Sunday, December 11, 2022

निष्ठा l निष्ठावान l निष्ठा क्या है ? l निष्ठावान का मतलब क्या है? l निष्ठा का मतलब क्या है? l Loyal l Loyalty

 

निष्ठा क्या है? ; निष्ठावान कैसे बनें?
(What is loyalty? ; How to be loyal?)


निष्ठा के साथ कार्य में एकाग्रता 

    निष्ठा क्या है ?; निष्ठावान कैसे बनें ? यह आज की वर्तमान स्थिति में बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है।

    निष्ठा ही मानव का वह गुण है, जिसके द्वारा वह स्वयँ के जीवन के लिए और दूसरे सभी लोगों के लिए विश्वासपात्र बन सकता है।

    हमारे स्वाभाव में निष्ठा की भावना होने पर ही हम किसी अन्य में श्रद्धा, आस्था, विश्वास, भक्ति को सफ़लतापूर्वक निभा सकते हैं।

इसके लिए हमें मन को नियंत्रित करके; सही सोच, विचारों की ओर आत्म-केंद्रित करना होगा। हमें अपनी भावनाओं, धारणाओं को भी सकारात्मक करना होगा; तभी हमारे अन्दर सच्ची प्रेम-भक्ति, प्रेम-अपनत्व, विश्वास, समभाव-दृष्टी, मानवता-करूणा, सम्मान, सहयोग के भाव विकसित हो सकते हैं। ये सभी गुण होने पर हमारी सफ़लता सुनिश्चित होती है तथा परिवार, समाज ओर कार्य क्षेत्र में हमारे व्यक्तित्व का सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, साथ ही सभी हमारे से सहयोग और अपनत्व के भाव के साथ हमारी सफ़लता में प्रगत्ति करने स्वतः ही लग जाते हैं। 

    हमारे जीवन के सफ़लता के मानवतावादी उद्देश्य, जागरूकता, कर्मठता (कर्तव्यनिष्ठता), एकाग्रता हमारी निष्ठा को बढ़ाने में सहायक होते हैं।

    अतः अगर जीवन में खुशियों के साथ-साथ सफ़लताएँ चाहिए; तो पूर्ण-निष्ठा और समर्पण भाव से अपने दायित्व दूसरों की खुशियों का ध्यान रखते हुए निभाएँ।


निष्ठा (Loyalty):
जीवन का अनुशासित होना आवश्यक है।

    जीवन की वास्तविक सफ़लता और ख़ुशी पूर्ण-निष्ठा भाव से कार्य करने और दायित्वों को पूर्ण-मन से निभाने से ही मिलती हैं।

जीवन में तरक्की, उन्नत्ति या सफ़लताएँ प्राप्त करने के लिए जीवन का अनुशासित होना आवश्यक है। हमारी सोच, भावनाएँ, क्रिया-कलाप और वातावरण जैसे होंगे तथा जिस प्रकार से हम किसी बात, घटना, पारिवारिक रिश्ते या व्यापारिक और नौकरी आदि के कार्यों पर विचार और भावनाएँ रखते हैं; हमारा मन और शरीर उसी प्रकार से कार्य करने लग जाता है। इन सब बातों का सीधा-सीधा प्रभाव हमारी सफ़लताओं, उन्नत्ति और सब प्रकार की समृद्धि पर पड़ता है।

    अगर हम जागरूक हैं और जीवन को निश्चित उद्देश्यों, लक्ष्यों के साथ-साथ कठोर परिश्रम निश्चित दिशा में कर रहे हैं; तो हमारा आत्म-विश्वास बढ़ेगा और हमारी सफ़लताओं की सम्भावना बढ़ जाएँगी।

मात्र कार्य की सफ़लता ही जीवन में सब-कुछ नहीं होती है; जीवन में स्वयँ की, परिवार और समाज की ख़ुशी भी महत्वपूर्ण होती है। यह हमारा नैतिक दायित्व है कि हम स्वयँ के साथ-साथ परिवार के सभी सदस्यों, रिश्ते-नातों, समाज को भी आगे बढ़ने और उनकी ख़ुशी, समृद्धि में सहयोग करें। इन सबके बिना मात्र कार्य की सफ़लता या समृद्धि का कुछ भी मूल्य नहीं होता है।

     इन्हीं उपरोक्त नैतिक दायित्वों के सफ़लतम निर्वाहन के साथ-साथ उद्देश्यों, लक्ष्यों, सफ़लताओं की प्राप्ति के लिए दृढ़-संकल्प के साथ आगे बढ़ने की लगन, समर्पण की भावनाएँ, दूसरों को प्रेम, सहयोग, आदर देने की श्रद्धा को ही हम निष्ठा (Loyalty) कह सकते हैं और इस प्रकार के आचरण वाला व्यक्ति निष्ठावान (Loyal) कहलाता है जो कि एक सफ़लतम व्यक्तित्व का धनि होता है।

