Wednesday, October 20, 2021

सफलता l जीवन में सफल कैसे हों l Success l Success Factors

जीवन में सफल कैसे हों ? 

Success / Success Factors )

SUCCESS

    जीवन का नाम ही संघर्ष है। बिना संघर्ष किए और बिना मेहनत के हम कभी भी सफल नहीं हो सकते हैं। 

जितने बड़े हमारे लक्ष्य होंगे हमें उतने ही बड़े प्रयास करने होंगे।

    अगर कार्य करेंगे तो कुछ गलतियां होना या कुछ असफलताएं मिलना भी स्वाभाविक है ; इनसे घबराकर आत्म-विश्वास खो देना समझदारी नहीं होती।

मार्ग में आईं दिक्कतें और असफलताएं ही हमें कुछ नया सीखने या कुछ नई जानकारी प्राप्त करने का अवसर प्रदान करती हैं।

अगर हम जागरूक होंगे तो सही समय पर सही निर्णय लेकर असफलता को सफलता में बदल सकते हैं। अतः अच्छा होगा हम इन असफलताओं और गलतियों से सीख़ लें और अपना ज्ञान , कौशल बढाकर असफलताओं को नई ताकत में बदल दें। 

    अपनी चाहतों को पूरा करने के लिए सतत प्रयास तो करने ही होंगे ; लेकिन केवल किसी एक ही चीज़ को पाने के लिए बैचेन बने रहना भी ठीक नहीं हैं। हमें संतुलन बनाये रखना होगा , स्वयं पर तथा स्वयं के प्रयासों पर आत्मविश्वास बनाये रखना होगा। 

    समय की अपनी गति है और हमारी अपनी सीमाएं हैं। 
ज्यादातर हम बीते समय की अच्छी-बुरी यादों में ही अटके रह जाते हैं। 

    हम जितना समय बीती बातों में बर्बाद कर देते हैं ; हमारी परेशानियां भी उतनी ज्यादा बढ़ने लगती है। अतः अच्छा होगा हम अपनी सोच को वर्तमान पर ध्यान देने में लगाएं और वर्तमान पर मन को एकाग्र करें। 

    हमें जीवन में लचीलापन लाकरअपने भीतर के डर , भावनाओं को सकारात्मकता के साथ वश में करना होगा। 

हमें बाहर की बजाय स्वयं के भीतर के सच को देखना चाहिए ; अपनी क्षमताओं , आत्मिक ऊर्जा के प्रभाव को महसूस करना चाहिए। 

    हमें स्वयं की वास्तविकताएं जानना आवश्यक है ;  जैसे - " हम क्या हैं ? ",  " हमारे उद्देश्य क्या हैं ? ",  " हम क्या बन सकते हैं ? ", " हमारे जीवन के अनुभव कैसे हैं ? ", " हमारी कमजोरियाँ , विश्वास क्या हैं ? "।  इससे हम स्वयं की क्षमताओं , सीमाओं की जानकारी प्राप्त करके स्वयं को सही दिशा में आगे बढ़ाने में सक्षम होंगे। 

    हमें सफल होने के लिए सुरक्षित और आसान दायरों से बाहर आना होगा , स्वयं के आलश्य , शाही शोकों , फिजूल की यारी-दोस्ती , हद से ज्यादा मौज-मस्ती से बाहर आना होगा। 

    हमें दूसरों पर निर्भर रहने की बजाय स्वयं को इतना शक्तिशाली बनाना होगा की हम हर परिस्थितियों का धैर्यपूर्वक सामना कर पाएँ। 

    हमें दूसरों से डरने की कोई जरूरत नहीं होनी चाहिए कि दूसरे हमारे बारे में क्या कहते या क्या सोचते हैं। हमें स्वयं पर ध्यान देना चाहिए तथा वही कार्य करना चाहिए जिस पर हमारा पूर्ण विश्वास , जिसकी हमें पूर्ण समझ , क्षमताएं हों। 

