Sunday, September 5, 2021

आत्म नियंत्रण l आत्म संयम l आत्म अनुशासन l SELF CONTROL l SELF RESTRAINT

 आत्म नियंत्रण ( आत्म संयम ) 

SELF-CONTROL

     "आत्म-नियंत्रण प्रलोभनों और आवेगों के सामने अपने मन को नियंत्रित करके भावनाओं , विचारों , व्यव्हार , क्रोध , अभिमान पर नियंत्रण ( विजय प्राप्त करना ) बनाये रखने की क्षमता है। 

इस प्रकार हम अपनी भावनाओं , व्यव्हार और प्रतिक्रियाओं को हमारे लक्ष्य, परिस्थिति और वातावरण  के अनुसार ढ़ाल और नियंत्रित कर सकते हैं।"

    हमारी भावनाओं , विचारों और प्रतिक्रिआओं , व्यव्हार को हमारे लक्ष्य के अनुरूप ढ़ालना व उन्हें नियंत्रित करके प्रलोभनों और आवेगों से स्वयं को बचाने की क्षमता को ही आत्म-नियंत्रण कहते हैं।

    हमारी चाहतों को लक्ष्य की दिशा में केंद्रित करना और बातों , कार्यों को करने में अनुशासित होना ही आत्म-नियंत्रण का मुख्य कारक है। 

    विचारों के आवेग को एक ही लक्ष्य की ओर लगाए रखना और भावनाओं के वश में ना आना ही सफलता की पहली सीढ़ी है। 

    आत्म-नियंत्रण द्वारा हम अवांछित व्यव्हार ,इच्छाओं या आग्रह के ख़िलाफ़ प्रतिरोध करने की क्षमता प्राप्त करते हैं। 

आत्म-नियंत्रण द्वारा हम स्वयं के विचारों पर, प्रतिक्रियाओं पर और क्रोध, जलन आदि प्रवृत्तियों पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। इससे हमारी आत्मिक-शक्ति और आत्म-विश्वास में सकारात्मक वृध्दि होगी। 

आत्म-नियंत्रण द्वारा हम बुरे विचारों ,बुरी आदतों , क्रोध से बच सकते हैं। जैसे- नशा करना , दुराचार , दुराचरण ,हानिकारक जंक-फ़ूड खाना , अपराध आदि बुरी प्रवृत्तियों से बच सकते हैं। इस प्रकार हम बुराई की ओर जाने से और बड़े-बड़े विनाश होने से बच सकते हैं।
 
यही अच्छी आदतें आगे चलकर हमारे स्वस्थ्य ओर हमारे सम्मान में वृध्दि करवाने में सहायक सिद्ध होंगे। इस प्रकार हम तनाव-मुक्त जीवन ख़ुशी के साथ जीने की योग्यता हासिल भी करेंगे।  
    
    आत्म-नियंत्रण में स्व-नियमन भी आवश्यक है। 
आप जैसा सोच रहे हैं , महसूस कर रहे हैं , जो आपको आपके लक्ष्यों के नजदीक ले जाता है , उसे लक्ष्य के अनुसार दृढ़ता से पालन करने की क्षमता ही स्व-नियमन कहलाती है।

    लक्ष्य निर्धारित करने से ही आत्म-अनुशासन ( संयम ) आ सकता है। योजना को दृढ़ता के साथ अनुसाशित होकर पूर्ण करने की आदत डालनी होगी , तभी आत्म-संयम आ सकता है। 

अगर हम प्रारंभिक लोभवश सुखदाई और छोटे-छोटे लक्ष्य अपनाएंगे और समय को मौज मस्ती , यारी-दोस्ती , लक्ष्यहीन कार्यों आदि में ही बर्बाद कर देंगे तो बड़े -बड़े लक्ष्य कैसे प्राप्त हो सकते हैं ?

    आत्म-नियंत्रण प्राप्त करने के लिए क्षणिक सुख-सुबिधाओं , निरर्थक आमोद-प्रमोद आदि का त्याग करके विलंबित परिणाम देने वाले सकारात्मक कार्यों (जैसे - ज्ञान बढ़ाना ,मेहनत करना ,आलस्य त्याग कर कार्य में जुट जाना आदि-आदि ) को पूर्ण मनोयोग से करने की आदत डालनी ही होगी तथा साथ ही साथ बुरी आदतों , लत को भी छोड़ना होगा। 
अहंकार को त्याग कर स्वयं की कमजोरियों को दूर करने के प्रयास भी करने होंगे। 

