सकारात्मक धारणाओं के साथ संकल्प की शक्ति से सफ़लता अर्जित की जा सकती हैl
जीवन में शान्ति सकारात्मक धारणाओं से ही आती है।
"मन-मस्तिष्क में किसी एक निश्चित
विचार पर पूर्णतः विश्वास करने (मानने, धारण करने) को ही धारणा कहते हैं।"
ये किसी व्यक्ति, वस्तु, घटनाओं, व्यक्तित्व,
या किसी भी कार्य के बारे में हमारे दृढ़-विचार
हो सकते हैं। हम इसी प्रकार कुछ धारणाएँ धर्मों, सम्प्रदायों या व्यक्तियों के समूहों
पर भी बना लेते हैं।
धारणा के
समानार्थक शब्दों; जैसे अवधारणा, संकल्पना आदि को भी प्रयोग में ला सकते हैं।
जब कोई विचार हमारी भावनाओं और कार्यों
में समाहित होकर नियम बन जाता है; तो इसे मान्यताओं
की संज्ञा दी जाती है। कई विशेष मान्यताएँ
(Beliefs) प्रचलित होकर समूह विशेष, समुदाय विशेष द्वारा भी मान्य होती हैं और
उनके जीवन का अभिन्न अंग भी बन जाती हैं।
अगर हमारी धारणाएँ सकारात्मक होंगी तो
हमें सकारात्मक परिणाम प्राप्त होंगे; अन्यथा इनके बुरे-प्रभाव भी पड़ सकते हैं।
गलत
धारणाएँ बदलने पर ही समाधान निकल सकते हैं। लोगों को स्वयँ के कार्यों की सफ़लता
की इच्छा के अनुरूप पुरानी, असफ़ल लोगों द्वारा रचित गलत धारणाओं को छोड़कर; स्वयँ के
सफ़लता के रास्ते स्व-विवेक द्वारा स्वयँ तैयार करने चाहिए; दूसरों से कुछ अलग हटकर
करना चाहिए; तभी जीवन में बड़ी स्थाई सफलताएँ अर्जित की जा सकती हैं।
धारणा ऐसी सोच
या विचार होते हैं; जिन्हें हम बिना किसी प्रमाण के सच्चे और व्यावहारिक मान लेते हैं।
इन धारणाओं पर हमें पूरा विश्वास होता है, उन्हें हम जीवन में भी ढ़ाल लेते हैं।
कई बार चिंतन-मनन करने पर कई पुरानी
धारणाएँ ग़लत भी साबित हो जाती हैं।
कई बार हम किसी व्यक्ति, घटनाओं, सफ़लताओं के बारे में भी अच्छी या बुरी धारणाएँ बना
लेते हैं।
जरूरी नहीं कि धारणाएँ सबके लिए समान रूप से मान्य हों।
हो
सकता है कि एक धारणा हमारे लिए सही हो; लेकिन किसी अन्य व्यक्ति के लिए ग़लत और समस्याकारी
प्रभाब डाल सकती है या दूसरे आपसे अलग विचार भी रख सकते हैं।
इसे हम निम्न उदाहरण से समझ सकते हैं; जैसे कुछ लोगों को नौकरी करने में तरक्की, स्थायित्व या सफ़लता की गारन्टी व्यापार की तुलना में अधिक लगती है; जबकि कई लोगों की धारणा इसके विपरीत भी होती है और उन्हें व्यापार करने में ज्यादा सफ़लता, समृद्दि की सम्भावनाएँ अधिक दिखाई देती हैं। अतः एक की धारणा के अनुसार नौकरी अच्छा विकल्प है; जबकि दूसरे के लिए व्यापार करना ज़्यादा लाभकारी हो सकता है।
ये सब अलग-अलग व्यक्तियों की कार्य क्षमताओं, समझ,
सोचने के तरीकों, कार्य-कुशल पर निर्भर करता है। अतः अलग-अलग जगह, व्यक्तियों की धारणाएँ
अलग-अलग हो सकती हैं।