    दूसरों की राय लेने में कोई बुराई नहीं है ; लेकिन  स्वयं के दिमाग से काम लेकर अंतिम निर्णय लेना उच्चित होगा। 

    हमें असफल होने से डरने की कोई जरूरत नहीं होनी चाहिए , दूसरों से डरकर कार्य को कभी नहीं करना चाहिए। 
हमें स्वयं पर पूर्ण विश्वास करना चाहिए। अगर हम स्वयं पर विश्वास नहीं कर सकते तो दूसरे कैसे हम पर विश्वास कर सकते हैं। 

    अगर हम दृढ-संकल्प और आत्मविश्वास के साथ योजनानुसार कार्य करेंगे तो अवश्य सफल हो सकते हैं ; वशर्तें हम हमारे संकल्प और इच्छाशक्ति पर अडिग रहें , दुनिया की सुनना बंद कर दें। 

    अगर हम हमारी किसी विशेष राय , डर और पिछले समय के दर्द में अटके महसूस कर रहे हैं , तो ये कोई बुरा नहीं है ; अगर हम स्वयं को समय देकर इन पर विचार करें तथा इन समस्याओं से निकलने का प्रयास करें तो हम और अधिक सशक्त होकर सफलता की ओर कदम बढ़ा सकते हैं। इसके लिए हमें स्वयं के प्रति ईमानदार होकर अपनी भावनाओं , डर और दर्द को महसूस करते हुए समाधान खोजने होंगे। 

    हमें आत्म-विश्वास के साथ अपनी शक्तियों को सही दिशा में लगानी होंगी। और उत्साह के साथ नई दिशा में लक्ष्य के साथ आगे बढ़ना होगा। 
ऐसी स्थिति में स्वयं पर नियंत्रण , मन को वश में रखना होगा , धैर्य तथा सूझबूझ के साथ किसी सकारात्मक निष्कर्ष पर पहुँचना होगा।  

    हमें सभी अच्छे-बुरे फैसले जिम्मेदारी के साथ लेने चाहिए तथा कभी भी अपनी हार का दोषारोपण दूसरों पर नहीं करना चाहिए। 
होने वाली सभी घटनाओं की जिम्मेदारी स्वयं लें , बेहत्तर बनने का प्रयास करें। इससे आपकी समझ और आत्म-विश्वास का विकास होगा। 

    बीती गलतियों पर चिंता करने या दूसरों पर दोषारोपण करने से कुछ हासिल नहीं होगा। अच्छा होगा कि हम वर्तमान में जिएँ , गलतियों के कारण खोजकर , नई सोच , कौशल , तकनीक के साथ गलतियों को सुधारकर सफलता के प्रयास करें। 

    हमें वर्तमान को बेहत्तर बनाने के लिए कठोर परिश्रम करने चाहिए। 
    हम बीते कल का दुःख ना मनाएँ , भविष्य की चिंता ना करें।

    कठिन परिस्थिति में भयभीत होकर बैठने से अच्छा है कि साहस के साथ सूझबूझ द्वारा कार्य करो। 
समस्याओं के शीघ्र समाधान के प्रयास करो। अगर आप दृढ-संकल्पित होंगे और सकारात्मक प्रयास करेंगे तो सफलता अवश्य मिलेगी। 

1. दूसरों की सुनें :

    कई बार हम नकारात्मकता से इतना भर जाते हैं कि दूसरों के सुझाव या बातें सुनना ही नहीं चाहते हैं। हम दूसरों की बातों को ना समझकर फिजूल का गुस्सा करने लगते हैं और आरोप भी लगा सकते हैं। ऐसा करके हम अपनी छवि ही धूमिल करते हैं और साथ ही साथ हम और नकारात्मकता ही ग्रहण करते हैं। 
अतः हमेशा पहले दूसरों की सुनो और उनकी बातों पर विचार करो ; उसके बाद सोच-समझ के साथ सुलझी हुई प्रतिक्रिया दो। 

