योग_ध्यान_साधना से सफ़लता
यहाँ आप योग, ध्यान और साधना के साथ-साथ सफ़लता के मूल ज्ञान को पा सकते हो ! हमारा उद्देश्य आपको सत्य ज्ञान तथ्यों के साथ देना है; ताकि आप स्वस्थ तन, और मन के साथ-साथ सफ़लता के शिख़र तक पहुँच पाएँ !
DEEP BREATHING आप कभी भी बीमार नहीं पड़ोगे; अगर आपने अपनी 24 घण्टे चल रही सांसों को साधना सीख लिया ! यह एक वैज्ञानिक प्रमाणित तथ्य है कि कोई भी प्राणी जो सांसों को नाभि तक गहरी-लम्बी लेगा और जितना धीमा साँस बाहर ज्यादा समय ख़र्च करते हुए छोड़ेगा; उसकी आयु उतने गुणा ही बढ़ती जाएगी ! लम्बी-गहरी नाभि तक ली गई प्रत्येक सांस सीधे हमारी नाड़ियों तक पहुंचकर हमारी प्रत्येक कोशिकाओं को सही मात्रा में पोषित और ऊर्जावान बना सकती है ! इसके साथ ही ज्यादा देर में धीमी गति से साँस छोड़ने से शरीर में प्राणवायु लेने के लिए वैक्यूम बनेगा, और हम अधिक प्राणवायु लेने की योग्यता हाँसिल करेंगे, और शरीर में भरपूर प्राणवायु प्राण-ऊर्जा के रूप में एकत्रित होगी; इससे शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी तथा शरीर के खून में ऑक्सीजन का लेवल बढ़ेगा; जिनके फलस्वरूप शरीर स्वस्थ और शक्तिशाली बनता चला जाएगा ! जितना ज्यादा समय साँस लेने और छोड़ने का होगा उतना ही हमारी स्वास की दर कम होगी; जिसका सुफल हमारी दीर्धायु होगी ! ● इसका उदाहरण हमें जापानियों में मिलता है; जो लम्बी-गहरी साँस लेते हैं, और ज्यादा देर में धीमी गति ...
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इच्छा शक्ति l दृढ़ इच्छाशक्ति l दृढ़ संकल्प l इच्छाशक्ति कैसे विकसित करें
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इच्छा शक्ति
STRONG WILL POWER
इच्छा शक्ति , दृढ़ संकल्प , संकल्प , आत्म-अनुशासन , आत्म-नियंत्रण आदि-आदि का संयुक्त अर्थ ही इच्छा शक्ति होती है।
इच्छा का जन्म हमारी आवश्यकताओं और हमारी भावनाओ के आधार पर होता है। जैसी हमारी आवश्यकताएं होती हैं वैसा ही हम सोचने लग जाते हैं और हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए हमारी इच्छाएं जाग्रत्त होती हैं , जो हमारी सामर्थ्य और वातावरण के प्रभाव से हम उन्हें उसी अनुसार करने की कोशिश करते हैं।
हमारा विचार रुपी मन हमारी भावनाओं और इच्छाओं के प्रति कई प्रकार से अलग-अलग सुझाव देता है ,जिसके कारण हम किसी एक इच्छा और किसी एक विचार पर अटल रहने में स्वयं को असमर्थ पाते हैं। इसी असमर्थता को स्वयं के प्रयासों से किसी एक इच्छा पर अडिग रहने के लिए किये गए प्रयास ही जिस आत्मिक,आंतरिक शक्ति के कारण संभव हो पता है ; उसे ही हम इच्छा-शक्ति कहते हैं।
किसी एक इच्छा पर अटल रहना बिना दृढ-संकल्प के संभव ही नहीं है ; हमारे चलायमान विचार हमें एक निश्चय पर अडिग रहने से रोकते है , जिन पर विजय हम दृढ-निश्चयी होकर और आत्म-प्रेरणा से ही पा सकते हैं।
