Saturday, August 21, 2021

मन l मन क्या है? l विचार और मन का सम्बन्ध l MIND l विचार l मन पर नियंत्रण

मन , MIND , मन क्या है ? 

मन

        हम अक्सर यह शब्द सुनते और कहते रहते हैं कि - " उलझा हुआ मन " , " CONFUSED MIND ", भ्रम , " मन की सफाई " , " भ्रमित चित्त " , " मन की ताजगी ", " खुश मन - दुखी मन ", " अशांत मन "। 

    आखिर ये मन क्या है ? और मन खुश - दुखी या शांत - अशांत कैसे और क्यों होता है ?

    क्या हममें से किसी ने मन को देखा है ? नहीं ना ?

 तो फिर हम मन के बारे में ही क्यों ज्यादा सोचते-समझते रहते हैं ? क्यों हम अपनी हर परेशानी और समस्याओं को मन से जोड़ देते हैं ?

इन सब पर विचार करके ही हम मन और विचारों के बारे में जान सकते हैं। 

    मन कोई चीज़ या वस्तु नहीं है जिसे देखा या छुआ जा सके। मन होता ही नहीं है ; हम हमारे उलझे हुए विचारों और उलझी हुई भावनाओं का सम्बन्ध मन से करने की भूल करते हैं। 

    मन कभी भी उलझा हुआ नहीं होता , उलझे हुए होते हैं तो हमारे विचार होते हैं। 

    अगर हम विचारों को सकारात्मक कर लें और सारी समस्याओं को सुलझा लें तो मन रहेगा ही नहीं ; फिर रहेंगे तो हमारे सकरात्मन विचार और हमारी सकारात्मक सम्रृद्धि की भावनाएं। 

    विचारों में अस्थिरता और हर क्षण चलायमान विचारों से हमारे में अस्थिरता आती है और दिमाग बैचेनी और डर या क्रोध से भर जाता है ,इसे ही हम चलायमान मन कहते हैं। इस स्थिति में हम किसी एक विचार पर स्थिर नहीं रह पाते हैं और बार-बार विचारों में परिवर्तन करते हैं , ये हमें हमारे लक्ष्य से भटका देता है। 

" MIND IS OUR CONFUSION ONLY " ना कि- " CONFUSED MIND " 

" अशांति का नाम ही मन है। " अशांत मन नाम की कोई चीज हमारे अंदर होती ही नहीं है। 

" विचारों में मतभेद होना , हमारे दिमाग में अशांति-भागदौड़ होने का ही नाम मन है।  अगर अशांति और भ्रम की स्थिति हट जाये तो मन का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा। 

विचारों से भ्रमित होने को ही हम मन कहते हैं। 

    " जैसे आँधी-तूफान में चारों और अशांति हो जाती है ; उसी प्रकार जब हमारे दिमाग में विचारों की अनगिनत आँधी चलती है तो हम अशांति और बैचेनी का अनुभव करते हैं। 

जैसे आँधी - तूफान के चले जाने के बाद को हम शांत आँधी या शांत तूफान नहीं कहते हैं तो इसी प्रकार अशांत मन नाम की कोई चीज नहीं होती ,ये तो हमारे अशांत दिमाग के विचार ही होते हैं ,जिन्हें सकारात्मक सोच के साथ प्रयास करने पर हम शांत कर सकते हैं। "


1. विचार और मन का सम्बन्ध :  

    अगर हम प्रयास द्वारा हमारे अशांत विचारों को एक दिशा में सोचने को मजबूर कर दें तो हम बिना किसी भ्रम के एक दिशा में विचार करने लग जायेंगे। 
जब अशांति रहेगी ही नहीं तो मन का अस्तित्व ही मिट जायेगा , तब हमारे शरीर में आत्मा और दिमाग की ऊर्जा ही शेष रहेगी। मन कोई चीज नहीं है ; ये तो बस हमारे दिमाग में अव्यवस्था/अराजकता का ही दूसरा नाम है। 

शरीर व आत्मा एक वस्तु है लेकिन इन दोनों के बीच के सम्बन्ध में अशांति का नाम ही मन है। 

शांति में मात्र शरीर और आत्मा रह जाती है ; मन का कोई अस्तित्व रहता ही नहीं है। जब शांति प्राप्त होती है तो मन का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है। जब शांति होती है तो मन होता ही नहीं है; मात्र शरीर में आत्मा होती है। 

मन का अस्तित्व में होने का मतलब विचारों में मतभेद और विचारों में भय या अविकार आना ही होता है , मन का होना सकारात्मक कभी नहीं हो सकता है। 

2. मन को ख़त्म करने के तरीके :

