जिनको हल करना आपके वश में नहीं होगा (जैसे कोई योग्य व्यक्ति समय पर मिलना, किसी ओर से कोई समस्या हल करवाना या दूसरों के द्वारा कोई सेवा प्राप्त करना, किसी कर्मचारी का आपके प्रति ईमानदार होकर आपके कार्यों को करना, किसी कर्मचारी का अकस्मात् जॉब छोड़ देना, कोई कानूनी अड़चन आ जाना जो आपके वश में नहीं है, लोगों का सहयोग ओर समर्थन प्राप्त करना, आदि-आदि)। ऐसी स्थिति में दुखी, हताश नहीं होकर; कोई दूसरा बीच का समाधान तुरन्त करें ओर यदि यह भी संभव नहीं हो रहा है; तो इनको भूल कर जो भी संभव हो सके;उन पर ध्यान देकर नई कार्य योजना तुरन्त बनाएँ ओर नए रास्ते पर चल कर अपने कार्यों को आगे बढ़ाएँ। ऐसा करने पर आप पाएँगे कि जैसे-जैसे कार्य आगे प्रगत्ति करेगा; ज्यादातर समस्याएँ दूर होती जाएँगी।

ये सब कार्य आप ख़ुशी ओर शांति के साथ तभी कर पाएँगे; जब आप स्वयँ पर, कार्य योजनाओं पर विश्वास करेंगे ओर धैर्य के साथ सर्वश्रेष्ठ परिणामों की उम्मीद के साथ लगातार कार्यों को जारी रख पाएँगे। सब आप पर ही निर्भर करता है।

4. यह सत्य है; कि हमारे कार्यों में काफी कम ही बड़ी-बड़ी बाधाएँ या समस्याएँ आती हैं; जितना हम कार्य शुरू करने से पहले अनुमान लगाते हैं।

(i). अगर ध्यान से देखा जाए तो हमारे 80% डर वह होते हैं; जिन्हें हम कार्यों को करते हुए भी सजगता के साथ योजना बनाकर दूर कर सकते हैं; जिनका कभी भी कोई नकारात्मक प्रभाव हमारे कार्यों की सफलताओं पर नहीं पड़ता है।

हम मात्र आलस्य के कारण या आत्म-नियन्त्रित नहीं होने के कारण इन्हें करने से डर जाते हैं। अगर सूझ-बूझ के साथ; निश्चित क्रमिक योजनाएँ बनाई जाएँ; तो छोटी शुरूआत करके और कार्यों के साथ-साथ अतिरिक्त परिश्रम करके हर समस्या दूर की जा सकती है। अतः इन 80% दिक्कतों को सकारात्मक भाव के साथ लें, कार्य शुरू करें तथा योजना के साथ दिक्कतें दूर करते जाएँ।

(ii). हाँ ! जो 20% समस्याएँ जो शुरूआत में हल होना मुश्किल होगा; उन पर ध्यान दें, समस्याओं के वास्तविक कारण खोज कर; उनके समाधानों पर गंभीरता के साथ चिंतन-मनन करें; लेकिन हताश-निराश बिलकुल भी ना हों।

अगर ये 20% समस्याएँ आपके अनुभव, कौशल, ज्ञान (जानकारी का आभाव) की कमी के कारण हैं; तो कार्यों को करते हुए ही धीरे-धीरे इनको सीखें, अच्छे लोगों से जानकारी लें, ट्रेनिंग लें, सम्बंधित पुस्तकें पढ़ें और अपनी कमियों को दूर करें; लेकिन धर्य और आत्म-विश्वास कभी ना खोएँ।

जो भी संभव हो; शांति के साथ कार्य के साथ-साथ जानकारियाँ बढ़ाते जाएँ।

ऐसा करते जाने से; एक समय बाद ये 20% समस्याएँ भी स्वतः ही समाप्त होती चली जाएँगी तथा ये कभी भी आपकी सफलताओं को ज्यादा प्रभावित नहीं कर पाएँगी।

निम्न बातें समझें; तभी आप अच्छा लाभ ले पाएँगे:-

1. हमेशा कोई नया कार्य शुरू करने से पहले; उसके अच्छे-बुरे पक्षों का आकलन जरूर करना चाहिए।