    स्वयं को पहचान कर सच्चे मनोयोग से ज्ञान और कौशल में बृध्दि करने के लिए सकारात्मक दृश्टिकोण के साथ निरंतर परिस्थितियों से सीखना होगा , प्रगत्तिशील सोच के साथ आगे बढ़ना होगा। 
परिस्थितियों और वातावरण के अनुसार व्यव्हार , धारणाओं को पुनर्मूल्यांकन करके स्वयं को ढालना होगा। 

आत्म नियंत्रण ( आत्म संयम ) : 
CONFIDENCE

    जब तक हम हमारे मन रुपी चंचल और बुरे विचारों को नहीं समझेंगे और इन्हें वश में नहीं करेंगे तब तक आत्म-नियंत्रण करना मुश्किल होगा। अतः आत्म-नियंत्रण मन को समझने से ही आ सकता है। मन को वश में करना आवश्यक है। 

    मानव मस्तिष्क दूसरे प्राणियों से विशेष है क्यूंकि मानव मस्तिष्क में सोचने-समझने की और खुद को परिवर्तित करने की असीम क्षमता होती है। मानव में असीम मानसिक विशेषताएं हैं। मानव अपनी बुध्दि को अपने कार्य और सोच के अनुसार उपयोग में ला सकता है तथा स्थिरता का गुण ला सकता है। 
मानव अपनी बुध्दि और कार्य क्षमताओं को लक्ष्य की दिशा में आत्म-केंद्रित कर सकता है। इनमें आत्म-नियंत्रण की अद्भुत क्षमता होती है। 

आत्म-नियंत्रण करके ही हम उन्नत्ति कर सकते हैं। 

    जैसा ऊपर बताया गया है - आत्म-नियंत्रण का अर्थ है कि अपने आप पर नियंत्रण करना तथा कार्य अनुसार अपने को ढालना तथा अपने विचारों को सकारात्मक दिशा में लाना और नियंत्रित करना। 

    मन को वश में करके ही हम अपने लक्ष्य के प्रति एकाग्रचित्त हो सकते हैं। 

    चलायमान विचार , विचारों में बदलाव या द्वन्द ही मन होता है। जब तक विचार स्थिर नहीं होंगे , हम एक लक्ष्य पर सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ ही नहीं सकते हैं। अतः मन को वश में करना भी आत्म-नियंत्रण ही है। 

    मन पर नियंत्रण आसान नहीं है। इसके लिए धैर्य के साथ-साथ अभ्यास की जरुरत होती है। इसके लिए आत्म-संयम रखना होता है। मन की चंचलता मनुष्य की प्रगत्ति में सबसे बड़ी बाधा है। मन को स्थिर करने से ही हम अपना लक्ष्य , उद्देश्य प्राप्त कर सकते हैं। 

    आत्म-नियंत्रण ही सफलता की पहली सीढ़ी है। चाहे कैसी भी परिस्थिति आ जाये हमें संयम के साथ धैर्य -पूर्वक लक्ष्य पर बढ़ना चाहिए। 

कभी भी एक विचार से दूसरे विचार पर ना जाएँ और एक ही लक्ष्य का पीछा संयम के साथ करें , तभी उन्नत्ति प्राप्त हो सकती है। 

अगर प्रारंभिक मुश्किलों से घबराकर आत्म-नियंत्रण खो दोगे तो तुम एक लक्ष्य का पीछा कभी भी नहीं कर पाओगे। 

    हमें क्रोध , चिंता-फिक्र ,घृणा , डर को वश में करना आना चाहिए ; साथ ही साथ अति-आत्मविश्वास , अत्यधिक सोच पर भी नियंत्रण करना चाहिए - तभी हम आत्म-नियंत्रित होकर उन्नत्ति की ओर आगे बढ़ सकते हैं।

क्रोध , अत्यधिक नकारात्मक सोच हमारे व्यक्तित्व व शरीर पर बुरा प्रभाव डालती है। मानसिक दुर्बलता का मुख्य कारक क्रोध ही है। क्रोध में आकर हम कई बार स्वयं पर नियंत्रण खो बैठते हैं और आवेश में आकर विवेकहीन होकर ऐसे-ऐसे अनर्थपूर्ण कार्य कर बैठते हैं , जिनके लिए हमें जीवन भर पछताना पड़ता है। अतः हमें इन पर सकारात्मक विचार करने चाहिए और हर समस्या का धैर्य-पूर्वक समाधान निकलना चाहिए।

चिंता , आत्मग्लानि या क्रोध करने से कभी भी समस्या का हल नहीं निकल सकता ; उल्टा हम हमारे समय की , शारीरिक-मानसिक हानि ही करते हैं। 

    वाद-विवाद में शांति से काम लें। आवेश या क्रोध में आकर जल्दबाजी में कोई निर्णय ना लें।

क्रोध के समय मौन धारण करना या क्रोध के कारण से हट जाना हमें आवेश से बचा सकता है। ऐसे समय वाद-विवाद से बचना चाहिए। 


