आत्म-संतोष, समताभाव के साथ सकारात्मक-सोच से ख़ुशी मिलना संभव है।
(सुखी जीवन के रहस्य) सुखी जीवन की खुशियाँ
" सोचने-समझने के तरीके और मानसिकता समताभावी बनाओ; तभी आप खुश रह सकते हैं। "
आज मैं आपसे ऐसे तथ्यों के वारे में चर्चा करूँगा; जिस पर चलने से आप आज-कल की भागदौड़, चारों ओर अशान्त-दुखभरी परिस्थितियों में भी स्वयं को प्रगत्तिशील बनाते हुए खुश रहने में कामयाब हो सकते हो।
क्या कभी आपने स्वयं को शांत-भाव से हर तरफ से अकेला करके स्वयं को, तरह-तरह के मानवों की प्रवृत्ति, उनकी सोच, सभी के अलग-अलग तरीकों से महसूस करने के तरीकों, उनके कार्य करने के तरीकों को समझने की कोशिस की है।
अगर नहीं की है तो इसे समय-समय पर करने की कोशिस करें; क्योंकि आपकी हर मानसिक परेशानी, हर प्रकार के दुःख के कारणों के उत्तर आपको जरूर प्राप्त होंगे।
घर-परिवार के सदस्यों, समाज को, हमारे आदर्श-लोगों के मनोभावों, उनके तौर-तरीकों तथा उनके रहन-सहन तथा उनके सुख-दुःख मानाने के तरीकों को गहराई से जानने की कोशिस करें ओर हर तथ्यों पर गंभीरता से विचार करें।
अगर इन सब बातों पर विचार करेंगे तो आप पाएंगे कि कुछ लोग कुरूप, अपाहिज, अनाथ हैं तथा कई अभावों-दिक्कतों भरी जिंदगी जी रहे हैं; लेकिन उन्होंने सफलता, तरक्की की आशा नहीं छोड़ी है। ऐसे लोग ही एक दिन मेहनत, लगन के बल पर महान बनते हैं ओर दुनियाँ में एक नई मिशाल बनकर कई लोगों के आदर्श बनते हैं।
ये लोग अपना दायरा स्वयं के मन, उद्देश्यों और लक्ष्यों के अनुसार ही रखते हैं। ये ना तो डर को गले लगाकर अपना आत्म-सम्मान बेचते हैं, ना ही किसी पर निर्भर रहते हैं। सबसे बड़ी विशेषता इनमें व्यावहारिक महत्वाकांक्षा और आत्म-संतोष की होती है। ये जल्दबाजी या हताशा में कभी भी बड़े लक्ष्य में बिना सोचे-समझे नहीं फंसते हैं। ये हमेशा अपनी सिमित पूंजी, सिमित कौशल के बल पर कार्य शुरू करके उसे धीरे-धीरे मेहनत,लगन के बल पर बढ़ाते जाते हैं और एक दिन बड़े लक्ष्य को भी हासिल कर ही लेते हैं। ये दुनियाँ को दिखने के चक्कर में अपनी मेहनत की कमाई को बर्बाद ना करके पैसे से पैसा बनाते जाते हैं।
ऐसे कर्मठ लोग कभी भी किसी शुभ-दिन की प्रतीक्षा में हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठे रहते हैं। इनके पास जो भी उपलब्ध है या जो भी स्वयं के ज्ञान, कौशल, अनुभव के आधार पर कर सकते हैं उन पर योजना बनाकर तुरन्त छोटी-छोटी शुरूआत कर लेते हैं तथा हर परिस्थिति में खुश रहते हुए लगातार कोशिस पर कोशिस करते जाते हैं और एक के बाद एक छोटी-छोटी सफलताएँ पाते हुए सफलता के शिखर तक पहुँच ही जाते हैं।