इन्हें डर नहीं; समझदारी कहेंगे। इसमें हम कार्यों को करने से होने वाले फायदे और नुकसान का अनुमान लगाकर सही निर्णय तक पहुँच सकते हैं।
साथ ही कार्यों को करने में आवश्यक जानकारी, अनुभव और कौशल पर भी विचार करना चाहिए; तभी कार्य सूझ-बूझ के साथ चुनना चाहिए।
अगर इन कार्यों को करने के लिए आवश्यक ज्ञान या अनुभव आपको ना हो; तो इसके लिए भी उपाय लिखकर, उन पर ध्यान देना और कमी पूर्ण करना भी आवश्यक होगा। इसके लिए अलग से योजना बनाकर कार्य करें।
ऐसा करने पर ही आप चिंता रहित होकर कार्यों पर ध्यान एकाग्रः कार्य पाएँगे।

2. विचारों पर और स्वयँ की भाबूकताओं पर नियन्त्रण रखें।

जब भी गलत और नकारात्मक विचार ध्यान में आएँ; तब उन पर तुरन्त सोचें-गंभीरता से विचार करें। अगर ये सब मन के डर हों तो उन्हें सकारात्मक सोच के साथ तुरन्त नकार दें। ज्यादा बुरा सोचने से बचें और कार्यों में ध्यान एकाग्रः करें; तभी आप डरों से बचे रहेंगे।

3. स्वयँ की, स्वयँ के कार्यों की तुलना दूसरों से करना बन्द करें।

“आप जैसे भी हैं; स्वयँ के लिए सर्वश्रेष्ठ हैं।“ ऐसा करने और मानने से ही आप चिंता, कुंठा, निराशा से बचे रहेंगे।
ऐसा करने से आप बैचेनी, डर, हीन-भावनाओं के कारण परेशानी से बचे रहेंगे और आप आत्म-विश्वास के साथ कार्यों पर ध्यान दे पाएँगे ।
हमेशा बड़ा सोचें और कार्यों को सर्वश्रेष्ठ तरीकों से करते रहें, तथा साथ ही साथ स्वयँ की कमियों को दूर करने की आदत डाल लें; तभी आप कामयाबी के शिखर तक बिना डर, चिंता के साथ; ख़ुशी प्राप्त करते हुए पहुँच पाएँगे।
ध्यान रखें; कि कोई कार्य असंभव नहीं होता है; अगर आप कार्यों को पूर्ण करने के प्रति दृढ़-संकल्पित हों और सही दिशा में मेहनत करें।

4. फ़िजूल के भ्रम में फंसकर अपने मन में डर ना पालें, धारणाएँ सकारात्मक रखें।

आप जैसा सोचोगे, आपकी जैसी धारणाएँ होंगी; आपका अवचेतन-मन उसी प्रकार के विचार, अवसर आपके सामने उपस्थित करेगा।
अतः; अपने बारे में, आपके कार्यों के बारे में और परिणामों के बारे में हमेशा सकारात्मक सोचें और अच्छे की उम्मीद के साथ मेहनत करें।

5. हमेशा स्वयँ को कार्यों में व्यस्त रखें।

जितना आप खाली (निठल्ले) बैठे रहोगे; आपको तरह-तरह के विचार आकर सताते और डराते रहेंगे।

6. जीवन में आत्म-संतोष जरूरी है।

असंतोष होने पर हमारी लालसाएँ बढ़कर उसे पाने के लिए हमें बैचेन करती हैं; हमारा धैर्य टूट कर हमें- " कहीं असफल ना हो जाएँ" के डर सताने लग जाते हैं।
कई बार ऐसे डर और सफल होने की जल्दबाजी हमें दूसरों को धोखा देने, अनैतिक कार्यों से धन एकत्रित करने, दूसरों से जलन और प्रतियोगिता की बुरी प्रवृत्ति, लूट-खसोट,जैसी गलत राह पर ले जा सकती है।
अगर थोड़ी सी भी परेशानी या छोटी-छोटी असफलताएँ मिल जाएँ; तो मन अशान्त होकर हमें कुंठा, निराशा, चिंता-फ़िक्र, अवसाद की ओर धकेल देती है। ये सब बातें मिलकर हमें अनिर्णय की अवस्था में ले जा सकती हैं; जो की सफलता के लिए हानिकारक सिद्ध होंगी।

7. सोच-समझ कर कार्य करने चाहिए। अति-आत्म-विश्वास से बचें और ईमानदारी के साथ स्वयँ की कमियों को सुधारते रहें।