आत्म-अनुशासन , आत्म-नियंत्रण ही वह शक्ति है ,जिसके बल पर हम स्वयं पर और बाहरी दबाबों और डर का सामना करने में सक्षम हो पाते हैं। आत्म-अनुशासन , आत्म-नियंत्रण हमें कार्य के प्रति संयमित और अनुशाषित होने की प्रेरणा देता है और हम क्रोध ,आवेगों के दुश-प्रभावों से बच पाते हैं ; इसी के कारण हम धैर्य के साथ किसी लक्ष्य पर एकाग्र हो पाते हैं।
आत्म-नियंत्रण आदतों , व्यव्हार , क्रोध , घृणा आदि को नियंत्रित करता है तथा आदतों का पालन करने के लिए लक्ष्य-निर्धारित करता है।
इच्छा-शक्ति की कमी होने पर आदतों , बदलावों पर नियंत्रण रखना (आत्म-नियंत्रण ) मुश्किल होता है। अतः आत्म-नियंत्रण के लिए इच्छा-शक्ति का होना परम आवश्यक है।
स्वयं में कोई भी परिवर्तन दृढ-इच्छा शक्ति के बल पर ही किया जा सकता है।
" प्रेरणा , लक्ष्य निर्धारण , स्वयं को समय देना , लक्ष्य का आत्म-विश्लेषण के साथ-साथ दृढ-इच्छा शक्ति का सामूहिक प्रभाव ही हमें लक्ष्य की ओर परिवर्तन करने की स्थाई शक्ति प्रदान करता है। कोई एक ना होने पर हमारा वास्तविक ओर स्थाई परिवर्तन अनिश्चित होता होगा।
साथ ही साथ प्रलोभनों से दूरी बनाने से ही परिवर्तन को बल मिलेगा। "
1. इच्छा शक्ति :
इच्छा-शक्ति दीर्धकालिक लक्ष्यों की खोज में अल्पकालिक संतुष्टि का विरोध करने की क्षमता है।
" इच्छा-शक्ति हमारे विचारों , भावनाओं की वह सामूहिक अवस्था है जिसमें हम दृढ-संकल्प के साथ किसी कार्य को करने की दृढ शक्ति पाते हैं , जिसका लक्ष्य मात्र कार्य को पूर्ण करने तक अथक प्रयास होता है।
इस अवस्था में हम कार्य विशेष को पूर्ण करने का निश्चय कर लेते हैं और जब तक वह कार्य सफल नहीं होता निरंतर स्व-प्रेरणा से प्रयासरत रहते हैं। "
इच्छा-शक्ति से विचारों , व्यव्हार को नियंत्रित करने की क्षमता बढ़ती है।
इच्छा-शक्ति के बल पर कोई भी असंभव कार्य संभव किया जा सकता है ; वशर्तें हमारा स्वयं पर तथा हमारे निश्चय पर पूर्ण विश्वास हो। इसके कारण हम कोई भी बुरी लत , बुरी भावना , बुरे विचार को त्याग कर एक सफल जीवन तथा बड़ी से बड़ी सफलता पा सकते हैं।
हमारे सामने कई उदाहरण हैं , जो साधन-विहीन थे लेकिन उन्होंने दृढ इच्छा-शक्ति , दृढ-संकल्प के बल पर बड़ी से बड़ी असंभव दीखने वाली सफलताएं अर्जित की हैं।
कम इच्छा-शक्ति वाला व्यक्ति आसानी से हार मन लेता है।
बिना प्रेरणा ओर आत्म-नियंत्रण के प्रलोभनों का विरोध करने से भविष्य के प्रलोभनों और आवेग के साथ कार्य करने की प्रवृत्तियों को सहन करने ओर इन पर विजय प्राप्त करने की क्षमता , इच्छा-शक्ति कम हो जाती है।
इच्छा-शक्ति की कमी के प्रभावों को सकारात्मक सोच व सकारात्मक मनो-दशाओं , विश्वासों , दृष्टिकोणों से ही कम किया जा सकता है।
इच्छा-शक्ति आत्म-नियंत्रण द्वारा और दृढ-संकल्प द्वारा बढ़ाई जा सकती है। आत्म-अनुशासन द्वारा आत्म-नियंत्रण संभव है।
प्रबल इच्छा-शक्ति द्वारा संतुष्टि में देरी करने की क्षमता ,दीर्धकालिक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अल्पकालिक प्रलोभनों का विरोध करना , एक अवांछित विचार ,भावनाओं या आवेग को समाप्त करने की क्षमता तथा जल्दबाजी में भावनाओं में बह जाने पर नियंत्रण किया जा सकता है।