ये कभी भी अंतिम परिणामों की चिंता, डर नहीं पालते हैं
तथा छोटी-छोटी सफलता में भी खुश रहते हुए आगे बढ़ते रहते हैं।
हाँ ! इनके साथ तो बड़ी-बड़ी दिक्कतें आती रहती हैं; लेकिन
ये निडरता के साथ शीघ्र कारणों पर विचार करके, शीघ्र समाधानों के पीछे पड़ जाते हैं
तथा लगातर कार्य, लगन के बल पर परेशानियों को भी सफलता का एक अवसर बना ही लेते हैं।
इसके विपरीत हमें चारों ओर ज्यादातर ऐसे लोग मिलेंगे; जिनकी
सफलता पाने की मनमानी भूख कभी शाँत ही नहीं होती है,ये लोग सोचते तो काफी कुछ हैं लेकिन
करने के नाम पर तरह-तरह की बहानेबाजी करते फिरते हैं; हमेशा या तो सारा दोष परिस्थितियों,
घर-परिवार की दिक्कतों पर डाल देते हैं। ये लोग अति-महत्वकांक्षी होते हैं और प्रदर्शन
करने के उत्सुक; ऐसे लोग दूसरों को दिखाने या दूसरों से ऊपर दीखने की होड़ में ही अपनी
शान समझते हैं।
ये मात्र इसी चिन्ता में कुढ़ते, कुंठित या दुखी होते रहते
हैं कि कोई दूसरा इनसे ज्यादा तरक्की कैसे पा रहा है; क्यों दूसरों की इज्जत उनसे ज्यादा
है।
ऐसे असन्तोषी और अति-महत्वकांक्षी लोग कभी भी अपनी सफलताओं
को पाने के बाद भी सुख या संतोष का अनुभव नहीं कर पाते हैं; मात्र दुखी होते रहते हैं
कि अभी दूसरों से आगे क्यों नहीं निकले। इसी चक्कर में गलत और सुगम मार्ग अपनाकर भी
तरक्की करने की सोचते हैं और अपना सुख-चैन
खो लेते हैं। इनमें उतावलापन होता है और धैर्य की कमी। ऐसे लोग जलन-भावनाओं वाले होते
हैं। ये कभी भी ये नहीं सोचते की अगर साथ वाला आगे तरक्की कर रहा है तो उसकी ख़ुशी में
खश होकर सहयोग करें, उनसे जानकारी लें और स्वयं को तरक्की के सही मार्ग पर ले जाएँ।
ऐसे लोग अगर छोटी-छोटी सफलताएं हांसिल भी कर लेंगे तब भी उनकी कोई इज्जत नहीं करेगा।
ऐसे लोग अनैतिक कार्यों से धन इकठ्ठा करने की योजनाएँ बनाकर
जल्दी से जल्दी दिखावा करने की चेष्ठाएं करते हैं तो जब अनैतिक कार्यों से धन संचय
होगा तो लोगों का डर, कानून का डर हर दम सताता रहता है और नींद-चैन भी गायब हो जाती
है।
क्या आप ऐसे लोगों के जीवन या इनकी अनैतिक तरीकों से अर्जित
समृद्दि को सुखदायी या खुशहाल जीना कह सकते हो ?
नहीं !
