Monday, November 21, 2022

सकारात्मक सोच से ही सफलता मिलती है l सकारात्मकता से चिंता-मक्त रहना सीखो l सफलता का महा-मंत्र

 सकारात्मक सोच , सकारात्मक दृष्टिकोण

(Positive Thinking, Positive Attitude)
सकारात्मकता से शाँति

       "विषम परिस्थितियों में भी संयम और धैर्य बनाए रखना सकारात्मकता होती है।"

    जब हम सकारात्मक होते हैं तो कठिन से कठिन परिस्थिति के हल आत्म-विश्वास, धैर्य और शांति के साथ निकालने में सक्षम होते हैं।

    विपरीत परिस्थिति में भी धैर्य और संयम बना रह सकता है; अगर हम परिस्थितियों और घटनाओं को सकारात्मकता और सूझबूझ के साथ हल करने की भावना रखते हैं। अगर हम विपरीत परिस्थिति में धैर्य खो देंगे तो समस्या कम होने की जगह और बढ़ जाएगी और हमें परेशानियों का सामना ही करना होगा। अतः सकारात्मक रहने से ही हम खुश रह कर शाँति के साथ  प्रगत्ति कर सकते हैं।

सकारात्मकता तभी आती है; जब हम किसी चीज़, घटना, व्यक्ति में उनकी बुराई की जगह अच्छाई को ढूंढते हैं। सकारात्मकता तभी आती है; जब हम अच्छे विचार और भावनाएँ रख सकते हैं, हर स्थिति में अच्छा सोच सकते हैं।

हम धैर्य और संयम तभी रख सकते हैं; जब डर को नजरअंदाज करने में सक्षम बन जाते हैं तथा साथ ही साथ क्रोध पर नियंत्रण करने में भी सक्षम हों।

ये सब सामर्थ्य तभी प्राप्त हो सकते हैं; जब हम स्वयँ का और हमारे आस-पास जो कुछ भी है उनका विश्लेषण करने के प्रयत्न करने में सक्षम हों।

    अतः अच्छा महसूस करना, अच्छे विचार और भावनाएँ रखना तथा जीवन के उद्देश्यपूर्ण लक्ष्यों के साथ कार्य करना; सकारात्मक विचारों और सोचने-समझने के सकारात्मक दृष्टिकोण (नज़रिये) से ही संभव होता है।

आत्म-विश्वास रखते हुए उत्साह, साहस के साथ बिना डर, चिंता के आत्म-सम्मान और आत्म-विश्लेषण के साथ जीवन जीने के उद्देश्यों की भावना के साथ स्वयँ का विकास करना और दूसरों को भी सहयोग, सम्मान देना ही सकारात्मक सोच होती है।

" सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हुए जीवन, कार्यों में आई चुनौतियों का सामना करने के लिए समझदारी-पूर्ण विचार करना ही सकारात्मक सोच होती है।"

    जो व्यक्ति सकारात्मक सोच वाला होता है वह हर परिस्थिति में समता-भाव और संयम बनाए रखता है तथा कभी भी तनाव में नहीं आता है, कठिन से कठिन परिस्थिति में भी धैर्य के साथ बिना हार माने निरन्तर प्रयास करता जाता है; और अंत में लक्ष्य हांसिल कर ही लेता है।

सकारात्मक विचारों से हमें हिम्मत, और जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा प्राप्त होती है।