सफ़लता का राज़ हमारी निष्ठा के साथ किए गए कठिन परिश्रम में छुपा होता है।

     हमें स्वयँ, परिवार, कार्यों के दायित्वों तथा समाज के प्रति निष्ठावान रहना चाहिए। अगर हम स्वयँ के प्रति, कार्य के प्रति निष्ठावान हैं तथा पूर्णतः समर्पण भाव से सही दिशा में कार्य कर रहे हैं; तो हमें सफ़लता मिलना मुश्किल नहीं होता है।

     कर्तव्यनिष्ठ होने के दृढ़-संकल्प द्वारा ही हम आलश्य, डर को हटाकर आगे बढ़ने की क्षमता पा सकते हैं। जब तक हम स्वयँ के जीवन के प्रति श्रद्धा, विश्वास नहीं रखेंगे तथा निष्ठावान नहीं होंगे; तब तक हम मन पर नियन्त्रण कर ही नहीं सकते हैं।

आत्म-संयम, सदाचार की भावना के साथ पूर्ण निष्ठावान होने पर ही हम आगे बढ़ सकते हैं।

    कार्य, सफ़लता के प्रति समर्पित होने पर ही हम पूर्ण-निष्ठा के साथ कठिन परिश्रम में भी बिना हार माने ख़ुशी के साथ आगे बढ़ने का साहस, आत्म-विश्वास एकत्र करके बिना रुके लगातार विफलताओं के बाद भी दृढ़ता के साथ लगातार कार्य करके सफ़लतम बन सकते हैं।

    कर्मठता, लगन की भावना; कार्य के प्रति निष्ठा-भावना से ही बढ़ती है। इससे व्यक्ति कार्य को कुशलता पूर्वक, बिना थके-हारे तथा बिना समय गवाँए करता है; क्योंकि उसे स्वयँ के उद्देश्य पता होते हैं।

    अगर हमें धर्म, गुरू, परिवार, माता-पिता, भाई-बहन, सगे-सम्बन्धियों, समाज में पूर्ण श्रद्धा और निष्ठा नहीं होगी तो हम इनकी सही बातों, सुझावों, को भी नकारात्मक भाव से ही सोचे-समझेंगे और इन बातों का सकारात्मक लाभ कभी भी नहीं ले पाएँगे। इसके विपरीत पूर्ण-निष्ठा होने पर ही हम परिवार, माता-पिता, बच्चों का लालन-पालन पूर्ण-जिम्मेदारी के साथ निभा सकते हैं तथा इन सबको सुखी बनाने के लिए जोखिम लेंगे, कठिन-परिश्रम और परेशानियाँ झेलकर भी उन्हें सहयोग और उन्हें सफल बनाने के प्रयत्न करेंगे। निष्ठा होने पर ही हम बड़ों के आदेशों को मान सकते हैं।

    आज समाज, देश, परिवार में व्याप्त आक्रोश, लड़ाई-झगड़े हमारे हमारी निष्ठाहीनता, भ्रम, नकारात्मक सोच के ही परिणाम हैं।

आत्म-संयम, सदाचार की भावना


अन्त में :

    जिस व्यक्ति में स्वयँ के प्रति और दूसरों के प्रति जिम्मेदारी और निष्ठा की भावना होती है, उस पर विश्वास किया जा सकता है।

हमें स्वयँ और दूसरों के प्रति वफ़ादार होना चाहिए।

    किसी भी क्षेत्र में सफ़ल होने के लिए उस कार्य, उसके सभी क्षेत्रों में पूर्णतया समर्पित होना जरूरी है। कोई कार्य क्षेत्र या विषय अच्छा लगे या ना लगे लेकिन अगर हम सच्ची श्रद्धा, समर्पण भाव के साथ उस कार्य को करते हैं तो लक्ष्य जरूर हाँसिल होता है।

    अगर किसी कार्य में पूर्ण समर्पित हो जाओगे तो आपका पूरा ध्यान उस एक ही कार्य या क्षेत्र में एकाग्रः हो जाएगा; जो कि लक्ष्य प्राप्ति का मुख्य आधार है। ऐसा होने पर हमारे मन के भटकाव दूर होकर हम एकाग्रः होकर एक ही कार्य को ख़ुशी-ख़ुशी तब तक करेंगे जब तक कि सफ़ल ना हो जाएँ। इसे ही पूर्ण-निष्ठा या पूर्ण-समर्पण भी कह सकते हैं।

    हमारी गुरुओं, माता-पिता, बुजुर्गों और बड़े लोगों, समाज, परिवार में निष्ठा तभी बन सकती है; जब हमारी श्रद्धा उनके प्रति होगी। जितनी परम-श्रद्धा होगी उतने ही निष्ठावान, सरल आप इन सबके प्रति होंगे।