इनसे तो कर्मठ लोगों का जीवन-दर्शन लाखों गुणा सर्वश्रेस्ठ
है; जो कि मेहनत के बल पर लगातार प्रयास करके हक के साथ जी रहे हैं; और सभी के साथ
निष्कपट भाव से स्नेह भरे वातावरण में दूसरों को भी आगे बढ़ने में सहयोग कर रहे हैं।
जो भी इन्हें मेहनत के बल पर मिला; उसे सुख पूर्वक ख़ुशी के साथ मिल-जुलकर उपभोग करते
हुए तरक्की की आशा के साथ आगे बढ़ रहे हैं।
सबसे अच्छी समृद्दि वही है; जो नैतिक कार्य करते हुए खुद
की ख़ुशी, इज्जत और मन-सम्मान को बरकरार रखते हुए प्राप्त की जाए।
यह तभी संभव होगा; जब हम स्वयं को समझें, स्वयं को सच्चे
मन से स्वीकार करें, अपने में अच्छे-आचरण और आदतों का विकास करें।
साथ ही आत्म-संतोष रखें। इच्छाएँ रखना और महत्वाकांक्षी
होना कोई गलत नहीं होता है; लेकिन हर बात की कुछ सीमाएँ होती हैं; उनके हिसाब से ही
सीढ़ी-दर-सीढ़ी चढ़ना आना चाहिए। हमेशा बड़ा सोचो, लक्ष्य भी बड़े बनाओ लेकिन जल्दबाजी और
हताशा में लंबी छलांग एक साथ मारने की ना सोचो। छोटे से शुरूआत करो, धीरे-धीरे अपने
ज्ञान-कौशल को बढ़ाते जाओ। जो भी लक्ष्य हैं उन्हें छोटे-छोटे हिस्सों में बांटकर एक-एक
करके पूर्ण करें। इस प्रकार हम खश भी रहेंगे, कार्यों को सुगमता के साथ क्रम से पूर्ण
करने में सक्षम भी होंगे। धीरे-धीरे आगे बढ़ने से हमें नए-नए अनुभव भी प्राप्त होंगे
जो हमारे लक्ष्यों के लिए मार्गदर्शक का कार्य करेंगे। अगर हम सकारात्मक-भावनाओं के
साथ दूसरों की ख़ुशी में शामिल होंगे तो धीरे-धीरे हमारा सामाजिक दायरा भी सहयोगात्मक
होगा, जो हमारी सफलता, ख़ुशी में लाभकारी होगा। यही तो हमारा जीवन का मुख्य उद्देश्य
है।
हमेशा बड़ा, उत्कृष्ठ सोचें, कठोर परिश्रम के बल पर समृद्दि
अर्जित करें। स्वयं के प्रति और कार्यों के प्रति अनुशाषित रहें तथा कभी भी अनैतिक
कार्य ना करें। कई बार हम शुरूआती लोभवश कई अनैतिक और मानवताहीन कार्य कर बैठते हैं;
लेकिन बाद में जीवन भर स्वयं से ही घृणा करने लग जाते हैं या अनैतिक कार्यों के चंगुल
में इतना फंस जाते हैं की जीवन ही बर्बाद हो सकता है। अतः चाहे कम में संतोष करो लेकिन
गलत कार्यों से बचो; तभी आप ख़ुशी के साथ चैन की नींद ले पाओगी तथा समाज, घर-परिवार
और कार्य-स्थल पर स्वाभिमान और इज्जत ले पाओगे।
इन सब बातों से स्पष्ट है कि सकारात्मक कार्यों से प्राप्त
समृद्दि ही हमें स्थाई सफलता के साथ-साथ जीवन की वास्तविक खशी, समाज, परिवार, देश-विदेश
में सम्मानजनक आदर दिला सकती है। ऐसे समृद्धशाली लोगों को ही हम महान कह सकते हैं।
अतः अगर जीवन में खशी के साथ-साथ समृद्दि चाहिए तो जीवन
में आत्म-संतुष्टि, ईमानदारी, सहयोग की भावना, ईमानदारी और करुणा का विकास करें। जो
भी सोचें बड़ा और सकारात्मक और वास्तविक सोचें। ख्बाब देखें लेकिन वर्तमान में जीना