स्वयं द्वारा स्वयं का प्रयासपूर्ण नियंत्रण किया जा सकता है,जिसके परिणामस्वरूप हम कोई भी पूर्व निर्धारित लक्ष्य आसानी से सजगता के साथ प्राप्त कर सकते हैं।
" दृढ-संकल्प एक मानसिक प्रक्रिया है ,जिसके द्वारा व्यक्ति किसी कार्य को किसी विधि का अनुसरण करते हुए पूरा करने का प्रण करता है। "
किसी लक्ष्य ( जैसे कोई आदत बदलने का लक्ष्य ) को लेकर संकल्प करना ,उसे पूर्ण करने के लिए जी-जान से लगने की प्रेरणा / प्रयास ही इच्छा-शक्ति बढ़ते हैं।
किसी लक्ष्य को पाने के लिए मेहनत से ज्यादा इच्छा-शक्ति की जरूरत होती है ; यही हमें लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ने की प्रेरणा देगी चाहे कितनी भी कठिन स्थिति और परेशानियाँ क्यों ना हो।
दृढ-इच्छा शक्ति होने पर हम रुकावटों ,थकन आदि पर आसानी से नियंत्रण करने में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
इसी के कारण हौसला , आत्मविश्वास बढ़कर हम लक्ष्य पर टिके रह सकते हैं।
प्रबल इच्छा-शक्ति ही मनुष्य की सफलता का मुख्य आधार है। यह हम सबमें विधमान है , लेकिन इसे हमें जाग्रत व विकसित करने की आवश्यकता है।
असफल होने के बाद भी पुनः प्रयास करने की क्षमता दृढ इच्छा-शक्ति द्वारा ही संभव है। दुर्बल इच्छा-शक्ति के कारण ही हम एक लक्ष्य पर अडिग नहीं रह पाते हैं और एक से दूसरे लक्ष्य पर भटकते रहते हैं जिसके कारण हम बड़ी निराशा व बड़ी हार का सामना करते हैं, अंततः दुःख का अहसास करते हैं।
वर्तमान में रहने ,सोचने से इच्छा-शक्ति बढ़ती है ; जबकि पूर्व की परेशानियों , असफलताओं ,के बारे में सोचने और चिंता करने से समय बर्बाद होने के साथ-साथ इच्छा-शक्ति में कमी आती है।
भविष्य की निरर्थक चिंता भी हमें निराशा , भय के भाव देती है ; जिसका इच्छा-शक्ति पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
दृढ-निश्चय , आत्म-विश्वास , उत्साह , सकारात्मक विचार और भावनाओं तथा अनुशासन के साथ कार्य करने पर इच्छा-शक्ति का विकास संभव है।
हमें अपनी असीम प्रतिभा , विशेषताओं , क्षमताओं को पहचान कर इन्हें विकसित करने के लिए प्रबल इच्छा-शक्ति के साथ कठिन परिश्रम करके उन्हें लक्ष्य के प्रति आत्म-केंद्रित करना होगा।
निम्न के सम्मिलित प्रभाव से इच्छा-शक्ति प्रबल तथा सही दिशा में कार्य करती है ; तथा हम निरंतर बिना थके , विचलित हुए लक्ष्य पर ध्यान एकाग्र कर सकते हैं :-
1. आत्म-संयम ,
2. सकारात्मक दिशा में प्रेरित होना ,
3. संकल्प शक्ति ,
4. स्व-अनुशासन ,
5. विचारों तथा भावनाओं पर नियंत्रण ,
6. दृढ-निश्चय ,
7. एक बार में एक ही लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना ,
8. प्रलोभनों से बचना ,
9. खुद से वायदा (PROMISE ) करें , इसका दृढ़ता से पालन कार्य योजना के साथ करें ,
12. कार्य को करने के पीछे उसके लाभ , कारण जोड़ दें ,
13. लक्ष्य को पाने की समय सीमा निश्चित करें ,
14. जिस कार्य से डर लगे उसे करके जरूर देखें ; इससे आत्म-विश्वास बढ़ेगा और सफलता के प्रति भावना बढ़ेगी।
2. इच्छा-शक्ति के विकास के लिए
दृढ-संकल्प (DETERMINATION)का महत्व :
SELF CONFIDENCE / DEDICATION