सफ़लता प्राप्त करने के लिए सकारात्मक सोच के साथ-साथ सकारात्मक व्यव्हार भी जरूरी है। सकारात्मक धारणाओं के साथ संकल्प-शक्ति से सफ़लता अर्जित की जा सकती हैं। सफ़लता प्राप्त करने में स्वयँ का आत्म-विश्वास, आत्म-बल काफ़ी बड़ी भूमिका निभाता है; अतः स्वयँ के बारे में ग़लत धारणाएँ और आत्म-हीनता के विचार कभी ना आने दें।
हमारे जीवन में धारणाओं पर ही हमारी सफ़लता और व्यक्तित्व निर्भर करता है। हम जैसा सोचते हैं; वैसे ही बन जाते हैं।
हमारे कार्यों की सफ़लताओं पर हमारी मानसिकता
और धारणाओं का गहरा प्रभाव पड़ता है। अतः धारणाओं पर विश्वास, आस्था बनाने से पहले इनकी
व्यवहारिकता, लाभ-हानि पर विचार जरूर कर लेना चाहिए।
जब हम किसी व्यक्ति के बारे में जैसे सकारात्मक
या नकारात्मक विचार रखते है (या धारणाएँ बना लेते हैं।); उसी अनुरूप हमारा व्यव्हार
उसके लिए होता है; तो वह व्यक्ति भी प्रतिक्रिया स्वरुप हमें उसी अनुरूप व्यव्हार और
परिणाम देगा।
कई बार हम किसी अच्छे व्यक्ति के बारे
में ग़लत धारणा बना लेते हैं; लेकिन जब देर से भूल का पता चलता है तो हमें अफ़सोस के
साथ-साथ कई हानि भी उठानी पड़ सकती है। अतः कभी भी धारणाएँ बनाने में जल्दबाजी ना करो
और सोचे समझे निर्णय लो।
कई बार हम स्वयँ के लिए भी डर या असफ़लता वाली धारणाएँ बना लेते है (जैसे- मैं यह कार्य कर ही नहीं सकता हूँ, मेरा पढ़ाई में मन लग ही नहीं सकता है, मैं व्यापार में सफ़ल नहीं हो सकता हूँ, आदि-आदि)।
इस प्रकार
की नकारात्मक धारणाएँ हमारी मानसिकता को बदल कर हमें डर की भावना, आत्म-विश्वास में
कमी, आत्म-हीनता और चिंता-बेचैनी की और ले जाती है और हमें असफ़लता का सामना करना पड़
सकता है।
इसी प्रकार व्यापार में ग्राहक के प्रति
सकारात्मक या नकारात्मक धारणाएँ तथा हमारी मानसिकताएँ ही व्यापार को बढ़ा या गिरा सकती
हैं। अतः धारणाओं पर विशेष ध्यान दें और सकारात्मक विचारों पर बल दें; तभी हम बड़ी-बड़ी
सफ़लता प्राप्त करेंगे।
हमेशा कर्म के
सिद्धान्त पर आस्था के साथ कार्य करें। स्वयँ के और कार्यों की सफ़लता के प्रति सकारात्मक
धारणाएँ रखें।
अपने कार्य के विकास पर ध्यान केंद्रित करें। अपने कार्यों मैं अधिक कल्पनाशील और रचनात्मक बनें।
अपने कार्यों को जिम्मेदारी और समर्पण की भावना के साथ करें। इस प्रकार आपकी क्षमताएँ और कार्यों की प्रगत्ति में सुधार होगा।
छोटी-छोटी दिक्कतों से ना घबराएँ और कार्य
पर ध्यान केंद्रित करें। कभी भी परिणामों की चिंता ना करें, वर्तमान कार्यों पर ध्यान
दें और लगातार उद्देश्यपूर्ण कार्य करते रहें; तभी निश्चित समय पर लक्ष्य प्राप्त होंगे।
1. धारणा :
इन्हें हम विचारों पर अँधा-विश्वास भी कह सकते हैं; जिसका मतलब होता है कि दूसरे मानें या ना मानें लेकिन हमें हमारी धारणाओं पर पूर्ण-विश्वास होता है; जिन से हमारे कार्य प्रभावित होते हैं।
