Sunday, February 12, 2023

मानसिक विकार सफलता में बाधक होते हैं। मानसिक विकार l मानसिक विकृत्ति

मानसिक विकार सफलता में बाधक होते हैं

सकारात्मकता

    हममें से ज्यादातर व्यक्ति हो सकता है वे शारीरिक दृष्टिकोण से स्वस्थ हों; लेकिन ज्यादातर लोग मानसिक रूप से पूर्ण स्वस्थ नहीं रहते हैं।

    ज्यादातर में कोई ना कोई मानसिक विकार जरूर होता है। ये ही मानसिक अस्वास्थ्य हमारी सफलताओं को प्रभावित करने लग जाते हैं। मानसिक विकार मिटाने से ही सुख-समृद्धि के साथ-साथ जीवन की सफलता प्राप्त हो सकती है।

    क्रोध, घृणा, कपट-भावना, जलन का अनुभव होना, द्वेष-भावना, घमण्ड करना, अति-आत्मविश्वास में रहना, डरों के साथ जीना, नकारात्मक आचरण और दुराचरण की भावनाएँ रखना, छोटी-छोटी बातों से ही कुंठाएँ और हीन-भावनाएँ महसूस करना, अभिमानी होना आदि-आदि नकारात्मक प्रभाव मानसिक विकार ही होते हैं।

यह सब प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हमारी सफलताओं में बाधा ही पहुँचाते हैं; अतः इन्हें समझकर दूर करने पर ही हम चिंतामुक्त होकर खुशी के साथ स्थाई सफलता पा सकते हैं।

    इन्हीं विकारों के कारण हम ना तो जीवन में सफल हो पाते हैं, ना ही समाज में इज्जत हांसिल कर पाते हैं। हम अपने अभिमानी, क्रोधी, दुराचारी स्वभावों के कारण किसी भी क्षेत्र में तरक्की नहीं कर पाते हैं। इन अबगुणों को त्याग कर ही व्यक्ति सफलता के साथ-साथ इज्जत, आत्म-सम्मान प्राप्त कर सकता है।

    हम जितना ज्यादा नकारात्मक सोचते, विचार करते रहते हैं या जीवन में असन्तुष्ठी के साथ हर दम अधिकता की कामना करते जाते हैं; हम चिंता-फ़िक्र, डर, बैचेनी, अवसाद, तनाब, आदि मानसिक विकृतियों में फंसते चले जाते हैं।

    किसी को नीचा दिखने की भावनाएँ; जैसे- "कोई हमसे आगे क्यों है?"; इसकी चिंता करने और प्रतियोगितावश उन्हें नीचा करने के लिए अनैतिक-कार्य भी करने लग जाते हैं। हम चुगली करने, जलन, द्वेष-भावना के शिकार होकर स्वयं के शरीर को चिंता, क्रोध, आत्मग्लानि, अवसाद, ब्लड प्रेशर आदि बढ़ा या गिरा लेते हैं। इससे जीवन में नीरसता, हीनता की भावनाएँ आती है। स्वयं की तुलना दूसरों के साथ करके भी व्यक्ति कई प्रकार की हीन-भावनाओं को जन्म देता है; जो उसे उन्नति के मार्ग पर आगे बढ़ने से रोकती हैं।

आइये इन्हें हम बिन्दुबार समझने की कौशिस करते हैं:-

1. अगर जीवन में सर्वश्रेष्ठ उन्नत्ति चाहिए तो मन को शाँत करें, गलत आदतों, नकारात्मक-भावनाओं पर नियंत्रण करें।
मानसिक शान्ति

    दूसरों की बुराई करना, झूठ बोलने की बुरी आदतों को छोड़ना होगा।

मन पर नियंत्रण रखकर हम बुरी आदतों को त्यागकर सदाचरण की ओर बढ़ सकते हैं। इससे हमारे व्यक्तित्व में आत्म-नियंत्रण, संयम आएगा और हम मानसिक शाँति प्राप्त कर सकते हैं।

    हमें दुर्व्यवहार, दुराचरण, क्रोध की जगह सदव्यवहार के साथ सहयोग, सदाचरण के साथ मानवता, शाँति को अपनाना होगा।

इससे ही हम परम-शाँति, उन्नत्ति के मार्ग पर चल सकते हैं।

    हर कार्य सही निर्णय ले कर ख़ुशी के साथ करें, कभी भी अधीरता के साथ कार्य ना करें; अन्यथा असफलताओं के कारण आपको आत्मग्लानि के साथ अफ़सोस करना पड़ सकता है।

2. क्रोध और आवेश पर नियंत्रण आवश्यक है !