हमारी मौजूदगी से ही उलझाव पैदा होते है ; अतः अगर हम उलझाव या अशांति के कारण की जगह से ही हट जायेंगे तो उलझाव या अशांति अपने आप समाप्त हो जाएगी। 

अतः मन को शांत करने / हटाने के लिए उसके कारण से अपने आप को दूर करना होगा , तभी हम मन के परे ( बाहर ) आ सकते हैं। 
अगर मन से लड़ने की कोशिश / अशांति से लड़ने की कोशिश करेंगे तो अशांति / भ्रान्ति तो बढ़ेगी ही। अतः अशांति के कारण से अपने आप को अलग करो ; शांति अपने आप आ जाएगी और मन का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा। इसे ही मन की शांति कहते हैं , जो सकारात्मक विचारों को जन्म देती है। 

" ध्यान (MEDITATION ) " द्वारा हम मन का अस्तित्व समाप्त कर सकते हैं , हम शरीर / दिमाग को मन से बाहर ला सकते हैं। 

ध्यान का मतलब - मन के बाहर चले जाना , मन से हट जाना , मन का ना रह जाना , विचारों के उलझाव से दूर हो जाना ही है। 
ध्यान की विधि द्वारा हम अपने विचारों के अन्तर्द्वन्द / उलझाव / भ्रमित कर देने वाली स्थिति से हट सकते हैं। 

  ध्यान मन को शांत करने की विधि नहीं है ; ये तो अशांति वाली  जगह, कारणों से शरीर/आत्मा को अलग करने की विधि है ; जिससे हम क्रोध , घृणा , डर वाले कारणों से हट जाते हैं और शांति का अनुभव करते हैं। 

3. मन पर नियंत्रण के उपाय :
दृढ-इच्छाशक्ति

    1. जब हम अपने विचारों ( मन ) पर नियंत्रण नहीं रख पाते हैं तो हम खुद के ही विचारों,भावनाओं लड़ रहे होते हैं ; हम खुद की क्षमताओं पर ही संदेह करने लग जाते हैं। 
इस स्थिति में नकारत्मक विचारों को छाँटने व विशिष्ट विचारों को अपनाने में स्वयं को असमर्थ महसूस करते हैं। इससे हमें बैचेनी , निराशा , क्रोध ,आशंकाएँ सताने लगती हैं। 

    ऐसे समय हमें सकारात्मक सोच के साथ विचारों को परखना चाहिए और कोई निर्णय सोच-समझ के बाद लेना चाहिए। विचारों पर नियंत्रण करें और नकारात्मक विचारों को विवेक ,धैर्य के साथ सकारात्मक दिशा में बदलने का प्रयास करें। 

    अगर हम दृढ-इच्छाशक्ति के साथ खुद को समय देकर विचारों की नकारात्मकता पर सकारात्मक विचार करेंगे तो धीरे-धीरे सब सामान्य होता जायेगा ; समय के साथ-साथ हम अधिक संतुलित व आत्मविश्वास से भर जायेंगे। 

    2. मन ( नकारात्मक विचार ) चंचल होता है ,नकारात्मक विचारों से ही मन बनता है। बिना विचारों के मन का कोई अस्तित्व ही नहीं होता है। 

    अगर हमारे विचार चलायमान होंगे तो हम कभी भी विशेष निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सकते हैं; फलस्वरूप हमारी विकास की गति रुक जाएगी। 
अतः हमें विचारों के अंतर्द्वंद , चंचलता ,विघ्नता , विषमताओं को वश में करना ही होगा। 

    3. हमारे विचार हमारी इच्छाओं और आवश्यकताओं से प्रेरित होते हैं। इनमें से कई इच्छाएं ऐसी होती हैं जिन पर अगर समय बर्बाद करेंगे तो हम हमारी वास्तविक आवश्यकताओं की पूर्ति सही समय सीमा में नहीं कर पाएंगे ; अतः निरर्थक इच्छाओं , विचारों पर लगाम लगानी होगी। 

    हम निरर्थक इच्छाओं जैसे - मीठे के शौकीन होना , जुआ - शराब आदि की लत लगना , हद से ज्यादा सैर-सपाटे या चल-चित्र का शौकीन होना आदि-आदि का दमन हम हमारी दृढ-इच्छाशक्ति के बल पर ही कर सकते हैं। 

     हमारे विकृत नकारात्मक विचार हमें वास्तविकता जानने से रोकते हैं अतः ऐसे समय खुद को ,परिस्थिति को समझने का प्रयत्न करें। थोड़ा रुकें और नकारात्मक विचारों पर कार्य करें व सकारात्मक विचार ,इच्छा पर आगे बढ़ें। 

    4. विचारों को ध्यान विधि से सुगमता से संतुलित कर सकते हैं ; अतः ध्यान को दैनिक जीवन में शामिल करें। 
 

 

 

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