किसी विशेष कार्य को करने का निश्चय ही संकल्प होता है।
संकल्प पक्का हो तो कार्य का विरोध करने का कोई विकल्प ही नहीं बचता है।
संकल्प पूरा तभी होगा जब भावनाएं हमारे वश में होंगी ।
दृढ इच्छा-शक्ति के साथ कार्य करने पर ही संकल्प पक्का होता है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं ; एक के बिना दूसरा अर्थहीन हो जाता है।
संकल्प को पूरा करने के लिए जोखिम तो उठानी ही होगी और जोखिम के साथ-साथ कठिन परिश्रम भी करना होगा।
किसी लक्ष्य को पाने में मेहनत से ज्यादा इच्छा-शक्ति की आवश्यकता होती है ; यही हमें लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ने की औऱ साहस के साथ मार्ग में आई बाधाओं को दूर करने में हमें आत्म-बल प्रदान करती है।
दृढ-संकल्प द्वारा हम कठिनाइयों , बाधाओं , प्रलोभनों का सामना कर सकते हैं।
बिना दृढ-संकल्प के दृढ इच्छा-शक्ति पर अडिग रहना संभव नहीं है। अगर हम जबरन कोशिस करेंगे तो आगे चलकर हम हताश व निराश होकर इच्छा-शक्ति ही खो देंगे।
अगर हम जीवन में कुछ विशेष परिवर्तन चाहते हैं औऱ आत्म-निर्भर होना चाहते हैं तो दृढ-संकल्प के साथ पुराने तरीके से कुछ अलग हटकर कुछ नया करना ही होगा।
" दृढ-संकल्प की सहायता से हम योजना पर कठोरतापूर्वक चलने का स्वयं से वायदा करते हैं औऱ उसे निभाने को वचनबद्ध होते हैं।
कोई कार्य तभी सफल होगा जब हम पूर्ण मनोयोग से उसे करने की ठान लेते हैं। किसी कार्य में उत्साह , उमंग के होने के लिए दृढ-संकल्प बहुत जरूरी है। "
जब हम पूरे मनोयोग से किसी कार्य को करने की ठान लेते हैं तो इससे हम पर कार्य का जुनून सवार हो जाता है ; हममें एक नई ऊर्जा का संचार होता है और हमारा स्वयं पर आत्म-विश्वास बढ़ता है।
हम जैसे-जैसे योजना पर अनुशाषित होकर आगे बढ़ेंगे ; दृढ-संकल्प के कारण हमारी सफलता हमें डर पर काबू करना सिखाती जाएगी।
एक कार्य में सफलता मिलने पर हम एक नई ऊर्जा ,आत्म-विश्वास के बल पर दूसरे कार्यों को करने की प्रेरणा प्राप्त करेंगे।
हमें एक समय में किसी एक संकल्प पर कार्य करना चाहिए। जब तक एक लक्ष्य पूर्ण ना हो जाये ,दूसरे लक्ष्य को ना चुनें अन्यथा आपकी सफलता का मार्ग बीच में ही रूक सकता है।
नए नए विकल्प चुनने से अच्छा है कि एक ही लक्ष्य पर दृढ-संकल्प के साथ लगे रहें ; जब तक कि कार्य सफल ना हो जाये।
विकल्प सफलता तोड़ता है ; विकल्प से बचने पर कार्य सिद्ध होता है।
संकल्प की शक्ति से हम कठिन से कठिन लक्ष्य , चुनौतियों का भी सामना निडरता के साथ कर सकते हैं।
अगर दृढ-संकल्प के साथ दृढ इच्छा-शक्ति भी प्रभावकारी होगी तो हम असफलता में भी अधिक मजबूती और लचीलेपन के साथ कार्य करने के लिए प्रेरित हो सकते हैं और असफलता को भी सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ निरंतर प्रयास द्वारा सफलता में परिवर्तित करने में सफल भी रहेंगे।
असफलता से कभी भी घबराना नहीं चाहिए , लेकिन सकारात्मक सोच के साथ असफलता के कारणों पर विचार करके उन्हें दूर करने के प्रयास करने चाहिए।
नई जानकारी के साथ स्वयं की कमियों को दूर करें और पुनः कार्य पर लग जाएँ।
