Monday, December 5, 2022

चिंता l चिंतन l चिंता-चिंतन l worry l concerns l मनन

 

चिंता नहीं; चिंतन करें
(आत्म-चिंतन, चिंतन-मनन)

    आज की भाग-दौड़ और हर तरफ़ प्रतियोगी वातावरण में सफलता और कार्यों या लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए चिंतित होना आम बात है। किसी ना किसी चीज़ को लेकर सभी को चिंता हो ही जाती है।

कार्यों के लिए या लक्ष्यों के लिए चिंतन करना अच्छी बात है; इससे हमें समाधान प्राप्ति में मदद मिलती है तथा कार्यों की समीक्षा करके आगे की योजनाएँ बनाना और कल्पना या तार्किक शक्ति से समय-सीमा निर्धारित करना अच्छी बात है, ये आवश्यक भी हैं; इन्हें चिंतन-मनन करना कह सकते हैं।

चिंतन-मनन से सफलता के रास्ते प्राप्त होते हैं।

जबकि चिंता कभी भी सुखदाई नहीं होती है; चिंता करने में हमें लाभ की बजाय हानि, तनाव, स्वस्थ्य की हानि, बैचेनी, नींद ना आना जैसी-जैसी कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, और हम डर, अवसाद के शिकार भी हो सकते हैं।

चिंता करने से आपकी जीवन की खुशियाँ छिन जाती हैं, आपका आत्म-विश्वास और उत्साह-उमंग पर बुरा असर पड़ता है; जो जीवन को नीरस, हतोत्साहित बना देगी।

अतः विचारों में नकारात्मकता या डर कभी ना आने दें। अगर समस्याएँ हैं तो सफलता की आशा के साथ समाधानों पर कार्य करें ना की चिंता कर-कर के जीवन को नीरस बना लें।

अगर विचारों में भय, अनिश्चिता और खिन्नता या हताशा के भाव होंगे; तो इस तरह के विचार चिंता को ही जन्म देंगे जो आपकी बुद्धि की सकारात्मक सोच को नकारात्मकता की और ले जाएगी।

    चिन्ताशील व्यक्ति योग्य होने के बाबजूद अपने आत्म-विश्वास और आत्म-बल को खो देता है और ख़ुद को अयोग्य महसूस करने लगता है।

अतः विचारों को चिंतनशील बनाएँ।

विचारों में जोश-उत्साह-उमंग, आत्म-विश्वास, साहस के साथ समस्याओं से लड़ने की आत्म-शक्ति, सकारात्मक समझ, संकल्प-शक्ति होनी चाहिए।

    चिंतनशील व्यक्ति को स्वयँ और अपने लक्ष्यों, कार्यों की सफ़लता पर पूर्ण विश्वास होना चाहिए। ऐसे चिंतन-मनन के परिणाम ही हमें सफ़लता की और ले जाते हैं।


निम्न महा-वाक्यों को ध्यान पूर्वक पढ़ें; आपको चिंता, चिंतन के भेद और सफ़लता की समझ जरूर प्राप्त होगी :-

1.  चिंता करना बन्द करो।

चिंता से लाभ की बजाय कार्यों, स्वास्थ्य, और मानसिक हानि ही होंगी।
कठिन समय तो आते-जाते रहते हैं। सुख-दुःख, लाभ-हानि, सम्मान-अपमान का रोना रो-रोकर जीवन बर्वाद करने से अच्छा होगा कि चिंतन करें और समाधानों पर शीघ्र कार्य करें। इससे आप चिंता-मुक्ति के साथ-साथ सफ़लता की ओर बढ़ पाएँगे।

2.  चिंता आपके आने वाले समय की परेशानी कभी दूर नहीं कर सकती है; उल्टा ये चिंता-फ़िक्र करने की आदत आपके आज के सुख-चैन को भी छीन लेगी।

अतः चिंता से बचो और चिंतन-मनन को अपनाकर समाधानों पर कार्य करो। नए विचारों, नई लाभकारी आदतों को अपनाना शुरू करो।
पूर्व योजना बनाकर पहले से ही तरक्की के नए-नए द्वार, अच्छे स्वास्थ्य के उपाय, जीवन को उन्नतशील बनाने के उपायों पर विचार करें और सकारात्मक भाव के साथ जिएँ।

 

3.  निराशावादी या दुखों का रोना रोने वाले लोगों या ईष्या-द्वेष भावना वाले, कुढ़ने वाले लोगों से दूरी बनाकर चलें-

 अन्यथा इनकी नकारात्मक और हीन-भावना वाली बातें आपको भी नकारात्मक सोच के साथ-साथ डरपोक बना सकती हैं।
अतः; सकारात्मक लोगों से ही सम्पर्क बनाएँ, सकारात्मक और आपके उद्देश्यों के लिए लाभकारी पुस्तकें पढ़ने की आदत डालें। इससे आपके ज्ञान में वृध्दि के साथ-साथ आपके कौशल और आत्म-विश्वास में वृध्दि होगी।