    परम-श्रद्धा होने पर ईर्ष्या, द्वेष-घृणा, आलस, आत्म-ग्लानि, कुंठा के भाव आदि-आदि उनकी सेवा और सहायता के लिए आप में कभी नहीं आएँगे। इस दशा में अहंकार (Ego) समाप्त हो जाता है, स्वार्थ-भावना समाप्त हो जाएगी। ऐसे व्यक्ति ही पूर्ण-निष्ठावान होते हैं; जिन पर विश्वास किया जा सकता है।  

    हम हमारी सफलताओं, कार्यों, व्यापार, कार्य-स्थल और सहयोगियों के प्रति भी निष्ठा रख सकते हैं। निष्ठावान होने से ही हम सभी का आदर, सहयोग, श्रद्धा प्राप्त कर सकते हैं; जो हमारी प्रगत्ति में सहायक सिद्ध होंगे।

    जो भी कार्य करें पूर्ण-लगन, धर्य के साथ करें। कार्य करते समय ख़ुशी का अहसास करें तथा घृणा, क्लेश या गुस्सा वाले भाव या विचार और आलस, औपचारिकता (Formality) वाले भाव नहीं आने चाहिए। जो भी करें पूर्ण-मन, उल्लास और आत्म-विश्वास के साथ करें; जिसका उद्देश्य मात्र कार्य को सफ़ल बनाना हो। आपके कार्य करने और सोचने-समझने के तरीके सहज़ और निष्ठावान होने चाहिए।

    आत्म-निष्ठ होकर अपने दम पर कार्य करें, कभी भी दूसरों पर निर्भर ना रहें; तभी आप चिंता-मुक्त होकर दायित्वों को पूरा कर सकते हैं। अपना सर्वश्रेष्ठ दो तभी बड़ी सफलता हाँसिल हो सकती है।

अपने विश्वास को कभी कम ना होने दें।

    हमें हमारे हर कर्त्तव्य पूर्ण-निष्ठा, श्रद्धा, और समर्पण की भावना से दायित्वों के बोध के साथ निभाने चाहिए; तभी स्वयँ की सफ़लता और ख़ुशी के साथ आपके परिवार, सम्पूर्ण वातावरण में ख़ुशी, प्रगत्ति और समृद्दि आ सकती है। 

हम जो भी करें; उसमें नैतिकता, कल्याण की भावना शामिल होनी चाहिए। तभी दूसरे लोग आपको दिल से सम्मान, सहयोग, कृतज्ञता व्यक्त कर सकते हैं। 


विशेष बातें :
लक्ष्य पर कार्य करने पर सफलता मिलती है।

इन सभी बातों को ध्यान से समझें; इससे आपको निष्ठा, श्रद्धा के महत्व और निष्ठावान होने से सफल कैसे हो सकते हैं?; इनकी समझ आएगी।

हम यहाँ आपकी सुविधा के लिए इन्हें अलग-अलग बिंदुओं में समझाने के प्रयास करेंगे :-  

1.  जीवन में सम्मान और समृद्दि के लिए समय-निष्ठ, कर्त्तव्य-निष्ठ बनें और सभी कार्य और योजनाएँ समय पर पूर्ण करने की आदत डालें।

इससे आप पर अतिरिक्त कार्यों का बोझ कभी नहीं आएगा और आप चिंता-मुक्त होकर अगली योजनाओं पर पूर्ण ध्यान एकाग्रः कर पाएँगे।

जो भी करें निश्चित योजना बनाकर समय निर्धारित करके करें और हर कार्य समय पर पूर्ण करें।

2.  निष्ठा होने पर ही भय से मुक्ति मिल सकती है।

जब उद्देश्यों और दायित्वों को निष्ठा के साथ पूर्ण करने के लिए दृढ़-संकल्पित होते हैं तो मुश्किलों का सामना करना आसान हो जाता है।

कर्त्तव्य बोध ही हमें जोखिम लेने की प्रेरणा देते हैं।

आलस विषम-परिस्थिति पर सफ़लता होंसले और निष्ठा से ही मिल सकती है। इससे हम वे कार्य भी करने को प्रेरित होते है; जिनको करना हमें अच्छा नहीं लगता है। इससे हम कठोर परिश्रम करने लग जाते हैं; जिसके फलस्वरूप सफ़लताएँ सुनिश्चित होती हैं।

3. किसी व्यक्ति, समुदाय, पारिवारिक सदस्यों या रिश्तेदारों, बच्चों, दोस्तों, सहयोगियों की पूर्ण-निष्ठा तभी बढ़ सकती है जब उन्हें प्रोत्साहित, उनके कार्यों की प्रशंसा करें। इन सबकी दिक्कतों-परेशानियों को समझकर उन्हें सहायता करें।