अति आत्म-विश्वास में ना आएं और दृढ-संकल्प के साथ उस कार्य में स्वयं को पूर्णतः धैर्य के साथ लगा दें , सफलता निश्चित समय पर मिलेगी ही मिलेगी।
अतः दृढ-संकल्प के साथ सही दिशा में आगे बढ़ें , और आत्मविश्वास के साथ धैर्य पूर्वक कार्य में लगे रहें ; निश्चित समय पर बड़ी सफलता अवश्य मिलेगी।
3. इच्छा-शक्ति बढ़ाने के उपाय :
इच्छा-शक्ति प्रयास करने से ही बढ़ सकती है। ये अस्थाई होती है ; अतः हमें निरंतर सजग होकर प्रयास करने होंगे।
आत्म-नियंत्रण द्वारा इच्छा-शक्ति बढ़ाई जा सकती है।
कार्यान्वयन ( implementation ) द्वारा आत्म-नियंत्रण में सुधार आता है , इससे कम हुई इच्छा-शक्ति वाले भी आत्म-नियंत्रण द्वारा लक्ष्य पूरा कर सकते हैं।
समय से पहले एक योजना होने पर हम अपनी इच्छा-शक्ति को आकर्षित किये बिना निर्णय लेने में सक्षम हो सकते हैं।
सही प्रेरणा होने पर सही समय पर आत्म-नियंत्रण द्वारा इच्छा-शक्ति बढ़ाई जा सकती है।
बुरी लत या आदतों को छोड़ना ,बचत करने की आदत डालना ,खर्चों में मित्यव्ययिता लाना ,स्वाद पर नियंत्रण रखना ,स्वस्थ्य प्राप्ति के लिए नियमित व्यायाम आदि करने की आदत डालना ,प्रलोभनों से बचना आदि-आदि बिना दृढ इच्छा-शक्ति और आत्म-नियंत्रण के संभव ही नहीं है।
अतः निम्न तरीकों पर नियमित अभ्यास करें और दृढ निश्चय पर अडिग रहें तो इच्छा-शक्ति स्थाई और विकसित होकर हमें सकारात्मक परिणाम अवश्य देगी :-
1. अगर हमें प्रयासों से होने वाले लाभों की पहले से ही जानकारी हो तो हम कम इच्छा-शक्ति होने पर भी आत्म-प्रेरणा द्वारा आत्म-नियंत्रित होकर लक्ष्य पर अडिग रह सकते हैं।
स्पष्ट लक्ष्य , उसके लाभों की जानकारी , अभ्यास द्वारा हम इच्छा-शक्ति बढ़ा सकते हैं।
2. एक समय में एक ही लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करें ; इससे आपके विचार भटकेंगे नहीं और इच्छा-शक्ति मजबूत होगी।
ज्यादा लक्ष्य होने पर हम स्वयं को एक दिशा में आत्म-नियंत्रित नहीं रख पाएंगे , बेचैनी बढ़ेगी , चिंताएं बढ़ेंगी , जिसके फलस्वरूप इच्छा-शक्ति पर बुरा असर पढ़ेगा।
एक-एक करके लक्ष्य पर आगे बढ़ना बेहतर तरीका है।
3. एक बार अच्छी आदत बन जाने के बाद अपने व्यव्हार को बनाये रखने के लिए इच्छा-शक्ति को आकर्षित करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी।
हमारी स्वस्थ आदतें नियमित हो जाएँगी ,उन्हें निर्णय लेने की कोई आवश्यकता ही नहीं होगी।
4. हमें इच्छा-शक्ति के बजाय इच्छा ( WILL ) पर ध्यान देना चाहिए।
अनिच्छा वाले उबाऊ कार्य इच्छा-शक्ति को कमजोर करने का कार्य करते हैं।
जब हम हमारे पसंदीदा कार्यों को करते हैं तो हम स्वतः ही ऊर्जावान महसूस करते हैं। इस समय हम बिना दबाब के कार्य करतें हैं और ख़ुशी का भी अनुभव करते हैं। यही एक उदाहरण है कि पसंदीदा कार्य करने पर इच्छा-शक्ति बढ़ती है और कार्य के प्रति एक-विशेष जुड़ाब का अनुभव भी करते हैं और हम बिना थके उस कार्य को कर सकते हैं।
5. विश्वास से इच्छा-शक्ति को बल मिलता है।
विश्वास और व्यव्हार द्वारा हम इच्छा-शक्ति को बढाकर आत्म-नियंत्रित रह सकते हैं।
