योग_ध्यान_साधना से सफ़लता
यहाँ आप योग, ध्यान और साधना के साथ-साथ सफ़लता के मूल ज्ञान को पा सकते हो ! हमारा उद्देश्य आपको सत्य ज्ञान तथ्यों के साथ देना है; ताकि आप स्वस्थ तन, और मन के साथ-साथ सफ़लता के शिख़र तक पहुँच पाएँ !
विचार, मन और भावनाएँ हमारे मस्तिष्क की एक स्वाभाविक क्रियाएँ हैं l CONTROL YOUR BREATHING TO CONTROL MIND हाँ ! मस्तिष्क से उठे तरह-तरह के अलग-अलग विचारों का जाल ही मन है I मन अस्तित्वहीन है; जिसे हम दिल की गहरी भावनाओं के साथ जोड़कर खुश भी होते रहते हैं, या कभी कभी इतने दुखी, और निराश भी हो जाते हैं कि सब कुछ अशांत-दुखी, और बैचेन हो जाता है I अतः; अगर आपको हर क्षण ख़ुशी-शांति, और तरक्की को अनुभव करते हुए पूर्ण स्वस्थ और सुखमय जीवन चाहिए-- तो स्वयँ को समझना, और स्वयँ को समय देकर अपने अंतर्मन की भावनाओं-विचारों, और तीब्र-इच्छाओं को विवेकशीलता के साथ समझना शुरू कर दो I मन के जाल में ना फँसो; बल्कि बुद्धि का उपयोग करें, और मन में चल रहे विचारों का आत्मावलोकन शाँति, और धैर्य बनाए रखते हुए करें; तभी आप सही निष्कर्षों पर पहुँच कर सही निर्णय ले पाएँगे I इससे हर कार्य सफ़ल भी होंगे, और आप हर प्रकार के तनाबों, तथा चिंताओं से भी बचे रहेंगे I मन क्या है ? ख़ुशी के साथ तनाबमुक्त सफलता पाने का रहस्य ● निम्न हिंदी वीडियो आपके लिए हितकर होंगे; कृपया चिंतन-मनन के साथ उपय...
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6. किसी भी परेशानी या रुकावटों का सामना हम विश्वास के
साथ या चिंता के साथ कर सकते हैं-
यह सब स्वयँ पर ही निर्भर करता है। अतः; अगर ख़ुशी के साथ
सफ़लता चाहिए; तो नकारात्मक भावों से बचते हुए चिंताओं के समाधानों पर दृढ़-संकल्प के
साथ प्रयास करें; लेकिन निराशा और चिंता से दूर रहें।
इसकी चिंता छोड़ दो कि कुछ गलत भी हो सकता है। अगर हम सफ़ल
होने की कामना के साथ आत्म-विश्वास से सही योजना के साथ निश्चित लक्ष्यों पर मेहनत
करेंगे तो सफ़लता ना मिले ऐसा हो ही नहीं सकता है।
लेकिन इसके लिए सजगता के साथ कठोर परिश्रम तो करना ही होगा
और आलश्य भी त्यागने ही होंगे।
7. अपनी कल्पनाओं को डर की भावनाओं की बजाय सकारात्मक उपायों
पर लगाएँगे; तभी समाधानों पर ठन्डे दिमाग़ से आत्म-विश्वास के साथ चल पाओगे।
चिंता के भाव रखोगे; तो अवसाद के साथ-साथ कायरता, निराशा,
खिन्नता, बैचेनी और मानसिक बीमार ही बनते जाओगे।
चिंता करने से लाभ कभी भी ना होगा; बल्कि आप और हानि की
दिशा में ही बढ़ते जाओगे।
8. चिंताग्रस्त होने पर समस्याओं का सामना करना मुश्किल
हो जाता है।
अतः चिंता की बजाय चिंतन-मनन करके समाधानों की दिशा में
आगे बढ़ें; लेकिन फ़ल या सफ़लता कब मिलेगी; इसकी चिंता कभी ना करें।
हमारा कार्य और ध्यान मात्र लगातार प्रयास करने और स्वयँ
को उन्नत करते जाने पर होना चाहिए; तभी समस्याओं के समाधानों के साथ-साथ चिंता-मुक्त
रह सकते हैं।
9. अधिक चिंतित होना हमारे कमज़ोर आत्म-विश्वास, हमारी लाचारी,
अज्ञानता को प्रदर्शित करता है।
धैर्य, सहनशीलता, और संघर्ष की शक्ति के बल पर हम तनाव,
चिंता, बेचैनी से बचे रह सकते हैं।
सकारात्मक-सोच के साथ नकारात्मक-विचारों और डरों को कम
करना आसान होता है।
10. हमें सुख-दुःख दोनों पलों को समभाव के साथ सहन करना
आना चाहिए।
कभी भी सफलताओं के कारण इतने अभिमानी भी ना बनो कि आगे
बढ़ना ही छोड़ दो; असफ़ल होने पर भी सकारात्मक भाव से पुनः सफ़ल होने की दिशा में अथक प्रयत्न
बिना निराशा और चिंता के करते रहें।
हमें भूतकाल का दुःख नहीं करना चाहिए और भविष्य को सफ़ल,