सीखें।
बड़ा करें लेकिन धैर्य के साथ छोटी-छोटी सफलताएं अर्जित करते हुए समृद्दि के शिखर तक पहुंचें।
1. कुछ विशेष बातें; जो आपके लिए जरूरी हैं :
अच्छे व्यक्तित्व, व्यव्हार से सफलतम जीवन संभव है।
1. वर्तमान में जिएँ, जो भी सोचें व्यावहारिक होना चाहिए :
भविष्य के लिए लक्ष्य निर्धारित करना, योजनाएँ बनाना या
विचार करना कभी बुरा नहीं होता है। विचार करना भी चाहिए; लेकिन फिजूल के आने वाले डरों
के बारे में कल्पनाएँ कर-कर के डरना या चिन्ता करना आपकी बैचेनी ही बढ़ाएगा तथा हो सकता
है की आप इतना आत्म-विश्वास खो दो की कार्य शुरू भी ना कर पाओ। अतः वर्तमान में रहकर
कार्य करो और ना तो अतीत की भूलों या सफलताओं पर अफ़सोस करो , ना ही अभी से भविष्य के
बारे में बुरी, डरी-डरी कल्पनाएँ करने में समय, स्वास्थ्य नष्ट करो।
ज्यादातर हम अच्छी-अच्छी बातों, घटनाओ, लाभों पर ध्यान
ना देकर किसी एक अतीत की भूल या हानि को जिंदगी भर याद कर-कर के पछताते, अफसोस जताते
और दुखी होते रहते हैं। इससे हमारी खुशियाँ गायब हो जाती हैं, हम हर क्षण उदास और तनाब
में रहने के आदी हो जाते हैं। इनके कारण जीवन निराश और अर्थहीन लगने लग जाता है।
हमें इसे बदलना होगा, तभी हम ख़ुशी के साथ प्रगत्ति के पथ
पर आगे बढ़ सकते हैं। हमें ध्यान रहना चाहिए कि जो हो गया वह ना तो बदला जा सकता है
और ना ही वह पुनः लोट कर आ सकता है; अतः हमारा चिंता करना मूर्खता ही है।
वर्तमान में रहकर सकारात्मक सोच और जीत की आशा के साथ कार्य
करने से हम अतीत की भूलों का अफ़सोस नहीं करते हैं; साथ ही भविष्य के काल्पनिक डरों
से भी बचे रहते हैं। अतः तनवमुक्त रहना है तो वर्तमान में रह कर सोचें और कार्य करें।
जब चिंता रहित होकर निर्णय लेकर वर्तमान लक्ष्यों पर कार्य
करेंगे तो भविष्य स्वतः ही अच्छा होता चला जाएगा। अतः भूत और भविष्य को आधार बनाकर
निर्णय लेने से अच्छा है कि वर्तमान को आधार बनाकर सर्वोत्तम निर्णय लें तथा वर्तमान
पल का सदुपयोग चिंतन-मनन और सर्वोत्तम कार्यों को करने में करें। कभी भी अतीत या भविष्य
की चिंता या दुःख में समय बर्बाद ना करें।“
जीवन को ख़ुशी और समृद्दि के साथ जीने के लिए स्वस्थ जीवन
जीना आना चाहिए। स्वस्थ और तनाव-रहित जीवन के लिए हमें वर्तमान, अतीत और भविष्य के
बीच संतुलन बनाकर रखना होगा।
हमें जहाँ तक संभव हो वर्तमान में रहते हुए भविष्य की योजनाओं
पर लक्ष्य बनाते हुए कार्य करने चाहिए; लेकिन अभी से इस बात की चिंता ना करें कि हमारे
प्रयास सफल होंगे कि नहीं। इसी प्रकार अतीत की अच्छी और बुरी दोनों प्रकार की बातों
से सबक लेकर वर्तमान में भूलों की पुनरावृत्ति ना हो इस पर कार्य करना चाहिए, साथ ही
अतीत के अनुभवों को वर्तमान कार्यों की प्रगत्ति में उपयोग करना चाहिए; लेकिन अतीत