 

4.  परेशानियों, असफ़लताओं से डरें नहीं-

बल्कि समस्याओं के कारण जानने की कोशिश करें, जो भी कमी, कमजोरी, भूलें हुई हैं; तथा जो भी असफ़लता या परेशानियों के कारण हैं; उन्हें सच्चे मन से स्वीकार करें तथा इन कमियों को दूर करने के सार्थक प्रयास करें।
साथ ही कर्म-फ़ल पर विश्वास रखते हुए ख़ुश रहने का प्रयास करें।

5. सकारात्मक भावनाओं, ज्ञान, कौशल का विकास करें; 

तभी आप नकारात्मक-डरों से छुटकारा पा सकते हो।

6. किसी भी परेशानी या रुकावटों का सामना हम विश्वास के साथ या चिंता के साथ कर सकते हैं-

यह सब स्वयँ पर ही निर्भर करता है। अतः; अगर ख़ुशी के साथ सफ़लता चाहिए; तो नकारात्मक भावों से बचते हुए चिंताओं के समाधानों पर दृढ़-संकल्प के साथ प्रयास करें; लेकिन निराशा और चिंता से दूर रहें।
इसकी चिंता छोड़ दो कि कुछ गलत भी हो सकता है। अगर हम सफ़ल होने की कामना के साथ आत्म-विश्वास से सही योजना के साथ निश्चित लक्ष्यों पर मेहनत करेंगे तो सफ़लता ना मिले ऐसा हो ही नहीं सकता है।
लेकिन इसके लिए सजगता के साथ कठोर परिश्रम तो करना ही होगा और आलश्य भी त्यागने ही होंगे।

7. अपनी कल्पनाओं को डर की भावनाओं की बजाय सकारात्मक उपायों पर लगाएँगे; तभी समाधानों पर ठन्डे दिमाग़ से आत्म-विश्वास के साथ चल पाओगे।

चिंता के भाव रखोगे; तो अवसाद के साथ-साथ कायरता, निराशा, खिन्नता, बैचेनी और मानसिक बीमार ही बनते जाओगे।
चिंता करने से लाभ कभी भी ना होगा; बल्कि आप और हानि की दिशा में ही बढ़ते जाओगे।

8. चिंताग्रस्त होने पर समस्याओं का सामना करना मुश्किल हो जाता है।

अतः चिंता की बजाय चिंतन-मनन करके समाधानों की दिशा में आगे बढ़ें; लेकिन फ़ल या सफ़लता कब मिलेगी; इसकी चिंता कभी ना करें।
हमारा कार्य और ध्यान मात्र लगातार प्रयास करने और स्वयँ को उन्नत करते जाने पर होना चाहिए; तभी समस्याओं के समाधानों के साथ-साथ चिंता-मुक्त रह सकते हैं।

9. अधिक चिंतित होना हमारे कमज़ोर आत्म-विश्वास, हमारी लाचारी, अज्ञानता को प्रदर्शित करता है।

धैर्य, सहनशीलता, और संघर्ष की शक्ति के बल पर हम तनाव, चिंता, बेचैनी से बचे रह सकते हैं।
सकारात्मक-सोच के साथ नकारात्मक-विचारों और डरों को कम करना आसान होता है।

10. हमें सुख-दुःख दोनों पलों को समभाव के साथ सहन करना आना चाहिए।

कभी भी सफलताओं के कारण इतने अभिमानी भी ना बनो कि आगे बढ़ना ही छोड़ दो; असफ़ल होने पर भी सकारात्मक भाव से पुनः सफ़ल होने की दिशा में अथक प्रयत्न बिना निराशा और चिंता के करते रहें।
हमें भूतकाल का दुःख नहीं करना चाहिए और भविष्य को सफ़ल, सम्बृद्ध बनाने के लिए वर्तमान में सार्थक प्रयास करते रहना चाहिए।
कभी भी मुसीबतों से घबराकर लक्ष्यों से समझौता नहीं करना चाहिए। गलत परिस्थितियों को सफ़लता में रूपान्तरित करने के लिए संघर्ष करो; लेकिन पलायन के बारे में कभी ना सोचो।
दृढ़-संकल्प के साथ परिश्रम सही दिशा में करते रहें; सही समय पर सफ़लता जरूर मिलेगी।
आत्म-नियंत्रित होकर, धैर्य के साथ, अच्छे समय की कामना के साथ लगातार स्वयँ को उन्नत्तिशील बनाते जाएँ; तभी हम चिंता-मुक्ति के साथ-साथ ख़ुशी भी प्राप्त करेंगे।

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