2. खुद को प्रदर्शित करो : 
खुद को प्रदर्शित करो

    यदि हम किसी की बात से सहमत नहीं हैं तो हमें चुप ना रहकर ठण्डे दिमाग़ से संयम के साथ अपनी प्रतिक्रिया दूसरों को बता देनी चाहिए। 
इससे हमारी असहमति से वे भी अवगत हो जायेंगे , और हम कुंठा से बचे रहेंगे। 
दूसरों को खुश करने के चक्कर में कुंठा पालने से अच्छा है कि हम तुरंत असहमति को प्रदर्शित करके उनको भी सुधार का मौका दें। इससे हमारे सम्बन्ध और खुले , व्यावहारिक होंगे। 

आप जो भी चाहते है या जैसा आप महसूस करते है ,उस को लेकर स्पष्टता होनी चाहिए। 
अपना गुस्सा या गलतियों को किसी दूसरे पर नहीं डालना चाहिए ; इसकी बजाय सामने वालों को आपकी राय बता दें और हर बात तुरंत स्पष्ट कर लें। 

3. कभी आशा ना करो कि सभी आपकी बातों से सहमत होंगे  :

    दूसरों की सोच अलग हो सकती है अतः बलपूर्वक उन्हें अपनी बात मनवाने की भूल ना करें। 

4. लक्ष्य निर्धारण :

    अपने जीवन के लक्ष्य निर्धारित करो। 
बिना लक्ष्य के हम अपने को अनुशासित होकर कार्य के प्रति आत्मकेंद्रित नहीं कर सकते हैं। 

लक्ष्य प्राप्ति के लिए दृढ-संकल्पित और साहसी बनना होगा। 
हमें सोच में लचीलापन लाना होगा और लक्ष्य अपनी क्षमता , कौशल के अनुरूप निर्धारित करने चाहिए। हमें नई जरूरत के अनुसार नए तरीके अपनाने के लिए तैयार रहना चाहिए। 

लक्ष्य को पाने के लिए दृढ-विश्वास के साथ कार्य के प्रति अनुशासित होना होगा। 

5. अपने दिल की सुनें , खुलकर जिएँ :

    भावनाओं को वश में रखें , छोटी-छोटी बातों से मन हल्का ना करें। 

भावुक बनो पर भावनाओं को सकारात्मक सोच के साथ हल खोजने में लगाओ। 

संवेदनशील होना अच्छी बात हैं लेकिन संवेदनाओं को भावनाओं से अलग रखो ; हर बात को दिल में ना लगा लो या भावुक हो जाओ। 
चिड़चिड़ाहट , झल्लाहट , गुस्सा , ग्लानि , भय जैसे भाव हानिकारक होते हैं। 

विपरीत माहुल में भावुक होने से कार्य बिगड़ सकता है ; अतः इस समय स्वयं की भावनाओं पर नियंत्रण करके कारणों पर सकारात्मक विचार करो और स्थिति को सुधारने के हल खोजो , तभी माहुल सुधर सकता है। 

विपरीत माहुल में क्रोध करके हम अपना नुकसान ही करेंगे। अगर इस समय हम निराश हो जाएँ तो आगे कोई समाधान ना निकलकर स्थिति और दुखदायी हो सकती है। 

विपरीत परिस्थितियों से निम्न प्रकार उबर सकते हैं :-- 

डर तथा क्रोध पर नियंत्रण


1. विपरीत परिस्थितियों में डर तथा क्रोध पर            नियंत्रण रखें।

 
    इस समय संयम के साथ कार्य करें , धैर्य के साथ हल खोजने के प्रयास करें। 
अगर हम किसी बात से सहमत भी ना हों तो भी आवेग में आकर प्रतिक्रिया देने से बचें। अच्छा होगा संयम से काम लेते हुए अपना पक्ष रखें। बहस करने से परिस्थिति और बिगड़ सकती है। 