जो भी कार्य जितना जल्दी शुरू कर दोगे; उसके परिणाम सही समय पर और सर्वश्रेष्ठ प्राप्त होंगे।
तुरन्त गंभीरता से सोचें, योजना पर कार्य आरम्भ कर दें। जो भी सोचना-समझना है; एक ही बार करें; डरों के कारण अपने लक्ष्यों को कभी भी ना बदलें; तभी आप कामयाबी को प्राप्त कर पाएँगे।

 

विशेष:

अधिक जानकारी के लिए निम्न बातें पढ़ें और चिंतन-मनन के साथ समझते हुए अपने जीवन में प्रयोग करें।
इन बातों को पढ़ने पर ही; आप ऊपर की बातों को सही ढ़ंग से समझ पाएँगे:--


धन्यबाद !!


Thursday, March 9, 2023

बातचीत करना एक कला है l लोक व्यवहार के द्वारा सफलता पाएँ l वार्तालाप की कला l अच्छे वक्ता बनें


बातचीत करना एक कला है !
व्यवहारिक बातचीत द्वारा समस्याएँ हल करना आसान होता है !
( लोक व्यवहार के द्वारा सफलता पाएँ
)

बातचीत करना एक कला है !

बातें समझाने का कौशल 

हमारा जीवन लोक व्यवहार  और दूसरों के साथ संबंधों पर भी निर्भर करता है।

हम बोलकर और प्रतिक्रियाएँ देकर हमारी बातें, सोच और भाबनाएँ दूसरों को समझाते हैं।

व्यवहारिक बातचीत द्वारा समस्याएँ हल करना आसान होता है !

लोक व्यवहार में कुशलता ही इंसान को अपने परिवार, समाज, कार्य-क्षेत्र और हर जगह आकर्षक और सफल बना सकती है।

व्यवहारिक और शांतिपूर्ण बातचीत द्वारा हम लोगों का दिल जीत सकते हैं, तथा साथ ही जीवन में इज्जत-शोहरत, मान-सम्मान, समृद्धि-प्रसिद्धि प्राप्त कर सकते हैं।

चाहें हम कितने भी योग्य क्यों ना हो, लेकिन जब तक हम लोगों से मिलना-जुलना और उनको पहचानकर व्यवहार करना नहीं जानते; तब तक लोगों से लाभ प्राप्त नहीं कर सकते हैं, और ना ही अपनी बातें लोगों से मनवा सकते हैं। 

लोगों से मिलना-जुलना, उन्हें अपने पक्ष में करना और उनसे अपनी बातें मनवाना या समर्थन प्राप्त करना; हमारे लोक-व्यवहार और बातचीत के तरीकों पर ही निर्भर करता है।

आइये जानते हैं कि बातचीत कैसे करें ?, लोगों से कैसे सम्बन्ध बनाकर इज्ज़त के साथ-साथ सफलता प्राप्त करें :-

1. बातचीत करने की कला के लिए पहले निम्न लिंक पढ़ें; इससे आपको बातचीत क्या है ?, कैसे बातचीत को आकर्षक बनायें आदि-आदि पूर्णतः समझ जायेंगे।

इन्हे पढ़ने के बाद ही आगे पढ़ें; तभी आगे की बातों की गहराई आप समझ पाएँगे :-

" बातचीत करना एक कला है "

2. बातचीत को व्यवहारिक और असरदायक बनाने के लिए पहले दूसरों की बातों को ध्यान लगाकर सुनें। दूसरों को बोलने का पूरा मौका दें; इससे बोलने बाले को आप अच्छे से समझ पाएँगे और उनकी बातों के उद्देश्य और नियत जानकर आप सटीक उत्तर या सुझाव दे पाएँगे।

अत्तर देने में कभी जल्दबाजी ना करें। पहले परिस्थितियों पर विचार करें; तभी सही हाव-भाव-मुद्रा में प्रतिक्रिया और उत्तर दें।

3. ध्यान रखें आपका एक शब्द कई रिश्ते बना भी सकता है या बिगाड़ भी सकता है; अतः बिना सोचे-समझे या जल्दबाजी में आवेश और भावनाओं में आकर कुछ भी ना कहें।

पहले पूरी बातें और स्थितियों-परिस्थितियों पर गहराई में जाकर आकलन करें; तभी विनम्रता के साथ साहसपूर्ण सही प्रतिक्रिया दें; तभी आपकी बातें दूसरों पर असर कर पाएँगी।