में जो नहीं कर पाए उन पर पछतावा या दुःख नहीं मानना चाहिए।
2. टालमटोल करने की गलत लत से बचें :
जब तक आप स्वयँ के अंतर्मन की आवाज को अनदेखा करोगे तथा
जीवन के वास्तविक उद्देश्यों से भागते रहोगे; तब तक आप अभावों की जिंदगी, मनहूस जिंदगी
से बाहर निकल ही नहीं सकते हो।
अतः; उठो, स्वयँ के अंतर्मन की आवाज सुनकर अपने उद्देश्य
निश्चित करें, लक्ष्य निर्धारित करके शीघ्र कार्य आरम्भ करें।
जब तक काम को कल पर टालते रहोगे या शुभ समय का इंतज़ार करते
रहोगे तब तक आप ना तो आत्म-सुख पा सकते हो और ना ही तरक्की कर सकते हो। जितना काम को
टालोगे उतनी गुणा सफलता के सु-अवसर आपसे दूर होते चले जाएँगे।
चाहे शुरूआत छोटी करो; लेकिन जो भी करना है आज और अभी से
शुरूआत करो; तभी आप धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए जीवन के वास्तविक लक्ष्य हांसिल करने में
सक्षम बनेंगे।
जो भी सोचा या योजना बनाई है; उस पर तुरन्त कार्यवाही शुरू कर दें। यही एक मार्ग है आलस्य को ख़त्म करने का।
ज्यादातर लोग बस सोचते और कल्पनाओं में ही डूबे रहते हैं; लेकिन कार्य की शुरूआत ही करने से डरते हैं।
केवल विचारों में ही समय नष्ट करने वाले व्यक्ति कभी भी सर्वश्रेठ नहीं हो सकते हैं। अतः; अगर सफलतम बनना है; तो बड़ा सोचो और शीघ्र निश्चित उद्देश्यों के साथ निश्चित लक्ष्यों पर कार्य की शुरूआत कर दो।"
ज्यादातर लोगों की एक ही प्रवृत्ति होती है कि वे ज्यादातर बिना-सोचे समझे कई कार्यों को टालते रहते हैं; जिसके कारण कभी भी मनचाही सफलता सही समय पर हांसिल ही नहीं कर पाते हैं या कभी-कभी इसी कारण से पास आए सफल अवसर हाथ से चले जाते हैं।
कई बार आने वाले दिनों में परिस्थितियाँ ही ऐसी बन जाती हैं कि पिछड़े हुए कार्यों का महत्व ही नहीं रह जाता है; जिसके कारण हम सफल ना होने का दुःख और अफ़सोस जीवन भर मानते रहते हैं तथा जीवन में सही समय पर समृद्दि के द्वार भी बंद हो जाते हैं। उसके बाद तो ना चाहते हुए भी गरीबी और दूसरों की गुलामी में ही जीवन निकलना मजबूरी बन सकता है।
ऐसे व्यक्ति जिनको काम को टालने की बुरी लत (आदत) होती है; वे जीवन में चाहते हुए भी कुछ विशेष हांसिल कर ही नहीं पाते हैं तथा उनके सब कार्य अधूरे ही पड़े रह जाते हैं। ऐसे व्यक्ति कार्यों का बोझ ही इतना बढ़ा लेते हैं कि उन्हें मजबूरी में वह कार्य ही छोड़ना पड़ जाता है। ऐसे व्यक्ति असफल, जीवन भर पछतावा करने वाले, अलसी और डरपोक होते हैं और जीवन भर अभावों में ही जीवन निकाल देते हैं। ऐसे व्यक्ति चिंता, अवसाद, आत्मग्लानि के साथ-साथ स्वस्थ्य भी ख़राब कर बैठते हैं।
हमें कार्यों की वरीयता (priority) निश्चित करके जो कार्य