    कभी भी डरें या कुढ़े नहीं ; स्थिति का विश्लेषण करें कि ये विपरीत बातें आपके कितनी काम की हैं ; जिसको लेकर हम चिंतित हो रहे हैं ? ; जिन लोगों ने आपको आहात किया है , उनका आपके जीवन में कितना महत्व है ?
अगर ये बातें आपके जीवन में ज्यादा महत्व नहीं रखती हैं तो इन पर समय बर्बाद करने या चिंता करने से बचें। 

    किसी बात को लम्बे समय तक लेकर ना चलें ; तुरंत फैसले लें तथा गलत , निरर्थक बातों को नकारते हुए नई राह पर आत्म-विश्वास के साथ आगे बढ़ें। 

    हमें अपने सोचने-समझने का नज़रिया बदलना होगा तथा व्यव्हार हमेशा ऐसा बनाकर रखें कि इसके कारण भविष्य में कोई परेशानी ना हो ; सभी का सहयोग प्राप्त किया जा सके। 


2. स्वयं को व्यक्त करें 
    
    अगर आपको कोई बात आहत कर रही है तो सामने वाले को संयम के साथ प्रतिक्रिया जरूर दें। अपनी भावनाओं को व्यक्त ना करने से धीरे-धीरे मन में बुरे विचार जमा होने लगते हैं ; जो क्रोध , खीज़ , झल्लाहट के रूप में हम दूसरों पर करते हैं और परिस्थितियों को बिगाड़ने का काम करते हैं। 

    हम बातचीत करके ही एक-दूसरे के कारणों , नजरिये को पहचान सकते हैं , आपसी सहमति बना सकते हैं। हम बातचीत करके ही दूसरों के भ्रम को मिटा सकते हैं। 
अतः निडरता , दृढ़ता व संयम के साथ अपना पक्ष रखें , दूसरों को बोलने का मौका जरूर दें तथा उनकी हर बात को गंभीरता के साथ सुनें। तभी हम स्थाई समाधान निकाल सकते हैं। 

    किसी भी बात को लेकर दुभिधा में ना रहें , खुले दिल से जीवन का आनंद लें।
 
    जीवन के उतर-चढाव को हम सकारात्मक सोच के साथ सकारात्मक प्रयास करके ही दूर कर सकते हैं। 

    भावुक या निराश होकर बैठ जाने से कभी कोई सार्थक परिणाम प्राप्त नहीं होगा। अतः योजना के साथ समाधान की और बढ़ें।

6. समझौता करने में व्यवहारिक लचीलापन लाएँ :

    परिस्थिति और समय के साथ सोचे-समझे समझौते गलत नहीं होते ; अगर इससे दोनों तरफ से आपसी सहमति , प्रगत्ति , शांति आती हो। 

लेकिन डर कर समझौता करना हमारे व्यक्तित्व , शरीर में कुंठा , आत्मग्लानि , अवसाद , तनाव , बढ़ा सकता है। 

अव्यवहारिक समझौते हमारी तरक्की के मार्ग को अवरुद्ध कर सकते हैं। 

अतः परिस्थिति को देखते हुए और सफलता-असफलता का आकलन करने के बाद ही निर्णय लेकर समझौता करने की आदत डालें। 

कभी भी हमें किसी दूसरे से कमतर महसूस ना करें। 
अपने दिल की सुनकर ही फैसले लें।
 
हर कदम-कदम पर समझौता करना गलत होता है। मात्र किसी को ख़ुश करने के लिए गलत समझौता कभी ना करें। 
अगर हम कभी दूसरों की राय से सहमत ना हों तो निडरता के साथ उसका विरोध करें। 

हमें सही-गलत का फर्क करना आना चाहिए। 
लचीलापन गलत नहीं है , लेकिन डरकर फैसले लेना गलत होता है।  

7. उम्मीदें ना रखें :

    हमें वर्तमान में जीना आना चाहिए। 

कई बार हम वर्तमान पर ध्यान ना देकर भविष्य की अपेक्षा और भविष्य में मिलने वाले फायदों की उम्मीद पाले रहते हैं। 

