Friday, July 30, 2021

मानवता और मानवता धर्म l मानवता l HUMANITY l PEACE

 मानवता और मानवता धर्म  ( HUMANITY )


    " इंसान की इंसान के प्रति इंसानियत , दया , आदर देने के भाव स्वाभाविक रूप से आना और उसका पालन करना मानवता कहलाती है।

    मानव जीवन का मूल धर्म ही संसार में प्रेम ,शांति बनाये रखना और पूरे  संसार व समाज को एक परिवार की तरह व्यव्हार करना है। हम जैसा हमारे लिए चाहते हैं ,उसी प्रकार का आदर,व्यव्हार दूसरों को देना ही हमारा कर्त्तव्य होना चाहिए ; यही हमारे जीवन का मूल उद्देश्य होना चाहिए। "

    हमारे जीवन की शांति , सुख एवं समृद्धि का मूलभूत कारण ही सच्चरित्र तथा सदाचारी होकर सकारात्मक विचार रखना है। हम जीवन में सुख , शांति तभी प्राप्त कर सकते हैं ,जबकि हम सभी को आदर दें , दूसरों की भावनाओं का सम्मान करें। 

    अगर हम किसी का भला न कर पाएं तो उनका अपमान, किसी भी प्रकार से बुरा करने का अधिकार भी नहीं है। 

       मानव होने के नाते हमें एक-दूसरे के सुख-दुःख में साथ निभाना चाहिए। 

      हम कितने भी धनवान , शक्तिशाली क्यों ना बन जाएँ लेकिन हमें वास्तविक ख़ुशी , सम्मान , शक्ति दूसरों से प्राप्त दिल से मिली इज़्ज़त , उनके द्वारा दी गई शुभकामनाओं से ही मिल सकती है। ये ही  हमें जीवन की वास्तविक ख़ुशी प्रदान कर सकती है। 

        जीवन की वास्तविक ख़ुशी सुख-शांति में ही आ सकती है। अगर हम बलपूर्वक सभी को चाहें भी -हम उनको अपना नहीं बना सकते ; वे तभी दिल से हमें अपनाएंगे जब हम उनकी मजबूरिओं को समझेंगे , उनकी जरुरत पर सहायता करते हैं , उन्हें सही राय देते हैं ,उनकी इज़्ज़त करते हैं  ; तभी वे दिल से हमें समाज , परिवार का हिस्सा मानेंगे। 

       जीवन में नैतिकता जरुरी है। नैतिक जीवन ,नैतिक व्यवहार ही हमारे आत्मबल को बढ़ा सकता है। हमें उच्च आदर्शों को अपनाना चाहिए। 

    अगर हम मानव हैं तो अभिमान से दूर रहना चाहिए। अभिमान सदैव आदर्शों और मानव मूल्यों को नष्ट कर देता है। अतः आदर्शवान बनो , अभिमानी नहीं। ये ही गुण हमारे आत्मविश्वास को बढ़ाएगा और हम समाज , देश ,संसार में कुछ बड़ी उपलब्धि हासिल कर पाएँगे। 

    पैसे के बल पर , शक्ति के बल पर हम कभी भी लोगों के दिलों पर राज नहीं कर सकते हैं। हमें अपने व्यवहार , विचारों में प्रेम ,दया , क्षमा ,सहनशीलता , सत्यता के भाव रखने चाहिए तभी हम मानवता को अपना सकते हैं। 

    हमें अभिमान को त्यागकर लोगों की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए , विवेकपूर्ण सभी को साथ लेकर चलने की प्रवृत्ति को बढ़ाना चाहिए। 

हमें इंसानियत रखते हुए गरीबों को भी आगे बढ़ने का मौका देना चाहिए। हमें दुःख , विपदा में दूसरों की मदद करनी चाहिए। 


मानवता के मूल उद्देश्य और कारक


    मानवता प्रेम और भाईचारे का ही दूसरा रूप है , मानवता के द्वारा ही हम मिल-जुलकर विकास की राह पर चल सकते हैं। 

    हम कई बार स्वार्थवश अभिमान में आकर मानवता को भूल जाते हैं। हम जाति-धर्म , सम्प्रदाय, स्थान आदि के हिसाब से लोगों को देखना और उनके साथ व्यव्हार करना शुरू कर देते हैं ; ये मानवता के खिलाफ है। इससे मानव की मानव के प्रति आदर,प्रेम ,दया भाव में कमी आकर द्वेष-घृणा के भाव जाग्रत होते हैं , फलस्वरूप हम एक-दूसरे से कटने-अलग होने लगते है। इसका बुरा प्रभाव हमारे समाज,देश और विश्व की एकता पर पड़ता है। 