अधिक महत्वपूर्ण हैं उन्हें एक-एक करके निबटाने चाहिए; इससे कार्यों पर ज्यादा सही
तरीके से ध्यान लगा पाएंगे और आप पर कामों का बोझ एक साथ ना आने के कारण स्वयं को तनाव-मुक्त
और ज्यादा आत्म-विश्वास में पाओगे। इससे आप हताशा, जल्दवाजी करने से बचकर टालमटोल कीप्रवृत्ति के शिकार होने से बचे रहोगे; साथ ही साथ कार्यों की प्रोडक्टिविटी भी बढ़ेगी।
अगर ज्यादा कामों को एक साथ करोगे तो आप हताशा में हर कार्यों
में जल्दवाजी करोगे; जिसके कारण आपके कार्यों में भूलें होंगी और आप असफलता के साथ-साथ
आप अपना वेस्ट देने से भी चूक जाओगे।
3. सन्तुलित कार्य-जीवन अपनाएँ :
कभी भी सम्पूर्णता के चक्कर में वर्तमान में जो कर सकते
हैं उस अवसर को ना खोएँ।
हमें हमारे कार्यों, पारिवारिक, व्यक्तिगत जीवन के बीचसंतुलन बनाकर चलना चाहिए।
हमें पैसों के पीछे पागलों की भाँति ना भागकर स्वयँ को,
परिवार को समय अवश्य देना चाहिए। पहले स्वास्थ्य तन-मन जरूरी है तभी सारी खुशियाँ और
समृध्दियाँ हमें वास्तविक जीवन की खुशी दे सकती हैं। हमें पैसे के साथ-साथ हमारे नैतिक
और पारिवारिक दायित्व कभी नहीं भूलने चाहिए; तभी हम सम्मानजनक जीवन जी पाएँगे।
हमें हमारे व्यव्हार, व्यक्तित्व, बोलचाल में शालीनता, मृदुता लानी चाहिए; ताकि हमारे पारिवारिक, सामाजिक, कार्य-स्थल के बीच सम्बन्ध सुदृढ़
और खुशहाल बन सकें।
हमें हर कार्य सोच-समझकर धैर्य के साथ करने होंगे। आपके
कारण किसी अन्य व्यक्ति को दुःख, पीड़ा, असुरक्षा नहीं होनी चाहिए।
अपने साथ-साथ दूसरों की तरक्की में भी सहायक बनो; तभी आप
इज्जत, सहयोग पा सकते हो। तभी आपको जीवन की वास्तविक खुशी मिलेगी।
2. अन्त में (सारांश)
[In conclusion (Summary)]:
हम जो उपलब्ध है; इससे खुश नहीं हैं; हमें वह चाहिए जो हमारे पास नहीं है; यही हमारे दुखों का असली कारण है। अगर हमें यह भी मिल जाए तो भी हमारी नई-नई महत्वाकांक्षाएँ जन्म लेकर हमें असंतोष, बैचेनी में डाल देती हैं। इसी कारण हम कभी भी खशी का अनुभव कर ही नहीं पाते हैं।
अतः सारांश यही है कि आत्म-संतुष्टि ही जीवन का मूल-मंत्र है; तभी हम सुख का वास्तविक अनुभव करते हुए अपने लक्ष्यों पर ध्यान लगा पाएँगे तथा समय, धन को वास्तविक कार्यों में खर्च करके समृद्ध हो पाएँगे।
आदर्श जीवन-शैली अपनाओ।
जीवन के लक्ष्य निश्चित रखो। जो भी जीवन के उद्देश्य हैं उन पर कभी भी दूसरों का प्रभाव ना पड़ने दो। जो भी निश्चित करो स्वविवेक से निश्चित करो।
आत्म-संतोषी जीवन के सुख-दुःख में समताभाव से कार्य करता है तथा लाभ-हानि, यश-अपयश का प्रभाव लक्ष्यों पर नहीं पड़ने देता है।
आत्म-संतोषी भौतिकता, दिखावे से दूर रहकर लोभ, स्वार्थ की भावना से दूर ही रहता है; तभी वह हर दम खुश रह पाता है।
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