    क्रोध एक बड़ी बुरी मानसिक विकृत्ति है जिसमें क्रोध, आवेश में व्यक्ति ऐसे-ऐसे कार्य कर बैठता है; जिससे उसका जीवन बर्बाद भी हो सकता है।

क्रोध का शरीर पर भी नकारात्मक प्रभाव ही पड़ता है।

जहाँ तक संभव हो निरर्थक बाद-विवादों से दूरी बनाकर चलें।

    अगर सामने वाला बुरा है या बुरा कह रहा है; तो उस समय उसे शाँति के साथ स्पष्ट कहें; फिर भी ना माने तो ऐसे व्यक्ति से बहस ना करके मौन रहें और उस स्थान से दूरी बना लें।

इससे आपका व्यक्तित्व दूसरों की निगाहों में बढ़ेगा और आप समय बर्बादी से बचकर शाँति के साथ अपने मन, दिमाग को अपने कार्यों में लगाने में सक्षम होंगे तथा साथ ही शाँति का अनुभव कर सकते हैं।

3. अच्छी सोच के साथ-साथ सकारात्मक मानसिकता जरूरी है।
सकारात्मक मानसिकता

    अच्छी, प्रगत्तिशील सोच और सकारात्मक मानसिकता के द्वारा ही हम हर परिस्थिति को अपने अनुकूल बना सकते हैं।

    हमेशा वर्तमान में रहकर कार्य करें, फ़िज़ूल की अतीत की असफलताओं को याद करके दुखी कभी ना हों, ना ही अपने को हीन मान बैठें; इसी प्रकार भविष्य की कल्पनाएँ करके डर ना पालें।

    हमेशा वर्तमान में कठोर परिश्रम करें; तभी भविष्य की चिन्ताएँ दूर होंगी। इससे आत्म-विश्वास के साथ-साथ डरों से छुटकारा मिलना संभव होगा।

4. मन और इन्द्रियों पर नियंत्रण रखने से ही सुख, शाँति, समृद्दि संभव है।

    अगर जीवन में सच्चा-सुख, इज्जत-सम्मान, शाँति के साथ खुशी चाहिए; तो मन और इन्द्रियों पर नियंत्रण रखें।

कभी भी गलत भावनाओं को बढ़ने ना दें। तभी आप प्रगत्ति-पथ पर आगे इज्जत और आत्म-सम्मान के साथ बढ़ सकते हैं।

इससे आपके आत्म-सम्मान के साथ-साथ इज्जत में भी वृध्दि होगी।

    भोग-विलास की गलत वृत्ति का त्याग करने से ही हम अपने समय, शक्ति का सदुपयोग करके सर्वश्रेष्ठ सफलता की ओर ध्यान को एकाग्रः कर सकते हैं।

    कई बड़े-बड़े साम्राज्य भी इन्हीं भोग-विलास की गलत प्रवृत्ति के कारण नष्ट हो गए थे। अतः इनसे बचें।

5. चुप रहने और कम बोलने की आदत, हर बात पर प्रतिक्रिया ना देने की आदतें अच्छी होती हैं।

    चुप रहने की आदत, कम बोलना और हर बात पर प्रतिक्रियाएँ देते रहने की आदतों से बचना तथा खुद को आत्म-नियंत्रित रखने की आदत डालने पर हम क्रोध, लड़ाई-झगड़ों से दूर रहकर उच्च स्तर का सम्मानजनक जीवन स्तर पा सकते हैं। तथा साथ ही हम कई प्रकार के झंझटों, परेशानियों से बचे रह सकते हैं।

इन सबके कारण आप जीवन में आत्म-विश्वास और छोटी-छोटी खुशिओं का अनुभव करेंगे तथा साथ ही शाँत-चित्त रह पाएँगे, ध्यान को सकारात्मक कार्यों में लगाने में सफल रहेंगे और समय बर्बाद होने से भी बचे रहेंगे।

    गंदे, दुराचारी, इज्जत-हीन लोगों से बहस करके, उलझ कर हम स्वयँ का ही समय बर्बाद करते हैं; अतः ऐसे नकारात्मक लोगों से दूरी बनाना ही हितकर होता है।

    गलत लोगों, जलने वाले, हीन भावनाओं से ग्रस्त लोगों पर ना तो ध्यान दो, ना ही उनकी गिरी-गिरी बातों को सुनकर अपनी सफलता की राह परिवर्तित करें तथा ना ही ऐसे नकारात्मक लोगों से डरें।