    अगर हम वर्तमान पर ध्यान देंगे और सफल होंगे तो भविष्य तो स्वयं ही उज्जवल हो जायेगा और भविष्य में हम उम्मीद से ज्यादा स्वतः ही प्राप्त कर लेंगे। अतः वर्तमान पर बिना उम्मीद के कार्य करें , इससे आपका मन-मस्तिष्क एकाग्रः और शान्त हो सकता है। 
भविष्य की कल्पना करना हमें दुविधा में डाल सकता है। 

    हाँ ! भविष्य के लक्ष्य , योजना बनाना गलत नहीं है ; ये हमारे लक्ष्य ही हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं। यहाँ मतलब एक ही है कि हम वर्तमान पर अधिकाधिक ध्यान एकाग्रः करें , छोटी-छोटी खुशियों -सफलताओं का आनंद लें तो लक्ष्य धीरे-धीरे पूर्ण होते चले जायेंगे। 

    हद से ज्यादा उम्मीद पालना हमें लक्ष्य से भटका सकता है। अतः सदा उम्मीदों पर ध्यान ना देकर लक्ष्य में आई बाधाओं पर ध्यान दें , उन्हें सफल बनाने के प्रयास करें। इससे हम स्वयं को शान्त , अनुशासित , एकाग्रः करने में सफल हो सकते हैं। 

    जीवन की वर्तमान में मिली छोटी-छोटी खुशियों को महसूस करें , योजना के अनुसार आगे बढ़ते चलें। 

विशेष  :-

1. दूसरों से उम्मीद -

    हमें स्वयं पर विश्वास होना चाहिए , दूसरों से उम्मीद कभी ना रखें ; क्योंकि हम स्वयं को तो अपने लक्ष्य के अनुसार ढ़ाल सकते हैं लेकिन दूसरों को नहीं। 

    हाँ ! हम अपने लक्ष्य के अनुसार दूसरों को प्रेरित कर सकते हैं , उन्हें अपने लक्ष्य में सहयोगी बना सकते हैं। 
घर-परिवार , जीवन साथी , माता-पिता और बच्चों को हम साथ लेकर चल सकते हैं ; लेकिन उनकी भी कुछ सीमाएँ हैं। अतः इनसे भी अपेक्षाएँ एक सीमा तक ही रखें , उन्हें प्रेरित भी करें लेकिन स्वयं में परिवर्तन करना हमारे वश में है। 
घर-परिवार , जीवन साथी , माता-पिता और बच्चों को बिना उम्मीद के सहारा , प्रोत्साहन दें ताकि ये सभी आपात स्थिति में उनके हारने पर भी धोख़ा ना खाओ। 

    हमें संतुलित व्यव्हार करना सीखना होगा। 

    हमें स्वयं के लक्ष्य के अनुसार बढ़ना है ना कि दूसरे हमसे क्या उम्मीद रखते हैं। 
दूसरों की अच्छी बातों से सहमत हों ; लेकिन उन्हें खुश करने के लिए खुद के लक्ष्य से कभी ना भटकें। 

    हमें स्वयं की अपेक्षाओं पर खरे उतरना है ना कि दूसरे हमसे क्या अपेक्षाएँ रखते हैं , उन पर ध्यान देना है। 
    दूसरों की चिंता ना करें और वही करें जो आपको लक्ष्य हासिल करने में मदद करे। 

    अपने जीवन साथी , परिवार के सदस्यों पर ज्यादा दबाब ना बनायें , ना ही उनसे इतनी उम्मीदें रख लें कि आपका व्यव्हार जाने-अनजाने ही बदल जाए। परिवार के साथ सहजभाव अपनाएँ और व्यव्हार व्यवहारिक रखें। 
उत्तेजना , भावुकता काम बिगाड़ सकती है। 
हमें यही विश्वास करना होगा कि सभी अपना-अपना सर्वश्रेष्ट कर रहे हैं। अगर संभव हो तो आप उन्हें सही दिशा-निर्देश दें ; लेकिन उन पर दबाब ना दें। 

