उत्साह और उमंग
(बिना उत्साह और उमंग के जीवन में ख़ुशी के साथ सफ़ल होना असंभव है।)
उमंग और उत्साह |
बिना उत्साह और उमंग के जीवन में ख़ुशी के साथ सफ़ल होना असंभव है। अतः चाहें जीवन में कैसी भी परिस्थितियाँ हों या आप वर्तमान में असफ़लताओं का सामना कर रहे हों; कभी भी अपने आप में उत्साह और उमंग को ख़त्म ना होने दें।
जिस भी कार्य को आप हिम्मत और होंसलों के साथ-साथ उत्साह-उमंग के साथ करेंगे तो आपको ना तो थकाबट का अहसास होगा और आप का जोश और जुनून आपके सफ़ल होने की सम्भावनाएँ बढ़ा देगा।
अगर हम स्वयँ ही स्वयँ पर; और कार्यों की सफलताओं पर विश्वास नहीं करेंगे तो भला कोई और कैसे हमारे ऊपर विश्वास के साथ सहयोग कर सकता है?
जब हमारे कार्यों में जोश-जुनून के साथ-साथ लगनशीलता, धैर्य और ख़ुशी होगी तथा हमारे कार्य के तरीकों में उत्साह-उमंग होगी; तो हमारी मेहनत का साथ देने के लिए कई लोग स्वतः ही आएँगे और आपके कार्यों में सहयोग, सफलता और सम्मान बढ़ेगा।
उत्साहित व्यक्ति से सभी मिलना-जुलना और सम्बन्ध बढ़ाना पसंद करते हैं। अतः जो भी करें पूर्ण लगन के साथ-साथ उत्साह और उमंग बरक़रार रखते हुए करें। तभी आपको सहयोग के साथ-साथ सफ़लताएँ मिलती चली जाएँगी।
उमंग और उत्साह एक ऐसा स्वयँ का बल (driving
force) है; जो हमारे जीवन को सुगमता से आगे की ओर गति प्रदान करता है। उमंग-उत्साह
होने पर कार्य करना आसान हो जाता है, जिससे सफ़ल होने की सम्भावनाएँ बढ़ जाती हैं।
अगर
उमंग ओर उत्साह हमारे जीवन में मौजूद है; तो कोई भी मुश्किल धीरे-धीरे आसान आसान करने
का साहस पैदा हो सकता है। इससे हमें धैर्य के साथ हर परिस्थिति का सामना करने की समझ
और जीवन को आगे बढ़ाने की स्व-प्रेरणा प्राप्त होती है।
उमंग-उत्साह होने पर मन हर क्षण ख़ुशी का अनुभव करता है
तथा आत्म-विश्वास के साथ हम ख़ुशी-ख़ुशी कठिन से कठिन कार्य भी करते रहने का सामर्थ्य
प्राप्त करते हैं।
अगर
हमारे साथ-साथ दूसरे आस-पास के लोग भी उमंग और उत्साह से भरपूर होंगे तो ऐसे वातावरण
में किए गए कार्यों की सफलताओं की सम्भावना बढ़ जाती है। अतः; जहाँ तक संभव हो सभी को
सहयोग और प्रोत्साहित करते रहो; इससे आपके जीवन में खुशियों, सफलताओं, दूसरों के द्वारा
आपको सहयोग की सम्भावनाएँ बढ़ जाएँगी; साथ ही साथ आपके सभी सहयोगियों में भी ख़ुशी, उत्साह
बढ़ जाएगा। ऐसा सकारात्मक वातावरण ही ख़ुद के साथ-साथ दूसरों को भी आगे बढ़ने में सहयोगी
होता है और बड़ी-बड़ी तरक्की और सफलताओं के द्वार खुल जाते हैं।
कार्य तो हम सभी करते हैं; लेकिन ज्यादातर कार्य को एक मज़बूरी समझकर करते हैं; जबकि बहुत कम लोग ही हर कार्य में ख़ुशी ख़ोज ही लेते हैं और उमंग-उत्साह के साथ कार्यों को लगातार करते जाते हैं।
इस बात से स्पष्ट है कि पहले वालों (जो मज़बूरी समझकर कार्य करते हैं)