दूसरों से बातें करने के लिए आपके पास पूर्ण जानकारी होनी आवश्यक है।

जब तक आप जानकारी ना प्राप्त करें; तब तक चुप रहना ही उच्चित रहता है। अगर कोई दबाब भी हो; तो आप उन्हें कह सकते हैं कि आपको सोचने-समझने का समय चाहिए; लेकिन उत्तर जल्दबाजी या दबाब में आकर कभी ना दें। अन्यथा आपके रिश्ते बिगड़ सकते हैं या बना बनाया काम आपके एक शब्द से बिगड़ भी सकता है।

4. हमेशा खुशमिजाज और हसमुख (HAPPINESS) भावों के साथ, निर्भीक होकर बातचीत करें। हर शब्द सोच-समझकर, परिणामों को देखते हुए बोलें।

कभी भी बोलने या उत्तर देने में जल्दबाजी ना करें।

जो भी बोलें कम शब्दों में सटीक बोलें। कभी भी अनावश्यक विस्तार के साथ बातें को ना बढ़ाएँ; अन्यथा ऐसा करके आप स्वयं के साथ-साथ दूसरों का भी समय ही बर्बाद करेंगे। ऐसा करने पर आप अपनी छवि दूसरों की निगाह में गिराते हैं।

अतः साफ और स्पष्ट शब्दों में उत्तर या सुझाव देना उच्चित होगा।

5. कभी भी ना तो किसी को अपमानित करो और ना ही किसी और की अपमानित बातों और व्यवहार को सहन करो। आत्म-सम्मान जरूरी है; अतः किसी भी बुरे विचारों, बुरी बातों को नजरअन्दाज (IGNORE) ना करें और ना ही अपनी प्रतिक्रिया कड़े शब्दों में कहने से डरें। आगे बालों को साफ शब्दों में ऐसा कहने से शक्त बचने की सलाह तुरन्त दें। लेकिन ऐसा करते समय अपने आवेश, क्रोध पर पूर्ण नियंत्रण रखें।

6. किसी भी समस्या को पूर्णतः समझने के बाद ही अपनी राय दें। इससे आपमें सूझ-बूझ के साथ बातें कहने की परिपक्वता वाला व्यक्तित्व (परिपक्वव्यक्तित्व)प्रदर्शित होगा और आपका सम्मान दूसरों की निगाह में बढ़ेगा।

7. बातें खुशमिज़ाज व्यवहार, नैतिक भावों के साथ करें।

घमण्ड, कुंठा, जलन के भाव लाने या सोचने से बचें।

इससे आपके चेहरे पर सर्वश्रेष्ठ व्यक्तित्व झलकेगा; जो कि सामने वालों को आकर्षित करेगा। इन बातों और गुणों के कारण सभी आपकी इज्जत करके आपकी बातों को महत्त्व देंगे।

यह किसी अन्य से अपनी बातें मनवाने का उच्चित और प्रभावी तरीका होता है। तनाब मुक्त वातावरण में सहमति बनानी आसान होती है।

8. हमेशा बातें खुले दिमाग से सहज-भावनाओं के साथ कहें; लेकिन सच कहने से कभी भी ना डरें; चाहें बातें कुछ कड़बी ही क्यों ना हों।

हाँ !!; ऐसी कड़बी सच्चाई बोलने से पहले सामने बाले को विनम्रता के साथ अबगत भी कर दें; तभी कड़बी बातें स्पष्ट शब्दों में कह दें। पहले अवगत करने से सुनने बाले को आपकी बातें ज्यादा कड़बी नहीं लगेंगी और आपके सम्बन्ध भी बिगड़ने से बच जाएँगे।

जो भी बातें कहें; स्पष्ट और कम शब्दों में कहें। आवश्यकता से ज्यादा विस्तार में बोलना अच्छा नहीं होता है।

9. अच्छे लोगों का विनम्रता के साथ आभार प्रकट करते हुए बातें कहें तथा उनको हमेशा आगे बढ़ने में मदद के साथ-साथ प्रोत्साहित भी करें। इनके दूरगामी परिणाम काफी अच्छे होंगे।

10. विनम्रता के साथ दूसरों की भावनाओं की कद्र करते हुए बातें करें। कभी भी अपनी बातों को दबाब बनाकर मनवाने की कौशिश ना करें; अन्यथा बातें बिगड़ सकती हैं और यही बातें बड़े विवादों में परिवर्तित हो सकती हैं। अतः हमेशा फैसले या बातें नैतिक आधारों पर ही करने की कोशिश करें।