    हमें दूसरों के प्रति खुले और ईमानदार व्यव्हार को प्राथमिकता देनी चाहिए। यह एक अच्छा गुण है।  

2. वर्तमान क्षण में जिएँ -

    भविष्य के बारे में ज्यादा सोचना बन्द कर दें। 

3. राय बनाना बन्द करें -

    कभी भी दूसरों के बारे में कोई राय या फैसला ना दें ; उनकी आलोचना करना बन्द करें। इससे आप स्वयं पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।
 
    कभी दूसरों से ये अपेक्षा ना करें कि वो आपके हिसाब से कार्य करे। आप स्वयं पर ध्यान दो और स्वयं को इतना शक्तिशाली बनाओ कि दूसरों पर निर्भर ही ना होना पड़े। 

    कभी भी किसी और पर अपनी राय थोपने का प्रयास ना करें। 
हमेशा पहले दूसरों की सुनें , दूसरों को अपना पक्ष रखने का मौका दें ; इसके बाद ही सोच-समझ कर अपना पक्ष रखें। 

    बिना सोचे-समझे दूसरों की बात या तर्क को मानने से इनकार ना करें। अगर आप अपने ही नजरिये पर अटके हुए हैं , दूसरों की सुनना ही नहीं चाहते हैं तो इसका अर्थ है कि आप धीरे-धीरे अभिमान वश स्वयं को पतन कि ओर धकेल रहें हैं। 

    कभी भी जिद्दी स्वाभाव ना लाएँ। लचीलापन सही होता है , अगर दूसरा सही है तो उसकी बात मानना समझदारी ही होगी। इससे आपका व्यक्तित्व दूसरों की निगाहों में बढ़ेगा। 

4. कार्य योजना अनुसार करें , लेकिन परिणामों के बारे में ही ना सोचते      रहें  -

    कार्य को सहज भाव से करते जाएँ , उनकी समीक्षा भी करते रहें। लेकिन भविष्य के परिणामों के बारे में ज्यादा डर ना पालें।
 
    हम मात्र वर्तमान पर ही नियंत्रण कर सकते हैं। भविष्य के बारे में चिंता करके हम अवसाद ,दर , कुंठा और हताशा को ही प्रेरित करेंगे ; लाभ कुछ ना होगा। 

    मात्र अपना सर्वश्रेठ दें , जो भी परिणाम प्राप्त हो उससे प्रेरणा और आगे की सीख लेकर और प्रगत्ति करने का प्रयास करें। 

    जीवन को सर्वश्रेठ बनाने के लिए हमें कोशिश के साथ-साथ लगातार सीखना भी पड़ता है। हमें अपने काम को बेहतर बनाने के लिए लगातार प्रयास करने होंगे।
 
    अपनी कमजोरियाँ पहचानें , कार्य की बारीकियाँ पहचानें , उन्हें सीखने का प्रयास करें तथा कुशलता बढ़ाएँ।

    कार्य करेंगे तो गलतियाँ होना स्वाभाविक हैं ; लेकिन इनको सुधारना भी हमारा ही दायित्व है। हमें गलतियों को सुधारने के लिए कारणों पर विचार करके उपायों पर कार्य करना होगा। 

    अगर हमें प्रतिस्पर्धा में रहना है तो कार्यशैली , व्यव्हार , तकनिकी-कौशल में नए-नए प्रयोग करके नए बदलाबों को अपनाना होगा। 

    जो लोग नई चीजों को जल्दी अपनाते हैं , उनमें उत्साह ,आत्म-विश्वास बढ़ता है ; उनकी सोच भी सकारात्मक होती है।  
       

8. स्वयं को पहचानें :