की सफलताओं की सम्भावनाएँ कम होंगी; जबकि दूसरे लोग जो हर कार्य मन से और ख़ुशी, उमंग-उत्साह
के साथ करते हैं; उन्हें हर छोटे से छोटे कार्यों और घटनाओं में ख़ुशी अनुभव होगी और
ऐसे लोग बिना रुके और थके कार्यों को जल्दी ही सफलतापूर्वक सम्पन्न कर लेंगे। ऐसे ख़ुश
रहने वाले और उत्साह-उमंग से भरपूर लोग ही बड़े-बड़े असंभव से दीखने वाले कार्यों में
भी बड़ी आसानी से सफलता पा जाते हैं। जबकि दूसरे लोग जो हर दम हर समस्याओं या कार्यों
में कमी ही निकालते रहते हैं या अभावों का रोना ही रोकर, हर कार्य मज़बूरी समझकर अनमने
मन से करते हैं; वे कभी भी बड़ी सफलताएँ प्राप्त ही नहीं कर सकते हैं और जीवन में असफलताएँ,
निराशा, चिंता-फ़िक्र में ही जीवन बर्बाद कर बैठते हैं।
बिना
उमंग और उत्साह के जीवन नीरस, थका-थका सा और मनहूस ही होगा।
अतः जीवन में उमंग और उत्साह का होना नितान्त आवश्यक है; तभी हम जीवन में ख़ुशी के साथ-साथ बड़ी सफ़लताएँ हांसिल कर सकते हैं।
1. चिंता नहीं चिंतन करें; तभी उत्साह-उमंग के साथ आगे बढ़ सकते हो:-
आत्म-चिंतन से समाधान खोजें
अगर दिमाग़ ठंडा रहेगा, हम बैचेनी या हड़बड़ाहट से दूर रहेंगे तो ऐसी स्थिति में हम अपना काम ज़्यादा मन लगाकर, आत्म-विश्वास के साथ-साथ उत्साह और जोश के साथ पूर्ण कर सकते हैं।
कार्यों और जीवन के सही निर्णय हमेशा डर को अलग हटाकर ही किए जा सकते हैं। साहसपूर्ण जोख़िम भी हम तभी ले पाएँगे जब हम सोचे-समझे निर्णय लेने की स्थिति में होंगे। अगर हम आत्म-ग्लानि, डर, चिंता में ही मन को उलझा देंगे तो कैसे हम निडरता के साथ समस्याओं पर चिंतन-मनन कर पाएँगे ?; डर हमें जोख़िम लेने ही नहीं देंगे।
हाँ ! कुछ चिंताएँ वास्तविक, स्वभाविक होती हैं; लेकिन डर कर बैठ जाना भी मूर्खता होगी। अगर हम ठन्डे दिमाग़ से समाधानों पर बिना बैचेनी के साहस के साथ कार्य करें; तो इन चिंताओं के भी समाधान निकाले जा सकते हैं।
चिंतन द्वारा हम स्वयँ को, स्वयँ की क्षमताओं, भावनाओं और डर को जान सकते हैं और स्वयँ की कमियों या खूबियों को जानकर उन पर सकारात्मक बदलाव भी कर सकते हैं; जो कि समस्याओं के समाधान में महत्वपूर्ण होंगी।
जब तक हम स्वयँ का आत्म-विश्लेषण नहीं करेंगे; तब तक हम समाधान कभी भी नहीं निकाल पाएँगे और समाधान मिल भी गए तो उन पर आत्म-विश्वास के साथ कार्य करने में परेशानी ही होगी।
अतः; चिंतन करके स्वयँ को जानो, स्वयँ को परिस्थिति के अनुसार रूपान्तरित करें; तभी आप चिंतामुक्त होकर उत्साह के साथ सफलता की ओर कदम बढ़ा सकते हो। अतः स्वयँ को जानें, आत्म-नियंत्रित होकर चिंतन के साथ समाधानों की दिशा में कार्य करें; तभी सफ़लता प्राप्त होगी।
जरूरी बातों पर चिंतन करें; ओर जो भी चिंता के कारण हों; उनका साथ-साथ निवारण करते रहें। तभी हम ख़ुशी के साथ-साथ उत्साह-उमंग के साथ सफ़लता को महसूस करने में सक्षम होंगे।
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