इन सभी में कुछ उपयोगी आदर्श, विशेषताएँ तथा उनकी वैल्यू बढाकर उन्हें प्रोत्साहित किया जा सकता है और उन्हें निष्ठावान बनाया जा सकता है।

अगर हम इन सभी को मन से सहायता करेंगे और उनकी सफ़लता में सहयोगी बनते हैं; तो ये सभी हमारे कार्यों, व्यवहार, व्यक्तित्व, सहयोगी भावनाओं के लिए कृतज्ञ होंगे और आजीवन अपनी सफ़लताओं, खुशियों में सहायक सिद्ध होंगे।

परोपकार, अन्य लोगों के जीवन में सुधार लाने के प्रयत्न, उनकी तरक्की में सहायक बनने की भावना ही हमारे मानव जीवन का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए।  

4. पूर्ण-निष्ठा के साथ एकाग्रचित्त होकर किये गए कार्य ही हमें सफल, सुखी, प्रशन्नता दे सकते हैं। इन्ही के द्वारा हमारी आगे की प्रगत्ति (तरक्की) के द्वार भी खुल जाते हैं।

5. अगर किसी परिवार, समाज, समुदाय, संगठन या धर्म में निष्ठा-समर्पण की भावनाओं के साथ-साथ एकता, मानवता, करुणा, आपसी सहयोग भी होगा तो ये सभी इतने शक्तिशाली और उन्नत हो जाएँगे कि हर प्रकार की कठिनाइयों का मुकाबला आसानी से कर लेंगे।

ऐसे विशिष्ठ परिवार, समाज, समुदाय, संगठन और धर्म-सम्प्रदायों की सफ़लताएँ, समृद्धि सुनिश्चित होती है।

6. निष्ठावान में श्रद्धा, समर्पण, एकाग्रता, लगन के भाव होते हैं तथा जिम्मेदारी, दायित्वों को सँभालने की और अनुशासन की भावना होती है।

7. निष्ठा में श्रद्धा, आस्था, समर्पण के भाव होते हैं; जिनके कारण हम अपने आदर्श-व्यक्ति, माता-पिता, भाई-बहन आदि की शिक्षाओं, सुझावों को निष्ठा के साथ मानते हैं तथा मन में उनके प्रति कोई नकारात्मक प्रश्न नहीं उठता है।

इन्हीं आस्था, निष्ठा के कारण ही हम हमारी संस्कृत्ति, परम्पराओं, रीति-रिवाज़ों को हमारे आदर्श-लोगों के हिसाब से ही मानते, अपनाते आ रहे हैं।

हमारे धर्म-संप्रदाय, धर्म-ग्रंथों पर विश्वास हमारी निष्ठा को प्रदर्शित करता है; जिसका सीधा प्रभाव हमारे मन-मस्तिष्क पर भी पड़ता है।

8. हम लक्ष्यों, कार्यों में, नौकरी करने में, पढ़ाई करने में, या और कोई और निश्चित कार्य क्षेत्र में या व्यवसाय-व्यापार में मन लगाकर तभी कार्य कर सकते हैं; जबकि हम इन कार्यों के प्रति दृढ संकल्प के साथ श्रद्धा और निष्ठा रखते हैं और आगे बढ़ने की जिम्मेदारी लेते हैं। इनके बिना कार्य में ध्यान को एकाग्रः करना मुश्किल होगा; जिसका सीधा असर हमारी तरक्की, प्रमोशन, सफ़लताओं पर पड़ेगा।

    अगर किसी कार्य में आपकी रुचि और निष्ठा नहीं होगी तो हम कभी भी खुश नहीं रह सकते तथा उन कार्यों में अपनी सर्वश्रेष्ठ सफलता हांसिल  नहीं कर सकते हैं।

9. कार्य में निष्ठा होने से हम कार्य को सफ़ल बनाने के लिए किसी भी सीमा (हद) तक जाने को तत्पर रहते हैं; कार्य एक जूनून बन जाता है; जो हमें सफलतम बनाता है।

    निष्ठा होने पर मेहनत करना, सफलता के लिए पसीना बहाना, जोखिमों से खेलना अच्छा लगने लगता है; जो हमें सफलता की दिशा में ले जाता है।

उपवास में भूखे-प्यासे हम हमारी आस्था और निष्ठा के बल पर ही रह पाते हैं।  

10. पूर्ण-निष्ठा और लगन से लक्ष्य पर कार्य करने पर ही सफलता मिलती है।

निष्ठा होने पर हम बहाने बनाना छोड़कर कार्यों पर ध्यान एकाग्रः करते हैं और वायदे के अनुसार कार्यों को सही समय पर पूर्ण करने में सफ़ल होते हैं l

इसी लगन के बल पर; लगातार मेहनत के बल पर बड़ी से बड़ी सफ़लताएँ हांसिल कर ही लेते हैं। 


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