सम्बृद्ध बनाने के लिए वर्तमान में सार्थक प्रयास करते रहना चाहिए।
कभी भी मुसीबतों से घबराकर लक्ष्यों से समझौता नहीं करना
चाहिए। गलत परिस्थितियों को सफ़लता में रूपान्तरित करने के लिए संघर्ष करो; लेकिन पलायन
के बारे में कभी ना सोचो।
दृढ़-संकल्प के साथ परिश्रम सही दिशा में करते रहें; सही
समय पर सफ़लता जरूर मिलेगी।
आत्म-नियंत्रित
होकर, धैर्य के साथ, अच्छे समय की कामना के साथ लगातार स्वयँ को उन्नत्तिशील बनाते
जाएँ; तभी हम चिंता-मुक्ति के साथ-साथ ख़ुशी भी प्राप्त करेंगे।
आकर्षण का नियम ( आकर्षण के सिद्धान्त ) ब्रह्माण्ड की आकर्षण की शक्ति हमारे विचारों से हम हमारा भविष्य , जीवन , अपनी दुनिया का निर्माण करते हैं। हमारी जैसी भावनाएँ , विचार होंगे ; हमारी प्रवृत्ति , प्रकृत्ति , सोचने - समझने की क्षमता भी उसी अनुसार विकसित होंगी और ब्रह्माण्ड से उसी प्रकार के परिणाम प्राप्त होंगे। अतः अगर आप जीवन में शांति के साथ - साथ तरक्की , समृद्धि चाहते हैं ; तो सकारात्मक सोचना , समझना , सकारात्मक बातों पर ही विश्वास करना नितान्त आवश्यक है। “आप अपने जीवन में सकारात्मक (Positive) या नकारात्मक (Negative) चीजों को अपने विचारों और कर्मों से अपनी ओर आकर्षित कर सकते हो (या दूसरे शब्दों में प्राप्त कर सकते हैं।) ।" यह इस सिद्धान्त पर आधारित है कि ब्रह्माण्ड की सब चीजें, यहाँ तक कि हम स्वयँ भी ऊर्जा से निर्मित हैं। अतः हम ऊर्जा को ब्रह्माण्ड ...
मानसिक विकार सफलता में बाधक होते हैं । सकारात्मकता हममें से ज्यादातर व्यक्ति हो सकता है वे शारीरिक दृष्टिकोण से स्वस्थ हों; लेकिन ज्यादातर लोग मानसिक रूप से पूर्ण स्वस्थ नहीं रहते हैं। ज्यादातर में कोई ना कोई मानसिक विकार जरूर होता है। ये ही मानसिक अस्वास्थ्य हमारी सफलताओं को प्रभावित करने लग जाते हैं। मानसिक विकार मिटाने से ही सुख - समृद्धि के साथ - साथ जीवन की सफलता प्राप्त हो सकती है। क्रोध , घृणा , कपट - भावना , जलन का अनुभव होना , द्वेष - भावना , घमण्ड करना , अति - आत्मविश्वास में रहना , डरों के साथ जीना , नकारात्मक आचरण और दुराचरण की भावनाएँ रखना , छोटी - छोटी बातों से ही कुंठाएँ और हीन - भावनाएँ महसूस करना , अभिमानी होना आदि - आदि नकारात्मक प्रभाव मानसिक विकार ही होते हैं। यह सब प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हमारी सफलताओं में बाधा ही पहुँचाते हैं ; अतः इन्हें समझकर दूर करने पर ही हम चिंतामुक्त होकर खुशी के साथ स्थाई सफलता पा सकते हैं। ...
मन , MIND , मन क्या है ? मन हम अक्सर यह शब्द सुनते और कहते रहते हैं कि - " उलझा हुआ मन " , " CONFUSED MIND ", भ्रम , " मन की सफाई " , " भ्रमित चित्त " , " मन की ताजगी ", " खुश मन - दुखी मन ", " अशांत मन "। आखिर ये मन क्या है ? और मन खुश - दुखी या शांत - अशांत कैसे और क्यों होता है ? क्या हममें से किसी ने मन को देखा है ? नहीं ना ? तो फिर हम मन के बारे में ही क्यों ज्यादा सोचते-समझते रहते हैं ? क्यों हम अपनी हर परेशानी और समस्याओं को मन से जोड़ देते हैं ? इन सब पर विचार करके ही हम मन और विचारों के बारे में जान सकते हैं। मन कोई चीज़ या वस्तु नहीं है जिसे देखा या छुआ जा सके। मन होता ही नहीं है ; हम हमारे उलझे हुए विचारों और उलझी हुई भावनाओं का सम्बन्ध मन से करने की भूल करते हैं। मन कभी भी उलझा हुआ नहीं होता , उलझे हुए होते हैं तो हमारे विचार होते हैं। अगर हम विचारों को सकारात्मक कर लें और सारी समस्याओं को सुल...
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