धारणाओं में काफ़ी शक्ति होती है l
इसे हम वोल्फ मेसिंग के जीवन से समझ सकते हैं (आप WOLF MESSING के बारे में गूगल सर्च या
2. संकल्प और विश्वास की शक्ति ही धारणा बन जाती है :
कृतज्ञता के साथ स्वयँ पर विश्वास करो।
संकल्प शक्ति ही हमें कठिन परिस्थितियों में भी मन की नियंत्रित करके संघर्ष करने का साहस देती है।
जब मन जीत के प्रति विश्वास में होता है और हम दृढ-संकल्प कर लें तो सफ़लता निश्चित समय पर जरूर मिलती हैl
दृढ-संकल्प के साथ किये गए कार्य ही लाभप्रद होते हैं।
संकल्प शक्ति से ही विश्वास जाग्रत होते हैं; जो शरीर को क्षमतावान, ऊर्जावान बना देता है तथा मन भी एकाग्रचित्त होकर सही दिशा में कार्य करने लग जाता है; जिसका परिणाम होता है-सिद्धि के साथ-साथ बड़ी सफ़लता।
विश्वास की भावनाओं के कारणवश आत्महीनता समाप्त हो जाती है, व्यक्तित्व में आकस्मिक महत्वपूर्ण बदलाव हो जाते हैं।
3.
ध्यान : ध्यान द्वारा मन को एकाग्रः किया जा सकता है।
ज्यादातर बीमारी मानसिक कारणों से ही होती हैं; शारीरिक कारण कम ही होते हैं। मानसिक कारण हमारी सोच, हमारे जीवन के प्रति दृष्टिकोण, स्वयँ पर विश्वास, डर, चिंता करने के ही परिणाम होते हैं।
हमारी बीमारी और असफलताओं के 50 % से ज्यादा कारण मानसिक ही होते हैं।
ध्यान से चेतन मन एकाग्रः होता है। चेतन मन ही स्वयँ पर संदेह, डर, तुलना करके दुखी होने की भावना जाग्रत करता है। अतः मन का नियन्त्रण आवश्यक है।
मन पर नियन्त्रण ध्यान विधि से आसानी से किया जा सकता है।
4. विचार और भावनाओं के प्रभाव :
मन के एकाग्रः होने पर ये सब कार्य अवचेतन-मन द्वारा पूर्ण होते हैं; तथा एक बार कार्य पूर्ण होने पर यही विचार, विश्वास धारणा में परिवर्तित हो जाते हैं।
धैर्य और सन्तुष्टि के भाव हमारी संकल्प-शक्ति को बढ़ाते हैं। इस अवस्था में हम अच्छा होने की कामना और प्रतिज्ञा कर सकते हैं; हम डर कर भागते नहीं हैं।
इससे चिंता रहित जीवन जीने की कामना बढ़ जाती है; हमारे आत्म-विश्वास, धारणाओं को बल मिलता है।
चाहे हम ऐसा करने में सक्षम ही क्यों ना हों फिर भी इन्हें ना करें तथा कोई गलत धारणा ना बनाएँ; तभी हम सकारात्मक जीवन शाँति के साथ जी सकते हैं।
5. अन्त में :
हाथ-पसारना, भीख माँगना बन्द करें।
किस्मत के पीछे ना पड़ो; बल्कि दृढ-संकल्प और मेहनत के बल पर अपनी अच्छी और सफ़लतम किस्मत का निर्माण स्वयँ करो।
स्वयँ में
उमंग, उत्साह होना चाहिए तभी जीत मिलती है।
अगर समर्पण भाव से सही दिशा में सुविचारों के साथ मेहनत करेंगे तो ब्रह्माण्ड की शक्तियाँ भी हमारा साथ देती हैं, हम सफ़लतम बन जाते हैं।
विचार ही वस्तुएँ बनती हैं; अतः जैसे विचार और भावनाएँ होंगी वैसे ही परिणाम हमें प्राप्त होंगे।
No comments:
Post a Comment