    अपने निश्चित उद्देश्यों के साथ लक्ष्यों पर दृढ-आत्म विश्वास के साथ बढ़ते रहें; तभी आप चिंता मुक्त होकर खुश रह पाएँगे।

    ऐसे नकारात्मक लोगों को वैल्यू देना बन्द करें; ये लोग ही सबसे बड़ी बाधाएँ हैं; जो हमारे उत्साह, आत्म-विश्वास को गिराकर हमारे सफलता के लिए बाधक सिद्ध होते हैं। ऐसे लोगों से बचकर ही हम सफलता के शिखर तक आगे बढ़ सकते हैं।

6. नकारात्मक विचारों को दृढ़ता के साथ नियंत्रण में रखें।

    यह तो स्वाभाविक है कि नकारात्मक विचार तो आएँगे ही; जिन्हें रोका नहीं जा सकता; लेकिन इनका असर आप पर, आपके व्यवहार और कार्यों पर नहीं पड़ने देना चाहिए।

    इसके लिए स्व-अनुशासन, आत्म-नियंत्रण, इन्द्रियों का नियंत्रण के साथ-साथ गन्दी-भावनाओं पर नियंत्रण करना होगा। हमें मन पर नियंत्रण रखकर स्वयं को दृढ़-प्रतिज्ञ बनाना होगा; तभी हम नकारात्मक विचारों पर नियंत्रण रख पाएँगे और स्वयं के व्यक्तित्व को उज्जवल रख पाएँगे।

    अगर कोई समस्या आए तो धैर्य के साथ उनके समाधान करते रहें। लेकिन कुछ ऐसी समस्याएँ भी आ सकती हैं; जिनका समाधान संभव नहीं होगा; ऐसे में निडरता और सूझ-बूझ के साथ इन समस्याओं पर हताश ना होकर अपने लक्ष्यों पर बढ़ें, साथ ही ऐसे उपाय जरूर करें; जिनके कारण आपके लक्ष्य इन समस्यों के कारण ज्यादा प्रभावित ना हों।

    गलतियों से सीखकर आगे बढ़ते रहें; लेकिन कभी भी आत्म-हीनता ना लाएँ और दुःख ना मनाएँ।

अन्त में विशेष बातें:-

    हमारे मानसिक विकार, गलत कामनाएँ, आदतें ही हमारी उन्नत्ति (प्रगत्ति) की सबसे बड़ी बाधाएँ हैं। हम स्वयँ का आत्म-निरिक्षण, विश्लेषण कर अपनी कमियों, बुराइयों का पता लगाकर ही इन्हें दूर कर सकते हैं। जब तक हम इन नकारात्मक चीजों को दूर नहीं करेंगे; तब तक सफल नहीं हो सकते हैं।

मानसिक विकारों, गलत कामनाओं से बाहर निकल कर, सकारात्मक सोच रखने पर ही हम जीवन में ख़ुशी के साथ-साथ चिंता-मुक्त सफलताएँ पा सकते हैं।

    हमें लोभ, अहंकार, लालसा, स्वार्थ, दुर्भावनाओं, दुराचारी-भावनाओं का त्याग कर सहनशीलता, सदाचरण, नैतिक-भावनाओं को साहस के साथ ग्रहण करना होगा। हमें दूसरों के साथ शांति के साथ सदव्यवहार रखते हुए घृणा, जलन-भावनाओं को हटाकर सदभाव के साथ सहयोग की भावना को अपनाना होगा; तभी हम दूसरों की ख़ुशी, तरक्की में भी खुश रहकर दूसरों को सहयोग देकर उन्हें अपना बना सकते हैं; जो कि आपकी उन्नत्ति में सहायक सिद्ध हो सकते हैं।

इस प्रकार आप मानसिक विकारों को ख़त्म करके आत्मिक-शांति, समृद्धि की ओर आगे बढ़ सकते हैं।

    सकारात्मक-भावनाओं के साथ स्वयँ पर पूर्ण-विश्वास करें तथा साथ ही नकारात्मक बातों, भावनाओं, आदतों का पूर्ण परित्याग दृढ़-संकल्प के साथ करें। यह कार्य कठिन नहीं हैं अगर आप दृढ़-प्रतिज्ञ होकर तथा सचेत रहकर इन पर निरन्तर अभ्यास करें।

ऐसा करने पर ही आप अपने मन को वश में रखकर सफलता, समृद्धि की ओर आगे बढ़ सकते हैं तथा हर जगह इज्ज़त पा सकते हैं।



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