हम हर बात पर 2 प्रकार से विचार कर सकते हैं :-

पहला है सकारात्मक सोच के साथ; और दूसरा है नकारात्मक सोच के साथ।

इसे हम निम्न उदाहरणों से समझते है :-

1. माना कि आपके पास ख़ुद का घर नहीं है; जबकि आपके साथी के पास आलिशान घर है तो अगर हम सकारात्मक विचार के साथ सोचेंगे तो यही कि कोई नहीं मेरी अच्छी नौकरी है, परिवार का पालन-पोषण अच्छे से हो रहा है और मेरी बचत भी नियमित हो रही है; तो अगर अभी ख़ुद का घर नहीं है तो क्या हुआ; सही समय पर वह भी होगा और सोचेगा कि अभी पहले तरक्की में निवेश करना उचित होगा और जब लक्ष्य पूर्ण होंगे तब घर खरीदना तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। साथ ही वह सकारात्मकता के साथ बिना विचलित हुए अपने लक्ष्यों पर ही ध्यान एकाग्र करेगा और घर की चिंता में स्वयँ को कभी दुःखी नहीं करेगा

सकारात्मक सोच वाला व्यक्ति कभी भी दूसरों से जलता-भुनता नहीं है और दूसरों से प्रतिस्पर्धा में बिना-सोचे समझे जल्दबाजी वाले निर्णय लेने से बचता है

ऐसे लोग कभी भी दिखाबे में अपने लक्ष्यों के साथ गलत, निरर्थक निर्णय नहीं लेते हैं। जबकि नकारात्मक सोच वाले व्यक्ति शानो-शौकत, दूसरों को नीचा दिखने की मूर्खतापूर्ण मानसिकता के कारण ऐसे-ऐसे गलत निर्णय ले लेते हैं जो उनका जीवन बर्बाद भी कर सकते हैं।

2. इसी प्रकार कोई बड़ी परेशानी आने पर हम इस प्रकार से सकारात्मक सोच सकते हैं :-

जब में सही दिशा में योजनानुसार कार्य कर रहा था; तब भी परेशानी आई है तो जरूर मेरी योजना या मुझ में कोई ना कोई ज्ञान-कौशल की कमी है। अगर में इन्हें जानकर दूर कर लूँगा और अधिक कुशलता, जागरूकता के साथ प्रयास करूँगा तो मेरे अभी के प्रयास और प्राप्त प्रगत्ति मिलकर मुझे बड़ी सफ़लता जरूर दिलाएंगे।

व्यक्ति यह सोचते हुए आशावादी है और सकारात्मकता के साथ मात्र स्वयँ और स्वयँ की योजनाओं , कौशल को सुधारने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है; यही तो होती है सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ सकारात्मक सोच

इसमें व्यक्ति बिलकुल भी परिस्थितियों और लोगों या कार्यों की दशाओं या समाज और देश को दोष नहीं दे रहा है और स्वयँ अपनी असफ़लताओं की जिम्मेदारी ले रहा है। साथ ही सोचने-समझने में निडरता के भी भाव हैं।

ऐसा व्यक्ति कभी भी जीवन में असफ़ल नहीं हो सकता है; जो छोटी-छोटी परेशानियों में भी बिना आलस और देरी किये कमियाँ खोजकर स्वयँ को सही दिशा में परिवर्तन के लिए प्रयास करता है।

 

अतः, सारांश रूप में निम्न होती है सकारात्मक सोच :-

            " सकारात्मक दृष्टिकोण (सोचने-समझने के सकारात्मक तरीकों) के साथ जीवन में आई चुनौतियों, कठिनाइयों का सामना करना, एक सफ़लता पर ही स्थिर ना हो जाना; और दुगुने उत्साह के साथ अगली बड़ी सफ़लता के लिए बिना रुके प्रयास करने की सोच रखना ही सकारात्मक-सोच होती है।

 

सकारात्मक दृष्टिकोण के लिए ये सब गुण और कार्य करने या सोचने-समझने के तरीके शामिल होने आवश्यक हैं :-