    जिंदगी की दौड़भाग तो जिंदगीभर लगी रहेगी लेकिन यदि हमें ख़ुशी प्राप्त करनी है तो प्रतिदिन स्वयं को ज्यादा से ज्यादा समय देना चाहिए। 
हमें स्वयं की कमजोरियों और विशेषताओं की जानकारी करनी चाहिए।
 
    जीवन में आई सभी ख़ुशी-गम , सफलता-असफलता का गंभीरता से आकलन करना होगा , उसी के अनुसार स्वयं में सकारात्मक परिवर्तन लाने होंगे ; तभी हम वास्तविक लक्ष्य और सफलता हासिल कर सकते हैं। 

    स्वयं के प्रति विश्वास , दृढ भावनाएं होनी चाहिए। हमें अपनी शक्तियों , कामयाबियों पर सकारात्मक गर्व होना चाहिए। जब तक हम स्वयं को स्वीकार नहीं करेंगे तो दूसरे कभी भी हम पर विश्वास नहीं कर सकते हैं। 

    अभिमानी ना बनो लेकिन स्वाभिमानी होना ही चाहिए ; स्वयं पर पूर्ण आत्म-विश्वास भी होना ही चाहिए। 

    अपने आत्मिक विकास के लिए हमेशा सकारात्मक लोगों से सम्बन्ध रखें , नकारात्मक विचार वालों , कपटी , अनाचारी , दुराचारी , ईर्ष्या-द्वेष , समय बर्बाद करने वालों से जितना जल्दी संभव हो , रिश्ते ना रखो। इससे आप स्वयं पर ध्यान लगा पाओगे , हमेशा सकारात्मक ऊर्जा से घिरे रहेंगे। 

    हम सभी इस सृष्टि में विशिष्ट प्राणी हैं , हमारे अंदर अथाह शक्तियाँ , खूबियाँ छिपी हुई हैं ; जरूरत है तो बस उन्हें पहचानने की , उनको अपनाकर उनको महत्व देने की। 

    बाधाओं को दूर करने के सकारात्मक प्रयास करें , स्वयं का आत्म-विश्लेषण करें। अपनी कमजोरियों , मिली हार को कुछ नया सीखकर अपनी ताकत बना लें ; इससे सफलता जरूर मिलेगी। 

    हमें अपनी पुरानी रूढ़ियों , दायरों , फ़िज़ूल की मान्यताओं से बाहर निकल कर डर के दायरे से भी छुटकारा पाना होगा।
 
    हमें ज्यादातर असफल होने का डर परेशान करता है ; यहां तक कि कभी-कभी बड़ी सफलता प्राप्त करने में भी डरते हैं। कई बार हम स्वयं को बेहत्तर जिंदगी जीने के काबिल ही नहीं समझते हैं। हमें स्वयं पर दृढ़ विश्वास रखना होगा तथा " लोग क्या कहेंगे ?" जैसे डर से छुटकारा पाना ही होगा। 

    अगर हम गहराई में जाकर देखें तो हम काफ़ी क्षमतावान , ऊर्जावान हैं , लेकिन हम इन्हें समझने की तथा स्वयं को समय देने की कौशिश ही नहीं करते हैं। 

    हमें मन को जीतना होगा , भावनाओं पर काबू करना होगा तभी हम अपनी क्षमताओं को पहचान कर डर के बंधन से बाहर आ सकते हैं।   

    आत्म-सम्मान , आत्म-नियंत्रण ही वह शक्ति है जिसके बल पर हम स्वयं को पहचानकर आत्म-विश्वास के साथ परिस्थितियों से लड़ सकते हैं। 

    गलत परिस्थितियों से कभी समझौता ना करो , कठिन प्रयास द्वारा हम छोटी-छोटी सफलता हासिल करते हुए परिस्थिति को हमारे अनुरूप बदलने में कामयाब जरूर होंगे ; अगर हमारा दृढ़-सांकल हो , स्वयं पर विश्वास के साथ निडर होकर कठिन परिश्रम की क्षमता बढ़ने में हम सक्षम हो जाएँ। 
  


    

    


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