11. बातें करते समय हमें ख़ुशी-उल्लास महसूस होना चाहिए। हमारे हाव-भाव निडर, आत्म-विश्वास से भरे हों, हमारा व्यक्तित्व सहज-भाव वाला हो। बातें करते समय चेहरे पर मुस्कुराहट बनाए रखें। 

समझदारी के साथ लोगों की बातें सुनें, फिर उत्तर या अपनी प्रतिक्रियाएँ दें।

12. बातों के दौरान सामने वाले की उसके द्वारा किये अच्छे कार्यों, अच्छे व्यवहार और व्यक्तित्व की प्रशंसा करें और उसे आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित भी करें। इससे उनके दिल में आपके लिए सम्मान, अपनत्व जाग्रत्त होगा। इससे वह आपकी बातों की इज्जत करेगा।

13. अगर फ़ोन के द्वारा किसी से बातें करें; तो पहले उससे जानकारी ले लें कि " क्या यह समय बात करने के लिए सही है ?"; अगर बह हाँ कहे; तो बातचीत करें; अन्यथा उससे समय मांगे और उसी समय पुनः बातें करें।

इससे आप उसकी सुविधानुसार उससे लम्बी और सकारात्मक बातें कर पाएँगे और अच्छे परिणाम की सम्भावनाएँ बढ़ जाएँगी।

14. निम्न जरूरी बातें अपनाना लाभकारी रहेगा :-

ख़ुशी के साथ आपने विचार प्रकट करने की कला 

            (i). कभी भी किसी व्यक्ति की आलोचना, निंदा, शिकायत ना करें। ऐसा करने से आप अपनी इज्जत और व्यक्तित्व गिरा देंगे।

            (ii). बातों के दौरान लोगों में स्वयँ की दिलचस्पी दिखाना जरूरी है। ऐसा हम उनकी बातों को ध्यानपूर्वक सुनकर, सही समय पर सही राय प्रकट करके कर सकते हैं।

            (iii). हमेशा बातें सामने बाले की रूचि, जिज्ञासा, सोच के अनुसार करें; तभी बातें लम्बे समय तक चल सकती हैं। उबाऊ बातों को करने से बचें।

            (iv). अगर आपने कुछ गलत कह दिया हो, या कुछ गलती हो जाए; तो तुरन्त ख़ुशी के साथ अपनी गलती स्वीकार करें। अपनी गलती छुपाने के लिए बातों को तोड़-मरोड़ कर कहने से बचें।

ऐसा करने से आपकी इज्जत बढ़ेगी।

            (v). लीडर बनने के लिए लोगों को पहचानना, उनके हाव-भाव और भावनाओं को जानना जरूरी होता है; तभी आप दूसरों को कुछ समझा पाएँगे और अपनी बातें मनबाने में सफल होंगे।

15. आप आत्म-विश्वास के साथ दमदार तभी बोल पाएँगे, जब आपको विषय के बारे में विशेष जानकारी हो, स्वयँ पर पूर्ण विश्वास हो।

अतः हमेशा स्वयँ को पूर्ण प्रेरित रखें, जानकारी प्राप्त करके ही बोलें।

जो भी बोलें सोच-समझकर बोलें। भावुकता में आकर या हड़बड़ी के साथ कभी भी ना बोलें।

16. किसी की आलोचना या निंदा करके उसे सुधारने का प्रयास ना करें।

कोई भी व्यक्ति आलोचना स्वीकार नहीं करता है,ना ही अपनी गलती इस प्रकार मानता है; क्योंकि कोई भी व्यक्ति अपने आत्म-सम्मान की रक्षा जरूर करेगा। वह स्वयँ को सही साबित करने के लिए कोई ना कोई बहाना खोज ही लेगा और आपसे दुश्मनी पाल सकता है। अतः किसी की आलोचना करके उसके आत्म-सम्मान को ना गिराओ; अन्यथा हानि आपको ही होगी।

ऐसा करने से आपके सम्बन्ध उस व्यक्ति से बिगड़ जाएँगे।

हमें आलोचना की बजाय उसे प्रोत्साहित करके, प्रेमपूर्वक सही जानकारी देकर, गलतियों के परिणाम बताकर उसे सुधारने की कौशिश करनी चाहिए।

व्यक्ति को माफ़ करना महानता होती है। अतः किसी को माफ़ करके, प्रोत्साहन, उसे आत्म-प्रेरित करके आजीवन सुधारा जा सकता है।