            आत्म-सम्मान, आत्म-विश्लेषण की प्रवृत्ति, उच्च-विचार, बड़े-बड़े लक्ष्यों का दृढ़-संकल्प, उत्तरदायित्व स्वीकार करने की क्षमता, आलोचनाओं से बिना घबराये सकारात्मक विचार करना, आत्म-विश्वास, सकारात्मक-सोच, उत्साह और साहस, सतत प्रयास करने की प्रवृत्ति (कर्मण्यता), आशावादी सोच, धैर्य, मन पर नियंत्रण करने की प्रवृत्ति, एकाग्रता, चुनौतियों को स्वीकार करने का साहस (हिम्मत), दृढ़-इच्छाशक्ति, हर स्थिति में खुश रहने की आदत, समयबद्धता।


1. सकारात्मक दृष्टिकोण (सकारात्मक नज़रिया) :
सकारात्मक नज़रिये के साथ खुश रहना सीखो 

    मनुष्य के जीवन पर उसके विचारों, सोचने-समझने के तरीकों (दृष्टिकोण) का काफ़ी प्रभाव पड़ता है।

जब हम अपने तथा दूसरों के बारे में अच्छा सोचने लगते हैं तो; दूसरे लोग भी हमारे बारे में अच्छा सोचने लगते हैं । यदि हम दूसरे से घृणा करेंगे तो दूसरे भी हमसे घृणा भाव  ही रखने लगते हैं।

हमें आसपास के लोगों, घटनाओं, तथा स्वयं के बारे में धैर्य के साथ विचार करना चाहिए और सही कारणों की जाँच करते हुए सकारात्मक समाधान के बारे में स्वयँ आत्म-चिंतन करना चाहिए। इस प्रकार से सोचने समझने को ही सकारात्मक नज़रिये के साथ सकारात्मक सोच कह सकते हैं।

सकारात्मक दृश्टिकोण में हम तुलनात्मक स्थिति का अवलोकन करके सकारात्मक विचारों पर चलने का दृढ़-संकल्प करते हुए आत्म-विश्वास के साथ सही दिशा में लगातार प्रयास करते हैं और सही समय की प्रतीक्षा धैर्य और साहस बनाए रख़ते हुए करते हैं।

2. सकारात्मक सोच के लाभ :

1. जीवन में सकारात्मक सोच के द्वारा जीवन को खुशहाल और उन्नतिशील बनाया जा सकता है।
    
    विपरीत परिस्थिति में भी धैर्य और संयम बना रह सकता है; अगर हम परिस्थितियों और घटनाओं को सकारात्मकता और सूझबूझ के साथ हल करने की भावना रखते हैं।

    अगर हम विपरीत परिस्थिति में धैर्य खो देंगे तो समस्या कम होने की जगह और बढ़ जाएगी और हमें परेशानियों का सामना ही करना होगा।

अतः सकारात्मक रहने से ही हम खुश रह कर शाँति के साथ  प्रगत्ति कर सकते हैं।

    जितना अच्छा और शुभ सोचेंगे हम चिंताओं, क्रोध, आत्म-ग्लानि, जलन-द्वेष आदि से बचे रहेंगे। इससे हम तनाव मुक्त रहते है तथा बैचेनी, डिप्रेशन (Dipression) कम होगा। इसके प्रभावस्वरूप नींद अच्छी आएगी।

    इससे ब्लड प्रेसर (Blood Pressure) संतुलित होगा। आशावादी लोगों की तुलना में निराशावादी लोगों में High Blood Pressure का रोग ज्यादा होता है।

2. सकारात्मक सोच और सूझ-बूझ के साथ हम मुश्किल परिस्थितियों और मुश्किल लोगों का सामना धैर्य पूर्वक कर सकते हैं।

इसके कारण आत्म-विश्वास बढ़ता हैं तथा दर्द सहने की क्षमता, सहन-शक्ति बढ़ती हैं।

3. सकारात्मक सोच के साथ संबंधों को बेहत्तर बना सकते हैं

4. सकारात्मक सोच में हम हर कार्यों, उनके परिणामों की जाँच-पड़ताल करके ही निर्णय लेते है l

अतः; व्यक्ति भृमित नहीं होता है तथा सही निर्णय लिए जा सकते हैं।


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