कार्य में स्थिरता और धैर्य आवश्यक है  :  
  • patience


    कभी भी कोई कार्य जल्दवाजी में करना ठीक नहीं होता, इससे हम पथ-भ्रमित हो सकते हैं। कच्चा ज्ञान हमें कभी भी स्थाई सफलता नहीं दिला सकता है। 

    जब भी कोई कार्य आरम्भ करो ; पहले उसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी इकट्ठी करो , उस पर विचार करो। इसके बाद कार्य योजना बनाओ ,तभी आगे बढ़ो। 
इस प्रकार हम निडरता के साथ आत्मविश्वास के साथ कार्य में वांछित परिणाम प्राप्त कर सकते हैं। हम अपने लक्ष्य पर आत्म-विश्वास के साथ , बिना रुके आगे बढ़ सकते हैं। 

पूर्व योजना के कारण हम आने वाली परेशानियों के बारे में पूर्व में ही अवगत होंगे और समय पर उपाय भी कर सकते हैं। 
ये सब कार्य हम स्वयं को आत्म-नियंत्रित करके ही कर सकते हैं। 

    हमें स्वयं पर संयम रखना सीखना होगा। 
    शुरुआत में व्यय किया गया समय बाद में उन्नत्ति का सकारात्मक मार्ग प्रशस्त करेगा। 
    
    कई बार हम संयम खोकर कुछ ऐसा कर बैठते हैं जिसका दुस्परिणाम हमें जिंदगी भर आत्मग्लानि देता है ; अतः कभी भी किसी भी परिस्थिति में निराश , असंयमित ना हो जाएँ , सकारात्मक सोच के साथ बुरी परिस्थिति से निकलने के उपाय खोजें और धर्य के साथ इन उपायों पर योजना बनाकर चलें - सही समय पर ही सफलता मिल सकती है। 

सब्र से काम लेकर हम बहुत कुछ सफलता प्राप्त कर सकते हैं। 


विशेष : 

    आत्म-संयम रखकर ही हम मन पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। मन पर विजय पाकर ही हम धैर्य , आत्मविश्वास के साथ वास्तविक उन्नत्ति पा सकते हैं। 

    हमें स्वयं पर पूर्ण-नियंत्रण करना आना चाहिए।  विचारों तथा भावनाओं को लक्ष्य पर एकाग्रचित्त करें एवं लक्ष्य से भटके नहीं ; यह ही उन्नत्ति का रहस्य है। 

    हम आत्म-नियंत्रण , आत्म-संयम द्वारा ही प्रत्येक कठिनाइओं और विपरीत परिस्थितियों में भी स्वयं के लक्ष्य की ओर आगे बढ़ सकते हैं ; यह ही मानसिक संतुलन में सहायक होगा। 

    हमारी सारी योग्यता , कौशल तभी कार्य कर सकते हैं जब हम आत्म-संयम , निडरता के साथ उन्हें अपने लक्ष्य पर दृढ़ता के साथ काम में लेंगे। 
अगर हम लक्ष्य पर टिके नहीं रह सकते हैं तो हमारी सारी सामर्थ्य ओर योग्यताएं व्यर्थ हो सकती हैं। 

    जब तक आप अपने विचारों ( मन ) को एकाग्रचित्त नहीं कर सकते आप सफल भी नहीं हो सकते हो। अतः मनोयोग से कार्य करने पर ही सफलता सुनिश्चित हो सकती है। 

    अपने मन को वश में करके आलश्य , डर पर विजय पाई जा सकती है। मन के वश में आकर आज का कार्य कल पर नहीं टालें , कार्य-योजना के साथ कार्य आरम्भ कर दें ; तभी सफलता सुनिश्चित होगी। 

    अपनी भावनाओं , इच्छाओं को वश में करके ही हम विजय पा सकते हैं। 

    मन पर नियंत्रण रखें , मन को लक्ष्य पर केंद्रित करें , मन को भटकने ना दें। 
विपरीत परिस्थितियों में भी विचारों को विचलित ना करें ; सकारात्मक सोच के साथ सकारात्मक हल निकलकर निरंतर प्रयास करते रहें। इस प्रकार एक निश्चित समय सीमा पर सफलता अवश्य प्राप्त होगी। 

    आपके यह ही सकारात्मक गुण आपको वास्तविक सफलता दिलाएंगे। 

    " सफलता का मूल मंत्र ही आत्म-नियंत्रण है , मन रुपी विचारों को नियंत्रित करना है। इन्हें अपनाकर हर कार्य संभव होगा।"

स्वयं पर आत्मविश्वास रखो ओर उन्नत्ति के मार्ग पर बढ़ते चलो। 
    




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