    किसी को अपमानित करना ,अत्याचार व क्रूरता का व्यव्हार करना अमानवीयता है ; हमें इनसे दूर रहना चाहिए और इसके लिए दूसरों को भी प्रेरित करना चाहिए। 
    हमें कोई भी निर्णय लेने से पहले सबका हित भी देखना चाहिए। स्वावलम्बी बनो लेकिन विवेकी बनकर ऐसा कार्य करो ,जिससे किसी अन्य का अहित न हो जाए। 

    सबके साथ मिलकर रहना , विपदा में मदद करना असली मानवता है। 

    हमें मानव हित को सर्वोपरि मानना चाहिए। 

    " अगर हम किसी दीन-दुःखी की मदद करके उसके जीवन में ख़ुशी ला सकें , उनके चेहरों पर मुस्कुराहट ला सकें ; यह ही हमारी सच्ची मानवता होगी। "

अगर हम दूसरों की मदद करेंगे तो हमें जीवन की वास्तविक ख़ुशी और मानसिक शांति प्राप्त हो सकती है। इससे हम तनाव-रहित जीवन पा सकते हैं। 

आपसी मनमुटाव ,शत्रुता आदि हमें व दूसरों को तनाव ही देगा ; हमारी तरक्की के ज्यादातर मार्ग अवरुद्ध होने लगेंगे।

    हम सब सृष्टि में समान आए थे , लेकिन धीरे-धीरे व्यक्तिगत और प्रादेशिक ताकत के बल पर धीरे-धीरे प्रकृत्ति द्वारा प्रदत्त ज़मीन , सम्पदा पर मानव कब्ज़ा करता गया और मानव को मानव से अलग कर दिया। अलग-अलग सीमाओं में मानव ने मानव को अलग कर लिया। 

सब जगह अधिकार भाव पनपने लगा और शक्तिशाली लोग गरीबों ,कमजोर वर्ग को पैसे व शक्ति के बल पर अपने वश में करते चले गए। 
इन्होने ही पैसे के बल पर मानव का दोहन शुरू कर दिया। 
इन सबके कारणवश अनैतिकता , भ्रष्टाचार , अत्याचार बढ़ते चले गए। 

इन्होनें अपने प्रभाव के लिए हमारा मानसिक लाभ उठाया और हमें बाँटने के लिए अलग-अलग धर्म-सम्प्रदायों में हमें बाँट दिया। 

यही वह समय था ; जब हम मानवता को भूलते चले गए और हमारी धारणा / विचारधारा जाति , धर्म , आर्थिक दशा के आधार पर बँटती चली गई। 
इससे विषमताएं बढ़ती चली गईं। इससे ही मानव का मानव से संघर्ष बढ़ता चला गया।  

मानवता के मूल कारक

1. संवेदनशीलता :

    मानव को संवेदनशील होना जरुरी है। बिना संवेदना के हम मानव कहलाने के योग्य नहीं हैं।    
    हमें दूसरों के दुःख से दुःखी होना चाहिए और करुणा-भाव से दुःखियों-असहायों की सहायता मनोयोग से करनी चाहिए ; तभी मानवता का विकास होगा और हम खुशहाल विश्व (संसार) का निर्माण कर सकते हैं। 

    जब हम मानव एक ही प्रकृत्ति से उत्पन्न हुए हैं तो क्यों हम जाति-धर्म और स्थान विशेष के आधार पर घृणा-भाव रखें और दुनिया में अलग-थलग होकर एकता और भाई-चारे की अनदेखी करें। 

    अगर हम सब एक-मत , एक-मानव धर्म की भावना को अपना लें तो संसार में खुशियां और खुशहाली आना कोई असंभव कार्य नहीं होगा। ये संभव है। इसके बाद युद्ध और आतंकबाद तो स्वतः ही ख़त्म हो सकते हैं ; जिसकी आज विशेष आवश्यकता है। 

2. सामाजिक कुरुतियाँ :

    सामाजिक कुरूतियों ने भी मानव को बंधन में बांधने और प्रताड़ित करने के अमानवीय कार्यों में सहयोग किया। कई प्रकार की सामाजिक कुरुतियाँ मानवता को शर्मशार करती हैं। 

    आज भी हम महिलाओं को वो सम्मान और दर्जा नहीं देते जो देना चाहिए ; हम पुरुष-प्रधान वाली नकारात्मक सोच रखते हैं। हमें चाहिए हम समानता का व्यव्हार करें तथा पुरुष व महिला को सामान दर्जा दें। 

    हमें महिलाओं के प्रति नकारात्मक सोच व परम्पराओं जैसे - दहेज़ प्रथा ,बाल-विवाह , छेड़-छाड़ , वेश्यावृत्ति जैसी मानसिकता का विरोध करना चाहिए। 