17. दूसरों के विचारों, भावनाओं की कद्र करें।

18. दूसरों की बातों को अनसुना ना करें, ना ही उनकी बातों की हंसी उड़ाएँ और ना ही उन्हें गलत साबित करें। उनकी बातें सुनने, समझने के बाद ही अपनी बातें कहें। इससे आपकी बातों का वे लोग सम्मान करेंगे और आप अपनी बातें उनसे मनवाने में सफल रहेंगे।

19. निम्न बातें आपकी बातचीत को प्रभाबी बनाकर आपके व्यक्तित्व में बृद्धिकारक सिद्ध होंगी :-

            (i). बात करने के तरीकों, आपके बातों के दौरान के हाव-भावों का आपके व्यक्तित्व पर काफी असर पड़ता है। आत्म-विश्वास के साथ खुशमिजाज तरीकों से बातें करने पर सामने वाले की नज़रों में आपका व्यक्तित्व आकर्षक हो जाता है।

ध्यान रहे; एक अच्छे वक्ता और लीडर की कम्युनिकेशन-स्किल (बातचीत करने के तरीके) आकर्षक और दमदार होनी चाहिए।

            (ii). जो भी बात करें उसमें स्वयँ को सहज (confertable), तनाबमुक्त महसूस करें।

            (iii). जो भी बोलें सोच-समझकर, विषय से सम्बन्धित ही बातें करें। विस्तार में ना जाएँ, ना ही बोलते समय विषय से दूर चले जाएँ। जितना संभव हो संक्षेप में अपनी बातें कहें।

            (iv). बातें करते समय आत्म-संयमित रहें, शांति बनाए रखें।

जो भी बोलें सामाजिक दायरों में रहकर बोलें।

सामने बाले को आप में अपनत्व के भाव दीखने चाहिए। इससे आप दोनों की अच्छी समझ विकसित होगी; जो बातें मानने के लिए सकारात्मक वातावरण का कार्य करेंगी।

            (v). नज़र मिलाकर बात करें। इससे दोनों एक-दूसरे को सहज महसूस करते हैं, इससे यह महसूस होता है कि आप उनकी बातों को गंभीरता से सुन और समझ रहे हैं।

इससे आपकी निर्भीकता भी प्रदर्शित होती है।

            (vi). दूसरों को बोलने का पूरा मौका दें।

            (vii). जो भी बोलें स्पष्ट शब्दों में, संक्षेप में बोलें। बातें सरल शब्दों में सहजता के साथ समझाएँ।

बोलते समय बीच-बीच में विराम लें। इससे आप सोच कर बोल पाएँगे, और आपकी सांसें संतुलित रहेंगी।

इससे आपका आत्म-विश्वास बना रहेगा।

कभी भी ज्यादा जल्दी-जल्दी बातें ना बोलें; इससे सामने वाले आपकी बातों को पूर्ण रूप से समझ ही नहीं पाएँगे।

            (viii). हमें बातों के बीच में फिजूल की दूसरों की बुराई करने से बचना चाहिए। अन्यथा इससे दूसरों पर आपके व्यक्तित्व और सोच के प्रति  गलत धारणा बनेगी। आपकी इज्जत गिर सकती है।

            (ix). बातें करते समय स्वयँ पर नियंत्रण रखते हुए; भावनाओं को वश में रखें। फिजूल की बहसबाजी, नौक-झोंक से बचें। इससे आपके सम्बन्धों पर असर पड़ सकता है।

            (x). बातें करने का लहज़ा सामने बाले के अनुरूप, परिस्थितियों के अनुरूप होना चाहिए।

            (xi). बातें करते समय सच्ची बातें कहने से ना डरें, ना ही हिचकिचाहट के साथ बोलें।

हड़बड़ाहट के साथ बोलने से बचें।

बातें सीधी-सीधी, बिना घुमाये-फिराए साफ-साफ बोलें।

जो भी बोलें पूर्ण जानकारी होने पर ही बोलें, झूंठ, बढ़ा-चढ़ा कर कभी ना बोलें।

             (xii). हर बात तथ्यों (facts) के साथ कहें।

अतीत पर सकारात्मक सोच के साथ विचार करना कभी बुरा नहीं होता है l अतीत l Past l Success Tips In Hindi

  " वर्तमान में रहकर कार्य करें ; लेकिन लक्ष्य और योजना निर्धारित करते समय अतीत पर भी विचार जरूर करें !" ( अतीत ...