स्वयं पर , क्षमताओं पर विश्वास करने से इच्छा-शक्ति में वृध्दि होती है। ख़ुश रहो , ख़ुशी के वातावरण में रहो ; इससे आपका आत्म-बल और इच्छा शक्ति प्रबल होगी।
सकारात्मक दृष्टिकोण रखो ,लक्ष्य के प्रति सकारात्मक सोचो , सकारात्मक कार्य करो तथा साथ ही साथ आशावादी बनो ; इससे इच्छा-शक्ति अविश्वशनीय रूप से बढ़ेगी और आप कठिन से कठिन परिस्थिति में भी स्वयं को ऊर्जावान रखने में सक्षम होंगे।
6. इच्छा-शक्ति मानसिक सुढ़ृड़ता पर निर्भर करती है।
अगर इच्छा-शक्ति कम होगी तो हम आत्म-नियंत्रण खो सकते हैं।
अहंकार में कमी से इच्छा-शक्ति संतुलित होती है।
भावनाओं को विकसित करना चाहिए , जितनी सकारात्मक भावनाएं कार्य के प्रति होंगी ; उतनी ही इच्छा-शक्ति मजबूत होगी।
इच्छा-शक्ति पर हमारी भावनाओं का गहरा प्रभाव पड़ता है ; अगर भावनाएं सकारात्मक हैं तो इच्छा-शक्ति पर अडिग रहा जा सकता है।
विश्वास और दृष्टिकोण हमें कमी के प्रभावों से बचा सकती है।
प्रेरणा भी हमें कमी के प्रभावों में भी इच्छा-शक्ति को बढ़ाने में सहायक होती है।
7. इच्छा-शक्ति एक सीमित संसाधन नहीं है ,बल्कि एक भावना की तरह कम करती है।
जिस तरह हम ख़ुशी या क्रोध से बाहर नहीं होते , वैसे ही हमारे साथ क्या हो रहा है और हम कैसा अनुभव करते हैं ; इसके आधार पर इच्छा-शक्ति घटती और बढ़ती है।
8. जब भी कोई कठिन कार्य करना हो तो ; संवेदनाओं , भावनाओं और कार्यों का लक्ष्य एक ही होना चाहिए ; यह है " कार्य के प्रति समर्पित भाव से लग जाना और सीखकर , प्रयोग में लाकर कार्य को सफल बनाना। "
योजना बनाने , तनावों को कम करने , तर्कपूर्ण निर्णय शीघ्र लेने की आदत और क्षमता का विकास करें।
निराशाजनक स्थिति में स्वयं पर नियंत्रण आत्मविश्वास के बल पर रखो , विचलित हुए बिना ध्यान को कार्य पर केंद्रित करें ; इससे आपकी इच्छा-शक्ति बढ़ेगी और आप साहसपूर्ण तरीके से कठिन कार्य में भी सफलता प्राप्त करोगे।
मानसिक विकार सफलता में बाधक होते हैं । सकारात्मकता हममें से ज्यादातर व्यक्ति हो सकता है वे शारीरिक दृष्टिकोण से स्वस्थ हों; लेकिन ज्यादातर लोग मानसिक रूप से पूर्ण स्वस्थ नहीं रहते हैं। ज्यादातर में कोई ना कोई मानसिक विकार जरूर होता है। ये ही मानसिक अस्वास्थ्य हमारी सफलताओं को प्रभावित करने लग जाते हैं। मानसिक विकार मिटाने से ही सुख - समृद्धि के साथ - साथ जीवन की सफलता प्राप्त हो सकती है। क्रोध , घृणा , कपट - भावना , जलन का अनुभव होना , द्वेष - भावना , घमण्ड करना , अति - आत्मविश्वास में रहना , डरों के साथ जीना , नकारात्मक आचरण और दुराचरण की भावनाएँ रखना , छोटी - छोटी बातों से ही कुंठाएँ और हीन - भावनाएँ महसूस करना , अभिमानी होना आदि - आदि नकारात्मक प्रभाव मानसिक विकार ही होते हैं। यह सब प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हमारी सफलताओं में बाधा ही पहुँचाते हैं ; अतः इन्हें समझकर दूर करने पर ही हम चिंतामुक्त होकर खुशी के साथ स्थाई सफलता पा सकते हैं। ...
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