हमें लिंग-भेद को मिटाना ही होगा , तभी मानवता की रक्षा सुनिश्चित होगी। 

हमें लिंग , जाति, संप्रदाय व आर्थिक स्थिति के आधार पर समाज को बंटने से रोकने के सकारात्मक उपाय करने होंगे। 

3. जाति-धर्म-संप्रदाय व स्थान-विशेष के आधार पर क्रूरता :

    आज हम मानवता को टूटते-विकृत्त होते देख सकते हैं। आज धर्म के नाम पर , जाति और स्थान-विशेष, कई जगह रंग-भेद के नाम पर चारों तरफ़ राजनीति हो रही है। कई युद्ध व रक्तपात मात्र इसी घिनौनी सोच का ही परिणाम है , जहाँ हम सभी को एक नहीं मानते और विवेकहीन होकर नकारात्मकता को जन्म देकर जाति , धर्म के आधार पर देश , विश्व को बाँटने का प्रयास करते हैं और गन्दी राजनीति के शिकार होकर दूसरों की जान लेने से भी नहीं डरते हैं। 

    आतंकबाद भी सांप्रदायिक-भेदभाव वाली गन्दी सोच के कारण ही पनप रहा है। हम देख सकते हैं कि लाखों लोग बेघर हो रहे हैं और मासूम बच्चे व महिलाएं अनाथ और असहाय हो रही हैं। इस प्रकार कि घिनौनी दानवता देश , दुनियाँ को कमज़ोर कर रही है। 

सारांश (summary) :

    हमें आदर्शवान बनना चाहिए , काम , क्रोध , मोह ,लोभ के वश में नहीं आना चाहिए ; क्यूंकि इनकी वृध्दि हमारी मानवता और विश्व-संस्कृत्ति में घातक सिद्ध होगी। 

हमें कोई भी चीज़ क्रोध से नहीं , प्रेम से जीतनी चाहिए। हम दया , क्षमा के भाव द्वारा ही महान बन सकते हैं। 
    अतः उपरोक्त बातों से स्पष्ट है कि सभी धर्म , जाति हमारे पुराने लोगों द्वारा हमें स्वार्थवश एक-दूसरे से बाँटने के लिए बनाए गए और हमारे सीधे-सादे और असहाय पूर्वज मजबूरी के चलते इस दल-दल में फंसते चले गए ; जो आगे चलकर हमारी वास्तविक धारणा/परम्परा और हमारे उद्देश्य भी बन गए। 

        इन्हीं का परिणाम है कि आज ज्यादातर झगड़े , युद्ध और असामाजिक विध्वंशक गतिविधियां जमीन , धर्म के आधार पर ही होते आ रहे हैं। 

    हम संसार में एक-ईश्वर की वास्तविकता को भूल गए और अलग-अलग कई प्रकार के ईश्वर और सम्प्रदायों को मानते चले गए। 

    अब समय आ गया है कि हम पुनः समता भाव को अपना कर विषमता दूर करने के प्रयास करें , तभी पुनः मानव-धर्म की स्थापना होगी ; जहाँ हम सभी एक ही प्रकृत्ति के मानव बन सकते हैं। इससे पुनः पूरे संसार में प्रेम-भाव , सहयोग और सकारात्मकता के भाव जाग्रत हो सकते हैं ; जो मानवता का मूल-मंत्र है। 

    धन का धर्म से कोई सम्बन्ध नहीं हो सकता है। संग्रह , शोषण मानव धर्म के ख़िलाफ़ है। 

    अगर हम विवेक का प्रयोग करके पुरानी रूढ़िवादी सोच से आगे बढ़कर लोभग्रस्त व्यवस्था को बदल दें तो व्यक्ति पूरी तरह बदल जाएगा और चारों तरफ़ भाईचारा , निडरता , स्वाभिमान के भाव जाग्रत हो जाएंगे। 

    अगर मानव परिवर्तित होगा तो सामाजिक , आर्थिक सारे स्तरों पर जीवन परिवर्तन हो जाएगा। इसके लिए हमें धर्म-जाति -स्थान आदि नकारात्मक सोच से आगे सकारात्मक सोच के साथ मन-धर्म के बारे में सोचना होगा। इसके लिए असहाय , कमज़ोर वर्ग में धीरे-धीरे आत्मविश्वास जाग्रत करना होगा ; उनकी दिक्कतों को मानवता , करुणा ,प्यार के द्वारा दूर करनी होगी। 

    इन सब प्रयासों के द्वारा ही हम एकजुट-एकमत हो सकते हैं। 

    मानवता का विकास होगा तो देश , विश्व का भी विकास सुनिश्चित है। 



    


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